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श्रमण सूत्र
जा नहीं सकता, हाँ, उसे संथारा की साधना के द्वाग सफल अवश्य बनाया जा सकता है।
रात्रि में सोजाना भी एक छोटी सी अल्पकालिक मृत्य है । सोते समय मनुष्य की चेतना शक्ति धुंधली पड़ जाती हैं, शरीर निश्चेष्ट-सा एवं सावधानता से शून्य हो जाता है । और तो क्या, यात्मरक्षा का भी उम समय कुछ प्रयत्न नहीं हो पाता। अतः जैनशास्त्रकार प्रतिदिन रात्रि में सोते समय सागारी संथारा करने का विधान करते हैं, यही संथारा पौरुषी है । सोने के बाद पता नहीं क्या होगा ? प्रातः काल सुवपूर्वक शव्या से उठभी सकेंगे अथवा नहीं ? याजभी लोगों में कहावत है---"जिसके बीच में रात, उमकी क्या बात ? अतएव शास्त्रकार प्रतिदिन सावधान रहने की प्रेरणा करते हैं और कहते हैं कि जीवन के मोह में मृत्यु को न भूल जाओ, उसे प्रतिदिन याद रक्खयो । फलस्वरूप सोते समय भी अपने आपको ममताभाव एवं राग द्वेष से हटाकर संयमभाव में संलग करो, बाह्य जगत् से मुंह मोड़कर अन्तर्जगत् में प्रवेश करो। मोते समय जो भावना बनाई जाती है प्रायः वही स्वप्न में भी रहा करती है। अतः संथारा के रूप में सोते समय यदि विशुद्ध भावना है तो वह स्वप्न में भी गतिशील रहेगी, और तुम्हारे जीवन को अविशुद्ध न होने देगी।]
अणुजाणह परमगुरु !
गुरुगुण-रयणेहिं मंडियसरीरा । बहु पडिपुन्ना पोरिसि,
राइयसंथारए ठामि ॥१॥
[संथारा के लिए प्राज्ञा] हे श्रेा गुणरत्नों से अलंकृत परम गुरु ! श्राप मुझको संथारा करने को प्राज्ञा दीजिए । एक प्रहर परिपूर्ण बीत चुका है, इस लिए मैं रात्रि-संथारा करना चाहता हूँ।
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