Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Author(s): Manjubala
Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
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दूसरा अध्याय है। इसकी सभी विशेषताएँ धर्मास्तिकाय की तरह है। अंतर केवल इतना ही है कि धर्मास्तिकाय गति में सहायक कारण है और अधर्मास्तिकाय स्थिति में कारण है। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार पथिकों के लिए छाया स्थित होने में सहायता करती है, उसी प्रकार से पुद्गल और जीव को स्थित होने में अधर्मास्तिकाय सहायक निमित्त कारण है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि जो रुकना नही चाहते, उन्हें जबरदस्ती रुकने के लिए प्रेरित करती हो। इस प्रकार अधर्मास्तिकाय स्थिति में निमित्त कारण है, प्रेरक कारण नहीं 116
आकाश द्रव्य :
जैन दर्शन में मान्य छः द्रव्यों में एक ऐसे भी द्रव्य की कल्पना की गयी है, जिसमें जीवादि पाँच द्रव्य रहते हैं। ऐसे द्रव्य को आकाश कहा गया है। प्रशमरति प्रकरण में आकाश की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि जो द्रव्यों को अवकाश देता है, वह आकाश है117। इस प्रकार की शक्ति अन्य किसी भी द्रव्य में नहीं है। अतः अवगाहन विशेष शक्ति के कारण आकाश अन्य द्रव्यों से भिन्न द्रव्य है। यह आकाश द्रव्य अस्तिकाय स्वरुप वाला118, नित्य, अवस्थित, अखण्ड119, अरुपी,120 निष्क्रिय, पारिणामिक भावला121, एक ईकाई रुप एवं अनन्त प्रदेश वाला है। .... आकाश द्रव्य का उपकार समस्त द्रव्यों को अवकाश देना है 123 | जिस प्रकार स्वयं ही
खेती में लगे हुए किसानों को वर्षा सहायक होती है, किन्तु, खेती न करनेवाले किसानों की बलपूर्वक खेती में नही लगाती है, जिस प्रकार मेघ की गर्जना को सुनकर मादा बगुलाओं के गर्भाधान अथवा प्रसव होता है। किन्तु, यदि बगुला स्वयं ही प्रसव न करे तो मेघ गर्जना उसे बलपूर्वक प्रसव नही कराती, उसी प्रकार आकाश द्रव्य स्वयं ही अवकाश के इच्छुक द्रव्य को अवकाश दान करता है। वह बलपूर्वक किसी को अवकाश नहीं देता । इस प्रकार आकाश द्रव्य अपने कार्यों के प्रति उदासीन कारण है, प्रेरक कारण नहीं है 1241 आकाश द्रव्य की विशेषताएँ :
उक्त तथ्यों के आधार पर आकाश द्रव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं: आकाश द्रव्य नित्य है। आकाश द्रव्य उपस्थित है। यह द्रव्य अल्पी है। यह एक अखंड द्रव्य है। यह निष्क्रिय है। यह सप्रदेशी है। यह उपर, नीचे, तिरछे सर्वत्र फैला है। अवगाहना देना इसका उपकार है। यह द्रव्य अचेतन है। आकाश द्रव्य स्वयं अपने आधार से स्थित है, दूसरा कोई अन्य आधार नहीं है। ....
आकाश द्रव्य के भेद :
आचार्य उमास्वाति ने प्रशमरति प्रकरण में आकाश द्रव्य के दो भेद किया है : (1) लोकाकाश और अलोकाकाश । जितने आकाश में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल