Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan

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Page 58
________________ 49. दूसरा अध्याय काल द्रव्य की विशेषताएँ : उपर्युक्त विवेचन के आधार पर काल द्रव्य की निम्नांकित विशेषताएँ है: काल एक स्वतंत्र द्रव्य है। काल का अस्तित्व है। काल कायवान् नहीं है। काल नित्य है: काल अमूर्तिक है। काल द्रव्य परिणमन का सहायक कारण है। काल का लक्षण वर्तना है। काल निष्क्रिय है। काल का भाव पारिणामिक है। काल अकर्ता है। काल के भेद : काल के दो भेद है : (1) व्यवहार काल (2) निश्चय काल। जीव और पुद्गलों के परिणाम से उत्पन्न होने वाला व्यवहार काल है तथा जो अमूर्त एवम् वर्तना लक्षण से युक्त है, वह निश्चय काल है 1351 काल द्रव्य व्यवहार काल निश्चय काल। उक्त विश्लेषण के आधार पर यह निर्विवादतः सिद्ध है कि द्रव्य सत् स्वरुप में स्थित होने के कारण नित्य एंव अविनाशी है। इसीलिए दार्शनिक जगत् में द्रव्य स्वरुप भेद विमर्श एक महत्वपूर्ण विषय है। ___ इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दार्शनिक जगत में द्रव्यानुयोग संबन्धी तत्व- द्रव्य का विवेचन एक महत्वपूर्ण विषय है। द्रव्यानुयोग विषयक ग्रन्थों में प्रशमरति प्रकरण का प्रमुख स्थान है। इसमें एकार्थवाची तत्व एवं द्रव्य का सम्यक् निरुपण किया गया है, जो अत्यंत ठोस एवं वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है। साथ ही इसके ग्रन्थकार आचार्य उमास्वाति ने अंत में इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि शुद्ध तत्व एवं शुद्ध द्रव्य को अपना कर ही मोक्ष पाया जा सकता है, जो भारतीय दार्शनिकों का चरम लक्ष्य रहा है।

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