Book Title: Samdarshi Acharya Haribhadra
Author(s): Jinvijay, Sukhlal Sanghavi, Shantilal M Jain
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 35
________________ दर्शन एव योग के विकास मे हरिभद्र का स्थान [२१ एकरस हो गईं या समा गईं। यह है आर्यवर्ग के द्वारा साधित भाषानो के संस्कृतीकरण की आद्य सिद्धि । परन्तु भाषाओ के परस्पर सक्रमण के साथ ही रक्त का सम्मिश्रण भी चलता था। इसके साथ ही सामाजिक एवं सास्कृतिक जीवन भी परस्पर के मिश्रण के आधार पर निर्मित होता गया और जो प्राचीन आर्येतर जातियाँ थी वे अपने अनेक सामाजिक रीति-रिवाजो और सास्कृतिक अंगो के साथ आर्य वर्ग के दायरे मे दाखिल होती गई । फलत. 'आर्य' शब्द, जो प्रारम्भ मे एक छोटे-से वर्ग तक मर्यादित था, अब एक विशाल समाज का निर्देशक बन गया और उसमे वर्ण अर्थात् रंग, जन्म, कर्म एवं गुण आदि के आधार पर चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था की गई। इस चातुर्वर्ण्य का फैलावा देशव्यापी बन गया। यह हुई आर्गीकरण की प्रक्रिया । इसमे 'आर्य' पद वर्गवाची न रहकर उदात्त गुण-कर्म सूचक बन गया । १० __ आर्वीकरण की प्रक्रिया के प्रारम्भ के साथ ही धर्म एव तत्त्वज्ञान की परस्पर संक्रान्ति भी शुरू हो ही गई थी। आर्येतर जातियो के धार्मिक और तात्त्विक संस्कार आर्यवर्ग के वैसे संस्कारों से बहुत भिन्न थे । आर्य मुख्यतया प्रकृति की विविध शक्ति की या उसके विविध पहलुओ की आकाशीय अथवा स्वर्गीय देव के रूप मे, अथवा तो एक गूढ शक्ति के विविध प्राकृतिक आविर्भावो के रूप मे स्तुति करते थे। उनका स्तवन जब यजन या यज्ञविधि मे परिणत हुआ, तब उस विधि मे अग्निकल्प मुख्य था। अग्नि में मंत्रपूर्वक आहुतियां देने का और अधिष्ठापक देवो को प्रसन्न करने के धर्म का मुख्य रूप से आर्यवर्ग ने विकास किया,११ जब कि आर्येतर जातियो मे से द्राविड जैसी जातियो की धार्मिक वृत्ति सर्वथा भिन्न प्रकार की थी। वे स्वर्गीय ८ उपयुक्त व्याख्यान पृष्ठ १७ : "The language they brought became an instrument of the greatest power in the setting up of Indian civilisation It was the Vedic language, the Old Indo-Aryan speech, which later on as Sanskrit was transformed into one of the greatest languages of civilisation in which the composite culture of ancient India found its most natural vehicle" ६ वही, पृ है। १० वही, पृ ११ "The name of one dominant race, Arya, very soon lost its narrow ethnic significance or application and became rather a word to denote nobility and aristocracy of character and temperament With the general acceptance of the Aryan language in North India, and with the admission of its prestige in the South as well, the fact that this language was profoundly modiffied within

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