Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
गुरुदेव रचित 'अष्टप्रकारी पूजा' में दीपक पूजा कि एक करुणरस से युक्त बानगी निहारिए:
'करुणारस से धरी शुभ फानस, मरत न जेम पतंग। जगमग ज्योति सुन्दर दीपे,
अनुभव दीप अभंग ॥ दीपक को करूणारस के घृत से भरो। इसे इस प्रकार प्रज्वलित कीजिए कि एक कीट-पतंग जलने न पावें । यहां पर यह उल्लेखनीय है कि जैन धर्म के प्रत्येक भक्ति कार्यक्रम में जीवदया का पूर्ण परिपालन आवश्यक है।
प्रभु भक्ति से सब प्रकार के आनंद प्राप्त होते हैं । सत्तर भेदी पूजा में इसका एक छन्द कितना सरस है:
आतम आनंद, तुम चरण वंद। सब करत फंद, भयो शिशिर चंद ॥
जिन पठित छंद, ध्वज पूजन कीनो॥ पद्य की सरलता मन भावनी है। अनुप्रास, रूपक आदि अलंकारों से काव्य मनोहर बन गया है।
पूज्य श्री ने आत्माबावनी में अध्यात्म की रसवंती गंग-धार प्रवाहित की है। भाषा शैली भावानुकूल एवं रससिक्त है । एक बानगी प्रस्तुत है:
“आतम अखंड भूप करतो अनंत रूप तीन लोक नाथ हो के दीन क्यों फीरत है।"
हे जीव ! तू आत्म-भूप अखंड है, फिर दीन-हीन क्यों फिरता है? भाषा की सरलता दर्शनीय है। कवि रूप में उन्होंने जो भक्तिरस की गंगा प्रवाहित की है, उसमें भीग कर कौन आह्लादित नहीं होगा।
अपने गुरुदेव की प्रशस्ति में श्री गुरु वल्लभ ने जैनाचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि चरित्र' ढाल पांचवीं में दो काव्यमय उद्गार प्रकट किए हैं।
पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज : लोक-मंगल के लिए अर्पित जीवन
३३९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org