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शिष्याम्
शिष्यातम् शिष्याताम्
शिष्युः
शिष्टम् शिष्टाम्
आओ संस्कृत सीखें
विध्यर्थ शिष्याव
शिष्याम शिष्याः
शिष्यात शिष्यात्
आज्ञार्थ शासानि शासाव
शासाम् शाधि
शिष्ट शास्तु
शासतु वर्तमान कृदन्तः- रुदत्, श्वसत् आदि के रूप तीनों लिंगों में चिन्वत् की तरह होते हैं। 8. जक्षत्, दरिद्रत्, जाग्रत्, चकासत् और शासत् इन पाँच धातुओं में घुट् प्रत्यय
(पुंलिंग में पहले पाँच रूप में जोडा न् लुप्त होता है और नपुंसक में प्रथमाद्वितीय बहुवचन) में जोड़ा गया 'न्' विकल्प से लुप्त होता है । उदा. पुं. लिंग में जक्षत् द् जक्षतौ जक्षतः
जक्षत जक्षतौ । नपुंसक लिंग में -
जक्षत् द् जक्षती जक्षति/जक्षन्ति स्त्री लिंग में -
जक्षती जक्षत्यो जक्षत्यः कर्मणि में - अद्यते, प्राण्यते, चकास्यते आदि
कृदंत में - अद्यमानः, प्राण्यमानम् आदि 9. कित् प्रत्ययों पर स्वप् धातु के स्वरसहित व का उ होता है ।
उदा. स्वप् + य + ते = सुप्यते भूतकृदंत में - सुप्तः
संबंधक भूतकृदंत में - सुत्वा 10. कित् प्रत्ययों पर जागृ का गुण होता है ।
उदा. जागर्यते । भावे प्रयोग - जागर्यमाणम् ।