________________
१२ म० म० नागेश भट्टकी प्रदीपटीका उद्योत, समय-१० वीं शताब्दी । १३ वैद्यनाथभट्टकी प्रदीपटीका प्रभा, समय-१७ वीं शताब्दी। १४ महेश्वर भट्टाचार्यकी काव्यप्रकाशादर्श टीका, समय-ई० १६०० शताब्दी । १५ भीमसेन दीक्षितकी सुधासागर टीका, समय-ई० १८३६ । १६ म० म० गोकुलनाथकी काव्यप्रकाशविरणटीका, समय-ई० १८०० श० । १७ म० म० वामनाचार्यकी बालबोधिनी, समय-ई० १८८२। मम्मटभट्ने अपने ग्रन्यमें अभिनवगुप्त और नबसाहसाङ्कचरितका उल्लेख किया है।
उन्होंने उदात्तालङ्कारमें राजा भोजकी प्रशंसांका पद्य दिया है अतः ये भोजके समकालिक वा कुछ पीछे हुए हैं । अलङ्कारसर्वस्वमें रुय्यकने भी इनका निर्देश किया है ।
१८ अलङ्कारसर्वस्व, कर्ता-रुय्यक, समय-ई० १२ शतक। स्य्यक काश्मीरनिवासी थे, इनका दूसरा नाम रुचक था । इन्होंने अपने पिता तिलकसे ही साहित्यका अध्ययन किया था। ये काश्मीरके राजा जयसिंहके सान्धिविग्रहिक मङ्ख वा मङ्खकके गुरु थे । इनके अन्य ग्रन्थ अलङ्काराऽनुसा रणी, काव्यप्रकाणसङ्केत, नाटकमोमांसा, व्यक्तिविवेकविधार, श्रीकण्ठस्तव, सहृदयलीला, साहित्यमीमांसा, हर्षचरितवार्तिक, अलङ्कारमजरी और अलङ्कारवातिक है। इनका प्रकृत ग्रन्थ अलकार. सर्वस्व, अलङ्कारशास्त्रका प्रख्यात ग्रन्थ और ध्वनिमार्गका अनुयायी है । इसमें सूत्र, वृत्ति और उदाहरण हैं। इसमें कुल ८८ सूत्र है, उदाहरण अन्य ग्रन्थोंसे लिए गये है। इसमें काव्यप्रकाशसे अधिक अलङ्कार हैं। इसमें शब्दाऽलङ्कार, अर्थाऽलङ्कार, एवम् रसवत्, प्रेयः, ऊर्जस्वी, समाहित, भावोदय, भावसन्धि, भावशबल, संसृष्टि और सङ्कर इतने अलङ्कारवर्ग सविस्तर और सोदाहरण वणित हैं । इस ग्रन्थमें तीन टीकाएं है, जिनमें काश्मीरवासी जयरथने स्थ्यकके ५० वर्षों के अनन्तर "विमशिनी" नामकी टीका लिखी है। दूसरी टीका केरलके समुद्रबन्ध से विरचित है । यह लगभग ई० १६०० शताब्दीकी है । इनके सिवाय अन्य टोका उन्हीके शिष्य श्रीकण्ठचरित महाकाव्यके कर्ता मङ्खककी भी सुनी गई है। इसी तहर विद्याचक्रवर्तीकी “अलङ्कारः सञ्जीविनी" नामकी तीसरी टीका है । विश्वनाथ कविराजने दशम परिच्छेदमें बहुत जगह इस ग्रन्थका आश्रय लिया है और कहीं-कहीं खण्डन भी किया है । एकाबली और कुवलयानन्दमें भी अलारसर्वस्वका प्रभाव पड़ा है। रुय्यकने पुनरुक्तवदाभास, छेकाs. नुप्रास, वत्यनुप्रास, यमक, लाटानुप्रास और चित्रका निरूपण किया है ! इन्होंने अपने ग्रन्थमें उपमा आदि ७५ अर्थाऽलङ्करोंका विवचन किया है तथा जिनमें विकल्प और विचित्र दो नवीन अलङ्कारोका भी समावेश है।
१९ वाग्भटाऽलङ्कार, कर्ता-वाग्भट, समय-ई० ११४० वाग्भट नामके दो अलङ्कारशास्त्री प्रसिद्ध हैं, दोनों ही जैन हैं, उनमें ये प्रथम हैं। इनका प्राकृत नाम "वाहड" है, सिंहदेवके पुत्र भी "वाग्भट" नामबाले थे, जो आयुर्वेदके प्रख्यात ग्रन्थ.