Book Title: samaysar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddhar Karyalay

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Page 511
________________ ४९८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [संर्वविशुद्धज्ञानतन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४९ । “मोहाद्यदहमकार्ष समस्तमपि कर्म तप्रतिक्रम्य । आमनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते ॥ २२६ ॥” इति प्रतिक्रमणकल्पः समाप्तः । न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचा च मनसा वाचा चेति तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति पूर्ववदेकैकापनयनेन पंचसंयोगेन भंगत्रयं भवति एवं पूर्वोक्तक्रमेण–एकोनपंचाशद्धंगा ज्ञातव्याः। इति प्रत्याख्यानकल्पः समाप्तः । इदानीमालोतीसकी समस्याके तीन ३ ॥ कृतकारित मनवचन कायकर । २३ । कृत अनुमोदना मन वचन कायकर । २३ । कारित अनुमोदना मनवचन कायकर । २३ । ये तेइसकी समस्याके तीन ॥ ३॥ कृतकारित मन वचनकर । २२ । कृत अनुमोदना मन वचनकर । २२ । कारित अनुमोदना मनवचनकर । २२ । कृतकारित मन कायकर । २२ । कृत अनुमोदना मनकायकर । २२ । कारित अनुमोदना मनकायकर । २२ । कृतकारित व. चन कायकर । २२ । कृत अनुमोदना वचन कायकर । २२ । कारित अनुमोदना वचन कायकर । २२ । ये नौ बाईसकी समस्याके ९॥ कृतकारित मनकर । २१ । कृत अनुमोदना मनकर । २१ । कारित अनुमोदना मनकर । २१ । कृतकारित वचनकर । २१ । कृतअनुमोदना वचनकर । २१ । कारित अनुमोदना वचनकर । २१ । कृतकारित कायकर । २१ । कृत अनुमोदना कायकर । २१ । कारित अनुमोदना कायकर । २१ । ये नौ इकईसकी समस्याके हैं ॥ ९॥ कृत मन वचन कायकर । १३ । कारित मनवचनकायकर । १३ । अनुमोदना मनवचनकायकर । १३ । ये तेरहकी समस्याके तीन ३ ॥ कृत मनवचनकर । १२ । कारित मनवचनकर । १२ । अनुमोदना मनवचनकर ।१२। कृत मनकायकर । १२। कारित मनकायकर । १२ । अनुमोदना मनकायकर। १२ । कृत वचनकायकर । १२ । कारित वचनकायकर । १२ । अनुमोदना वचनकायकर । १२ । ये नौ बारहकी समस्याके हैं। ९॥ कृत मनकर । ११ । कारित मनकर ।११॥ अनुमोदना मनकर । ११ । कृत वचनकर । ११ । कारित वचनकर । ११ । अनुमोदना वचनकर । ११ । कृत कायकर । ११ । कारित कायकर । ११ । अनुमोदना कायकर । ११ । ये नौ ग्यारहकी समस्याके हैं ॥ ९॥ इसतरह तेतीसका १ बत्तीसके ३ इकतीसके ३ तेईसके ३ बाईसके ९ इकईसके ९ तेरह के ३ बारहके ९ ग्यारहके ९ । सब मिल उनचास हुए। अब इस कथनका कलशरूप २२६ वां काव्य कहते हैं-मोहाय इत्यादि । अर्थ-जो मैंने मोहसे ( अज्ञानसे) अतीतकालमें कर्म किये उन सबको ही प्रतिक्रमणरूपकर सब कर्मोंसे रहित चैतन्यस्वरूप आत्मामें आपकर ही निरंतर वर्तता हूं। ऐसा ज्ञानी अनुभव करे ॥ भावार्थ-अतीतकालमें किये कर्मका उनचास भंगरूप मिथ्याकार प्रतिक्रमणकर ज्ञानी ज्ञानस्वरूप आत्मामें लीन हो निरंतर अनुभव करे उसीका यह विधान है। मिथ्या कहनेका प्रयोजन यह है कि जैसे किसीने पहले धन

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