Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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अपने जीवन के साठ वें वर्ष के मोड़ पर उन्होंने दो कार्य पूर्ण कर लिए थे। पंजाब को सत्य धर्म का उपासक बना दिया था। उनकी धर्म श्रद्धा को स्थिर रखने के लिए स्थान-स्थान पर मंदिर खड़े कर दिए। इन दोनों कार्यों के बाद उन्होंने एक संतोष की सांस ली। इन कार्यों के बाद वे अपने तीसरे कार्य शिक्षा प्रचार को हाथ में लेना चाहते थे।
अपने ये विचार वे श्रावकों और अपने युवा प्रशिष्य मुनि श्रीवल्लभ विजय के समक्ष कई बार व्यक्त कर चुके थे।
वि.सं. १९५३ में संखतरा में नव निर्मित जिन मंदिर की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा करने के बाद उन्होंने पंजाब के श्रीसंघों से आए लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आज मेरे जीवन के दो लक्ष्य सिद्ध हो गए हैं। अब मैं यहां से विहार करके गुजरानवाला जाऊंगा। वहां मैं एक महाविद्यालय बनवाना चाहता हूं। शिक्षा के प्रचार के बिना जैन समाज का उद्धार नहीं होगा। इस कार्य में हमें अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर जुट जाना है।
___ परंतु अफसोस ! इससे पहले कि वे गुजरानवाला जाकर अपना कार्य प्रारंभ करें उनका स्वर्गवास हो गया।
अपने स्वर्गगमन से पहले मुनि श्री वल्लभ विजयजी को अपने पास बुलाकर अपना अन्तिम संदेश और आदेश देते हुए कहा कि श्रावकों की श्रद्धा को स्थिर रखने के लिए मैंने जिन मंदिर निर्मित कर दिए हैं। अब विद्या मंदिर बनवाने का कार्य शेष है। इस कार्य को मैं तुम्हारे कंधों पर डालकर जा रहा हूं।
आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज में व्यक्ति की योग्यता को पहचानने की शक्ति थी। वे आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज की योग्यता और कार्यशक्ति से भलीभांति परिचित थे। इसीलिए उन्होंने शिक्षा प्रचार की जिम्मेवारी विजय वल्लभ को सौंपी
थी।
आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज ने गुरू आतम के इस अन्तिम आदेश को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया और वे इस शिक्षा प्रचार के कार्य में जुट गए । गुरू आतम की भावना के अनुरूप उन्होंने गुजरानवाला में आत्म और आनंद शब्द जोड़कर 'आत्मानंद' नाम से 'श्रीआत्मानंद जैन गुरूकुल-गुजरानवाला' का बीजारोपण किया। शिक्षा प्रचार का यह पहला चरण था।
इस विद्यालय के बाद उन्होंने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में शिक्षा प्रचार के
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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