Book Title: Shraman Sutra
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 730
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बोल-संग्रह ४२६ (३१) टड्डर -- ऊँचे स्वर से अभद्र रूप में वन्दना सूत्र का उच्चारण करना । M (३२) चुड्ली - अर्द्धदग्ध अर्थात् अधजले काष्ठ की तरह रजोहरण को सिरे से पकड़ कर उसे घुमाते हुए वन्दन करना । [ प्रवचन सारोद्धार, वन्दनाद्वार ] ( १६ ) तेतीस शातनाएँ ( १ ) मार्ग में रत्नाधिक ( दीक्षा में बड़े ) से आगे चलना । ( २ ) मार्ग में रत्नाधिक के बराबर चलना । ( ३ ) मार्ग में रत्नाधिक के पीछे ड़कर चलना | ( ४-६ ) रत्नाधिक के ग्रागे बराबर में तथा पीछे अड़ कर खड़े होना । ( ७-९ ) रत्नाधिक के आगे, बराबर तथा पीछे अड़कर बैठना । ( १० ) रत्नाधिक और शिष्य विचार-भूमि. ( जंगल में ) गए हों वहाँ रत्नाधिक से पूर्व श्राचमन - शौच करना । (११) बाहर से उपाश्रय में लौटने पर रत्नाधिक से पहले पथ की आलोचना करना (१२) रात्रि में रत्नाधिक की ओर से 'कौन जागता है ?' पूछने जागते हुए भी उत्तर न देना । पर (१३) जिस व्यक्ति से रत्नाधिक को पहले बात-चीत करनी चाहिए, उससे पहले स्वयं ही बात-चीत करना । (१४) आहार आदि की आलोचना प्रथम दूसरे साधुओं के श्रागे करने के बाद रत्नाधिक के आगे करना । (१५) आहार आदि प्रथम दूसरे साधुत्रों को दिखला कर बाद में रत्नाधिक को दिखलाना । For Private And Personal

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