Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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स्थिति बंध :
चतुर्थ अध्याय
स्थिति बंध दो प्रकार के होते हैं- (1) उत्कृष्ट स्थिति बंध ( 2 ) जघन्य स्थिति ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय का उत्कृष्ट स्थिति बंध तीस कोड़ा - कोड़ी सागर प्रमाण होता है । मोहनीय का उत्कृष्ट स्थिति बंध कोड़ा - कोड़ी सागर प्रमाण होता है। नाम और गोत्र का उत्कृष्ट स्थिति बंध बीस कीड़ा - कौड़ी सागर प्रमाण है । वेदनीय का जघन्य स्थिति बंध बारह मुहूर्त होता है। नाम और गोत्र का जघन्य स्थितिबंध आठ मुहूर्त्त होता है । शेष कर्मों का अन्तरमुहूर्त्त स्थिति है '
अनुभाग बंध :
अनुभाग का अर्थ होता है शक्ति । प्रकृति में अनुभाग का अर्थ कर्मों की फल देने की शक्ति विशेष है। विपाक को अनुभाग बंध कहा गया है। शुभ-अशुभ कर्मों का जब बंध होता है, उसी समय उसमें रस विशेष भी जान पड़ता है। उस रस विशेष को विपाक कहते हैं । जब गति आदि स्थानों में कर्म का उदय होता है, तब वह विपाक अपने-अपने नाम के अनुसार होता है 7 । कषाय से अनुभाग बंध होता है और लेश्या की विशेषता से स्थिति और विपाक में विशेषता आती है ।
प्रदेश बंध :
बंध का चौथा भेद प्रदेश बंध है। प्रशमरति प्रकरण में इसके स्वरुप का कथन किया गया है तथा बतलाया गया है कि एक पुद्गल परमाणु जितना स्थान घेरता है, वह प्रदेश बंध है। उपचार से पुद्गल परमाणु भी प्रदेश कहलाता है । अतः पुद्गल कर्मों के प्रदेशों का जीव के प्रदेशों के साथ बंध होना, प्रदेश बंध कहलाता है। कर्म दलिकों के समूह को प्रदेश बंध कहा गया है । जिस प्रकार एक आत्म- प्रदेश में अनन्त दलिक रहते हैं।, उसी प्रकार अन्य कर्मों में भी अनन्त दलिक (प्रदेश) स्थित रहते हैं ।
कर्म बंध के कारण :
प्रशमरति प्रकरण के द्वितीय अधिकार मे कर्म-बंध का मूल कारण कषाय को माना गया है । कषाय के स्वरुप का कथन कर बतलाया गया है कि जिसमें जीव कर्षे उसे कष अर्थात् संसार कहते हैं और संसार के उपादान कारणों को कषाय कहते हैं 10 1
कषाय-भेद :
कषाय के दो भेद बतलाये गये हैं- ( 1 ) ममकार और ( 2 ) अहंकार । ममत्व भाव को ममकार और गर्व को अहंकार कहा गया है। राग-द्वेष को इन्हीं के नामान्तर बतलाये गये हैं 11 । ममकार का नाम राग और अहंकार का नाम द्वेष है। माया और लोभ कषाय के युगल नाम राग और क्रोध तथा मान का संयुक्त नाम द्वेष है। अर्थात् माया - लोभ को राग और मान