Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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राज्येऽस्तदोषमपनीततमोवितानम्। आनंदपूर्वविजयाभिधसूरिभर्तुः
स्तोत्रं सतां स्रगिव कण्ठमलङ्गरोतु ॥३॥ प. पू. आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर के साम्राज्य में दोषों और अंधकार को नष्ट करने वाले पू. विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज के नाम यह स्तोत्र रचा गया यह सज्जनों के कण्ठ का हार बनकर उनके गले को सुशोभित करें।
मुनिवर्यदेवविजयप्रेरणया जन्मतोऽस्य मुनिभर्तुः ॥
महसि शताब्द्या: प्रचलति रचितमिदं भूतयेऽस्तु सताम् ॥४॥ मुनिवर्य श्रीदेव विजय की प्रेरणा से विजयानंद सूरि के जन्म शताब्दी महोत्सव पर यह रचना सज्जनों के लिए पृथ्वी पर रची गई ।
श्रीमतो वासुपूज्यस्य तीर्थनेतुः प्रसादत: ।
संज्जाताऽमुष्य निष्पत्ति: वर्षे सैन्यापुरे पुरे ॥५॥ श्री वासुपूज्य स्वामी की कृपाशीष से सैन्यपुर नामक नगर में इसकी श्रेष्ठ रचना हुई।
(हिन्दी अनु. मुनि श्री इन्द्रजीत विजय)
श्री विजयानंद प्रशस्ति
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