Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ स्तवन - ३१ (राग : शास्त्रीय) दरिसन की अभिलाष प्रभुजी तेरे दरिशन की अभिलाष सदा लगे मुझ प्यास प्रभुजी तेरे.... तीन भवन मे फीर फीर आया, पुण्ये हवे तेरी पास तुम सरीखा नही देव अनेरा, समजी आq तारी पास; शांत सुधारस भविजन पीके, सफल करे निज आश ॥ २ ॥ गुण गणतां कोई पार न आवे, आतम गुण कहेवाय; अनेक लक्षणे शोभती काया, देखी जगत हरखाय ॥ ३ ॥ मोह सुभट का राजय विखेरी, खुल गया ज्ञान प्रकाश; भव्य मनुष्य को शिवपंथ जोडी, मुक्तिपुरी लीयो वास ॥ ४ ॥ धर्मघोरी जिनराज की भक्ति, आपे अक्षय सुख सार; आळस मुकी जे जिनपद ध्यावे, उतारे भवजल पार ॥५॥ दोष रहित अरिहंत ने जाणी, दिल भरम मिट जाय; प्रेमधरी प्रभु चरण नमीने, मान विजय खुश थाय ॥६॥ - @@@@@@@@37座图图图图图

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68