Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 74
________________ २६ विधिप्रपा । तहा जत्थेगेगं कम्ममणुसरिय, उववास-एगासणग-एगसित्थय-एगठाणग-एगदत्तिग-निधियआयंबिल-अट्ठकवलाणि अट्टहिं परिवाडीहिं किजंति, सो अट्टकम्मसूडणो तवो दिणा चउसही । उज्जमणे सुवन्नमयकुहाडिया कायद्या ॥ १२ ॥ तहा अट्ठमतिगेण नाण-दसण-चरिताराहणातवो भवइ ॥ १३ ॥ तहा रोहिणीतवो रोहिणीनक्खत्ते वासुपुज्जजिणविसेसपूयापुरस्सरमुववासो सत्तमासाहियसत्तवरिसाणि । उज्जमणे वासुपुज्जबिंबपइट्ठा ॥ १४ ॥ तहा अंबातवो पंचसु किण्हपंचमीसु एगासणगाइ-नेमिनाह-अंबापूयापुर्व किज्जइ ॥ १५ ॥ तहा एगारससु सुक्कएगारसीसु सुयदेवयापूया मोणोपवासकरणजुत्तो सुयदेवया तवो ॥ १६ ॥ तहा नाणपंचमि छ, अकम्ममासे वजित्ता मन्गसिर-माह-फग्गुण-वइसाइ-जेट-आसाढेसु सुक्क॥ पंचमीए जिणनाहपूयापुचं तयग्गविणिवेसियमहत्थपोत्थयं विहियपंचवण्णकुसुमोवयारो अखंडक्खयाभिलिहियपसत्थसत्थिओ घयपडिपुन्नपबोहियरत्तपंचवट्टिपईवो फलबलिविहाणपुर्व पडिवज्जेइ । उववासबंभचेरविहाणेण । एवं पडिमासं पंचमासकरणे लहुई । महई उण पंचवरिसाणि । विसेसो उण पंचगुणपूयाविहाणं, पंचपोत्थयपूयणं, पंचसत्थियदाणं, पंचपईवबोहणं च त्ति । केइ पुण एवं जहन्नं पंचमासाहियपंचहिं वरिसेहि; मज्झिमं तु दसमासाहियदसवरिसेहिं; उक्टिं पुण जावजीवं ति भणंति । असहणो पुण बालाई पंचसु नाण1s पंचमीसु इक्कासणे, तओ पंचसु निबीए, तओ पंचसु आयंबिले, तओ पंचसु उववासे कुणंति ति । उज्जमणं पुण तीए आईए मज्झे अंते वा कुज्जा । तत्थ सविभवाणुसारेण जिणपूया-पुत्थयपंचयलेहण-संघदाणाइ कायवं । पंचविहबलिवित्थारो नाणग्गे, पंच ठवणियाओ, पंच मसीभायणाई, एवं लेहणीओ, पंचकवलियाओ, कट्ठगरणाइं, निक्खेवणाई, छिद्ददोरयाई, फुल्लियाओ, उत्तरियाओ। पट्टदुगुल्लाइपुत्थयवेट्टणयाइं । कुंपियाओ, पडलियाओ, जवमालियाओ, ठवणायरिया, ठवणायरियसिंहासणाई, मुहपोत्तियाओ, सिरिखंडियाओ, पिंगा"णियाओ, पट्टियाओ, वासकुंपगा; अन्नाइं वि जोडय-धूवकडुच्छय-कलस-भिंगारथाल–आरत्तियमाइ पंच पंच उवगरणाई दायबाई । सवित्थरुज्जमणे पुण सवं पंचवीसगुणं काय, । नाणपंचमीतवोदिणे पुत्थयपुरओ नाणस्स तइयधुइरूवे अन्ने वा नमोकारे पढिय, उद्वित्तु 'तमतिमिरपडल'इच्चाइदंडगं भणिय, काउस्सम्गनमोकारं चिंतिय, पारिय - देविंदवंदियपएहिं परूवियाणि नाणाणि केवलमणोहिमईसुयाणि । पंचावि पंचमगई सियपंचमीए पूया तवोगुणरयाण जियाण दितु ॥१॥ इच्चाइथुई दाऊण पुणो जाणुट्ठिओ नाणथुत्तं भणिय, 'बोधागाध'मिच्चाइनाणथुई पढइ त्ति । नाणचीवंदणविही ॥ १७ ॥ तहा अमावसाए, मयंतरेण दीवूसवामावसाए, पडिलिहियनंदीसरजिणभवणपूयापुर्व उववासाइसत्तवरिसाणि नंदीसरतवो ॥ १८ ॥ * तहा एगा पडिवया, दुन्नि दुइज्जाओ, तिन्नि तिज्जाओ, एवं जाव पंचदसीओ उववासा भवंति जत्थ सो सञ्चसुक्खसंपत्तितवो ॥ १९ ॥ ___ तहा चित्तपुन्नमासीए आरब्भ पुंडरीयगणहरपूयापुवमुववासाइणमन्नतरं तवो दुवालसपुनिमाओ पुंडरीयतवो ॥ २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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