Book Title: Updeshmala ऊika
Author(s): Dharmdas Gani, Ramvijay Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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मालाटी.
नपदेश-
I ॥५५॥
॥ मूलम् ॥-वरमनमकिरीडधरो । चिंचन चवलकुंडलाहरणो ॥ सक्को हिनवएसा । एरावणवाहणो जान ॥ ५० ॥ व्याख्या—'वर इति' वरः प्रधानः 'मनडशब्देन ' अग्रेतनन्नागो यस्यैतादृशं यन्मुकुटं तस्य धरो धारको वरमुकुटधारीत्यर्थः, 'चंचश्नति' बाहुरदाद्यान्नरणोपशोनितः, कर्णयोश्चपलकुंमलानरणः, एतादृशः शक्र इंशे हितोपदेशाइितकारिजिनोपदेशादैरावणवाहनो जातः समुत्पत्रः कार्तिकश्रेष्टिनवे हितजिनोपदेशश्रवणादेव स इंश्त्वं प्राप्त इत्यर्थः ॥ ५० ॥
॥ मलम् ॥-रयणुजलाइं जाई। बत्तीसविमाणसयसहस्साइं॥ वजहरेण वराई। हिनवएसेण लाई ॥ ५१ ॥ व्याख्या-' रयणुनि' रत्नरुज्ज्वलानि यानि देदीप्यमानानि
त्रिंशसंख्याकानि विमानशतसहस्राणि, हात्रिंशहिमानलक्षाणीत्यर्थः, वजायुधधारकेणेंइण वराणि प्रवराणि हितोपदेशेन वीतरागवचनाराधनेनैव लब्धानि प्राप्तानि ॥ १॥
॥ मूलम् ॥-सुरवश्समं विनूई । जं पत्तो नरहचक्कवट्टीवि ॥ मणुस्सलोगपहुतं ।जाहितवएसेण ॥ ५५ ॥ व्याख्या-' सुरवत्ति ' सुरपतिसमामिंस्तुल्यां विनूतिं संपत्ति
णा
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