Book Title: Shraman Sutra
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 726
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बोल-संग्रह ४२५ सिंहासनारूढ़ न हो, तब तक स्वाध्याय करना मना है। नये राजा के हो जाने के बाद भी एक दिन-रात तक स्वाध्याय न करना चाहिए । राजा के विद्यमान रहते भी यदि अशान्ति एवं उपद्रव हो जाय तो जब तक अशान्ति रहे तब तक अस्वाध्याय रखना चाहिए । शान्ति एवं व्यवस्था हो जाने के बाद भी एक अहोरात्र के लिए अस्वाध्याय रखा जाता है। राजमंत्री की, गाँव के मुखिया की, शय्यातर की, तथा उपाश्रय के आस-पास में सात घरों के अन्दर अन्य किसी की मृत्यु हो जाय तो एक दिन-रात के लिए अस्वाध्याय रखना चाहिए । (१६) राजव्युग्रह-राजाओं के बीच संग्राम हो जाय तो शान्ति होने तक तथा उसके बाद भी एक अहोरात्र तक स्वाध्याय न करना चाहिए। (२०) औदारिकशरीर-उपाश्रय में पञ्चेन्द्रिय तिर्यच का अथवा मनुष्य का निर्जीव शरीर पड़ा हो तो सौ हाथ के अन्दर स्वाध्याय न करना चाहिए । ___ ये दश औदारिक सम्बन्धी अस्वाध्याय हैं । चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण को श्रौदारिक अस्वाध्याय में इसलिए गिना है कि उनके विमान पृथ्वी के बने होते हैं। (२१-२८) चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा-श्राषाढ़ पूर्णिमा, श्राश्विन पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा-ये चार महोत्सव हैं । उक्त महापूर्णिमाओं के बाद अाने वाली प्रतिपदा महाप्रतिपदा कहलाती है। चारों महापूर्णिमाओं और चारों महाप्रतिपदानों में स्वाध्याय न करना चाहिए। . (२६-३२) प्रातःकाल, दुपहर, सायंकाल और अर्द्ध रात्रि-ये चार सन्ध्याकाल हैं। इन सन्ध्यात्रों में भी दो घड़ी तक स्वाध्याय न करना चाहिए। [स्थानांग सूत्र ] For Private And Personal

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