Book Title: Vyavahar Sutram Part 06
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shy Kailashsagarsuri Gyanmandir
श्री
व्यवहार
सूत्रम् दशम
उद्देशकः १६६६ (B)|
पढमस्स य कजस्स य, पढमेण पएण सेवियं जं तु । तइये छक्के अन्भिंतरं तु सेसेसु वि पएसु ॥ ४४५४॥
अक्षरगमनिका प्राग्वत् । तदेवं प्रथमस्य कार्यस्य प्रथमं पदं' दर्पलक्षणं पदममुञ्चताऽष्टादशपदानि सञ्चारितानि, एवमकल्पादिभिरपि द्वितीयादिभिः पदैः सञ्चारणीयानि ॥ ४४५४॥ पाठोऽप्येवम्
पढमस्स य कज्जस्स य, बीएण पएण सेवियं जं तु । पढमे छक्के अब्भिंतरं तु पढमं भवे ठाणं ॥ ४४५५ ॥ इत्यादि। सर्वसङ्ख्यया भङ्गानामशीतं शतम् १८० ॥ ४४५५ ॥ तदेवं प्रथमं दर्परूपं विशुद्धम्। इदानीं द्वितीयं कल्पपदमधिकृत्याहबिइयस्स य कजस्स य, पढमेण पएण सेवियं जं तु । पढमे छक्के अब्भिंतरं तु पढमं भवे ठाणं ॥ ४४५६॥
गाथा ४४५२-४४६० आलोचनाक्रमः
|१६६६ (B)
१. इतोऽग्रे हस्तादर्शेषु 'एया चेव परिपाडी एत्थुग्गहो उ भणियव्वो' इति पाठो दृश्यते इति ला. टिप्पणे॥
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512