Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 82
________________ ३४ विधिप्रपा। ६२७. सावओ कयाइ चारित्तम.हणीयकम्मक्खओवसमेणं पवजापरिणामे जाए दिक्ख पडिवज्जइ ति, तीए विही भण्णइ -- पवज्जादिणस्स पुवदिणम्मि संझासमये वयग्गाही सत्तो जहाविभूईए मंगलतूरसहिओ रयहरणाइवेससंगयछब्बएणं अविहवसुइनारीसिरम्मि दिनेणं समागम्म गुरुवसहीए, समोसरणाइ-पूयसकारं अक्खयवत्तनालिएरसहियं करेता गुरूणं पाए वंदइ । तओ गुरू वासचंदणअक्खए अहिमंतिऊण सीसस्स • सिरम्मि वासे खिवंतो वद्धमाणविज्जाईहिं अट्टाओ अहिवासिय कुसुभरत्तदसियाए उग्गाहेइ, चंदणं अक्खए य सिरे देइ । तओ रयहरणाइवेसमहिवासिय तस्स मज्झे पूगीफलानि पंच सत्त नव पणवीसं वा पक्खिवावेइ । भूइपोट्टलियं च वेसछब्बएणं अविहवनारीसिरदिन्नएणं उभओ पासट्टिएसु निक्कोसखग्गहत्थेसु दोसु पञ्चइयनरेसु गिहं गंतूण जिणबिंबे पूइत्ता, तेसिं पुरओ सासणदेवयापुरो वा छब्बयं ठवित्ता, रयणि जग्गति । सावया सावियाओ य देव-गुरूणं चउबिहसंघस्स य गीयाणि गायमाणीओ चिट्ठति, जाव पभायवेला । तओ ॥ पभाए गुरूणं चउविहसंघसहियाणं गिहमागयाणं पूर्व काऊण अमारिघोसणापुवयं दाणं दावितो जहोचियं सयणाइवग्गं सम्माणेइ । तओ तस्स माइपिइबंधुवग्गो गुरूणं पाए वंदिय भणइ -'इच्छाकारेण सच्चित्तभिक्खं पडिग्गाहेह ।' गुरू भणइ -'इच्छामो, वट्टमाणजोगेण ।' तओ गुरुसहिओ जाणाइसु आरूढो मंगलतूररवेणं सयमेव दाणं दितो जिणभवणे समागच्छइ । लागाइकारणे पच्छा वा । तओ जिणाणं पूर्व करेइ । तओ अक्खयाणं अंजलिं नालिएरसहियं भरिऊणं पयाहिणत्तयं नमोक्कारपुवयं देइ । तओ पुवोत्तविहिणा 15 पुप्फे अक्खए वा खेवाविज्जइ, परिक्खानिमित्तं । तओ पच्छा इरियावाहियं पडिक्कमिऊण खमासमणपुवयं पुचिं पडिवन्नसम्मत्ताइगुणो सीसो भणइ – 'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं सवविरइसामाइयआरोवणत्थं चेइयाई वंदावेह' । जो पुण अपडिवन्नसम्मत्ताइगुणो सो 'सम्मत्तसामाइय-सबविरइसामाइयआरोवणत्थं' ति भणइ । गुरू आह-'वंदावेमो' । पुणरवि खमासमणं दाउं, गुरुपुरओ जाणूहि ठाइ । गुरू वि तस्स सीसे वासे खिवेइ । तओ गुरुणा सह चेइयाइं वंदेइ । गुरू वि सयमेव संतिनाह-संतिदेवयाइथुईओ देइ । सासण॥ देवयाकाउस्सग्गे उज्जोयगरचउक्कं चंदेसुनिम्मलयरापज्जतं चिंतंति । गुरू वि पारित्ता थुई देइ, सेसा काउस्सग्गठिया सुगंति । पच्छा सो वि य उज्जोयगरं पढंति । तओ नमोकारतयं कडेति । तओ जाणूहिं ठाऊण सकत्थयं पंचपरमेट्टित्थवं च भणिति । तओ गुरू वेसमभिमंतेइ । पच्छा खमासमणं दाउं सीसो भणइ -'इच्छाकारेण संदिसह तुब्भे अम्हं रयहरणाइवेसं समप्पेह' । तओ नमोक्कारपुवं 'सुगृहीतं कारेह' त्ति भणंतो सीसदक्खिणबाहासंमुहं रओहरणदसियाओ करितो पुवाभिमुहो उत्तराभिमहो वा वेसं समप्पेड । - पुणो खमासमणं दाउं, रयहरणाइवेसं गहाय, ईसाणदिसाए गंतूण आभरणाइअलंकारं ओमुयइ । वेसं परिहरेइ । पयाहिणावत्तं । चउरंगुलोवरि कप्पियकेसो गुरुपासमागम्म खमासमणं दाउं भणइ 'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं अड्डे गिण्हह' । पुणो खमासमणं दाउं उद्घट्टियस्स ईसिमोणयकायस्स नमोक्कारतिगमुच्चरित्तु उद्धढिओ गुरू पत्ताए लग्गवेलाए समकालनाडीदुगपवाहवजं अभितरपविसमाणसासं अक्खलियं अट्टातिगं गिण्हइ । तस्समीवढिओ साहू सदसवत्थेणं अट्टाओ पडिच्छइ । तओ खमासमणं दाउं सीसो भणइ - " 'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं सवविरइसामाइयआरोवणत्थं काउस्सग्गं करावेह । खमासमणपुवयं 'सबविरइसामाइयआरोवणत्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थूससिएण' मिच्चाइ पढिय, उज्जोयगरं सागरवरगंभीरापजंतं सीसो गुरू य दो वि चितंति । पारित्ता उज्जोयगरं भणति । तओ खमासमणं दाऊं सीसो भणइ -'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं सबविरइसामाइयसुत्तं उच्चारावेह' । गुरू आह–'उच्चारावेमो' । पुणो खमासमणं दाऊण ईसिमोणयकाओ गुरुवयणमणुभणतो, नमोक्कारतिगपुवं सवविरइसामाइयसुत्तं वारतिगमुच्चरइ । गुरू मंतो t'शिखा' इति Aटि ब ध्नाति' इति B टि। 1 B सयणवरगं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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