Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
View full book text ________________
स्तवन -७ (राग - प्राचीन)
सुमतिनाथ गुण शुं मिलीजी, वाधे मुज मन प्रीती, तेल बींदु जेम विस्तरेजी, जेम जल मांहि भलीरीति, सोभागीजीनशुं,
लाग्यो अविहड रंग ......॥१॥ सज्जन शुंजे प्रीतडीजी, छानी ते न रखाय; परिमल कस्तुरी तणोजी,
महीमाहे महकाय .....॥२॥ आंगळीये नवि मेरू ढंकाये, छाबडिये रवितेज; अंजलीमां जेम गंग न माये,
तिम मुज मन प्रभु हेज. ॥३॥ हुओ छीपे नही अंधर अरूण, जिम, खाता पान सुरंग; पीवत भरभर प्रभु गुण प्याला,
तिम मुज प्रेम अभंग... ॥४॥ ढांकी ईक्षु परालशुंजी, न लहे तेह विस्तार वाचक यश कहे प्रभु तणोजी,
तिम मुज प्रेम प्रकार.... ॥५॥
Loading... Page Navigation 1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68