Book Title: Prashnottar Chintamani
Author(s): Anupchand Malukchand Sheth
Publisher: Jain Gyan Prasarak Mandal

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Page 265
________________ ( २५४ ) पाणी ज्यां जाय, त्यां मलतुं नथी. तो ते परिसह पण वखते खमवो पडे छे. वली सचिच जलमां समये समये जीव उपजे छे ने विणसे छे तेनो पण आरंभ टली जाय छे. तेथी श्रावकने सचित्तनो त्याग थाय छे. तेना अतिचार पण कह्या छे. वली महंत श्रावक श्रानंदजी प्रमुखे सचित्तनो त्याग कर्यो छे ने आरंभ मोकलो छे. आ सचित्त त्याग ७ मी पडिमामां कर्यो छे अने आरंभनो त्याग ८ मी पडिमामां छे. ए अधिकार उपासकदशांगनी छापेली प्रतमां पाने ६६ मे छे. वली आठमी पडिमामां पोताने आरंभ करवानो त्याग छे, पण कराववानो त्याग नथी. प्रारंभ कराववानो नवमी पडिमामां त्याग छे. वास्ते आरंभ मोकलो छे तो पण श्रानंदादिक श्रावके सचित्तनो त्याग कर्यो तेम ज हालना श्रावकने पण करवा योग्य छे. प्रश्नः-१८३ श्रावक देरासरमां जाय, त्यां सारी आंगी रचेली होय तथा गायन थतुं होय तो त्यां तेणे शुं भाववुं ? उत्तरः- जे जे पुरुषोए आंगीना काममां पैसा खर्चा छे ते ते पुरुषो नी अनुमोदना करवी जे धन्य छे ! संसारना काममां पैसा वापरवा बंध करी प्रभुभक्तिमां पैसा वापरे छे ! मारुं चित्त क्यारे एवं थशे जे हुं एवी प्रभुभक्ति करीश, वली श्रांगीना बनावनार पुरुषनी अनुमोदना करे जे पोतानुं काम छोडी आंगी करवामां पोतानों काल गुमावे छे. म. हारा भाव एवा क्यारे थशे ? वली गायन थतुं होय तो जे जे प्रभुना गुण गाय छे तेमां लीन थवुं, पण गायनना विषयमां लीन थवुं नहि. वली दृष्टी पण प्रभु सामी स्थापवी, पण गानारना सामी स्थापवी नहि. कारण के प्रभु शिवायनी त्रण दिशा जोवानुं दशत्रीकमां वर्जवुं कह्युं छे. माटे प्रभु सामी दृष्टि स्थापवी, वली राग सारो गाय छे तेने सारु भाववुं जे मने एवं गातां आवडतुं होत तो प्रभुना गुण गायनमां हुं पण गात. एम भाववुं पण रागमां लीन न थवुं. बाल जीवने तो प्रभुनुं जे जे प्रशंसे छे ते ते परंपराये गुणदायक छे, पण विवेकीने तो प्रभुना गुण Scanned by CamScanner

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