Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 133
________________ प्रायश्चित्तविधि-पिण्डालोचनाविधानप्रकरण । चउगुरु अचित्तगुरु साहरिए' अह दायग त्ति थेराई । येर-पहु-पंड-वेविर-जरियंधचत्त-मत्त-उम्मत्ते ॥ ४९॥ छिन्नकरचरणगुष्विणिनियलंदुयबद्धबालवच्छाए। खंडइ पीसइ भुंजह जिमइ विरोलह दलइ सजियं ॥५०॥ ठवह बलिं ओयत्तइ पिढराइ तिहा सपचवाया जा। साहारणचोरियगं देह परकं परडं वा ॥५१॥ दितेसु एसु चउलहु चउगुरु पगलंतपाउयारूढे । कत्तइ लोढइ पिंजइ विक्खिणइ' पमहए य मासलहू ॥५२॥ छक्कायवग्गहत्था समणट्ठा णिक्खिवित्तु ते चेव । घहती गाहंती आरंभंतीई सहाणं ॥५३॥ भू-जल-सिहि-पवण-परित्तघट्टणागाढगाढपरियावे । उद्दवणे वि य कमसो पणगं लहु-गुरुयमांस-चउलहुया ॥५४॥ लहुमासाई चउगुरु अंतं विगलेसु तह अणंतवणे । पंचिंदिएसु गुरुमासाइ जाव कल्लाणगं एगं ॥५५॥ एगाइ दसंतेसुं एगाइ दसतयं सपच्छित्तं ।। तेण परं दसगं चिय बहुएसु वि सगल-विगलेसु ॥५६॥ पुढवाइ जिउम्मीसे चउलहु पणगं च बीयउम्मीसे । मिस्सपुढवाइ मीसे मासलहुं पावए साहू ॥५७॥ चउगुरु सचित्तअणंतमीसिए मिस्सणंतओम्मीसे। मासगुरु दुविहं पुण अपरिणयं दव-भावेहिं ॥५८॥ ओहेण दवभावापरिणयभेएसु दुसु वि चउ लहुयं । दवापरिणमिए पुण जं नाणत्तं तयं सुणह ॥ ५९॥ अपरिणयंमि छकाए' चउलहु पणगं च बीयअपरिणए। मीसछक्कायापरिणयदोसे लहुमासमाहंसु॥६०॥ सञ्चित्तणंतकाए अपरिणए चउगुरू मुणेयर्छ । मीसाणंत अपरिणए गुरुमासो भासिओ गुरुणा ॥ ६१॥ घउलहुयं लहइ मुणी लित्ते दहिमाइ लित्तकरमत्ते'। छडियमिह पुढवाइसु अणंतर-परंपरं ति दुहा ॥ १२ ॥ छड्डियसचित्तभू-दग-सिहि-पवण-परित्तवणसह-तसेसु । चउलहुय-मासलहुया अणंतर-परंपरेसु कमा ॥ ६३ ॥ अहरै-तिरोछड्डियए मीसेसु य तेसु मासलहु पणगा। अइर-तिरोछड्डियए पणगं पत्तेयणंतबीएसु॥६४॥ 1 A विक्खिणिइ । 2 'स्वस्थानमेवाह । 3 मासशब्दः प्रत्येकं अभिसम्बध्यते। 4 अनेनोल्लेखेनान्येष्वपि प्रायश्चित्तस्थानेष्वयमेव न्यायः। 5 अत्रापि संहृतदोषवन मेदाख्यानम् । इति B टिप्पणी। 6A चउगुण । 7 गृह्यमाणे। 8 अप्तसप्तमीकं । गृह्यमाणे। 10 अधिर इति साक्षात् , तिर इति परंपर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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