Book Title: Vyavahar Sutram Part 04
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री व्यवहार
सूत्रम् सप्तम
उद्देशकः १३१६ (B)
निष्काशिते णमिति वाक्यालङ्कारे, उपधेः स्यादशिवापनं स्तेनैरपहरणं विस्मरणतो वा नशनमिति ॥ ३२९४॥
अहवा भरियभाणा उ, आगते जइ निच्छुभे । भत्तपाण विणासो उ, भंजए साऽऽगते डमे ॥ ३२९५ ॥
अथ भक्तभृतभाजनानागतान् यदि निष्काशयति तदा गृहीतभक्तपानविनाशः। गतं भिक्षागतद्वारम्। अधुना भोजनद्वारमाह-अथ भुञ्जानेषु साधुषु स वक्रयी समागतः। तदा इमे वक्ष्यमाणा दोषाः ॥ ३२६५ ॥
तानेवाहजिया अट्ठिसरक्खा वि, लोगो सव्वो वि बोट्टितो । पगासिए य अन्नेसिं, हीला होइ पवयणे ॥ ३२९६॥
साधून साधुक्रियया भुञ्जानान् दृष्ट्वा स विपरिणतभावो ब्रूते 'जिता एतैरस्थिसरजस्का अपि कापालिकाः' तेभ्योऽप्यमी हीनाचारा इति भावः। तथा लोकः सर्वोऽप्येतैः |
गाथा ३२९३-३३०० वक्रयगृहादौ
वसने दोषाः
१३१६ (B)
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