Book Title: Praman Paribhasha
Author(s): Dharmsuri, Nyayvijay
Publisher: Harashchand Bhurabhai

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Page 15
________________ अहम् । शास्त्रविशारदजैनाचार्यश्रीविजयधर्मसूरिविरचिता प्रमाणपरिभाषा WOROन्यायविशारद-न्यायतीर्थमुनिराजश्रीन्यायविजयनिर्मितया न्यायालङ्कारनाम्न्या टीकया विभूषिता । समूलं यो मोहं भवविटपिबीजं विनिरहन् • धियं लोकालोकाकलनकुशलां प्रादुरकरोत् । त्रिलोकीवन्द्यश्चाऽऽदिशदवितथं मोक्षपदवीं __ नमस्तस्मै कस्मैचन भगवते तीर्थपतये ॥१॥ उपचिस्कीर्षया किश्चिद् यथाबुद्धि समीहते । प्रमाणपरिभाषायां श्रीन्यायविजयो मुनिः ॥ २ ॥ . इह हि परममहिममहार्णवो जगदद्भुतचरितानुपालनसत्यापितपुरातनमहर्षिगणः परमकारुणिको भगवान् श्रीविजयधर्मसूरिविस्तृतगम्भीरपुरातनप्रबन्धाऽपरिपूरणीयप्रमाणतत्त्वपरिचिचीषाणां स्थूलधियामनतिप्रयासतस्तत्र व्युत्पत्याधानेन तत्तदाकरग्रन्थाधिकारयोग्यतासम्पादनेन चानुजिघृक्षया समुचितसूत्रपद्धति प्रमाणपरिभाषानामानं परिच्छेदपश्चकात्मकं लघीयांसं ग्रन्थं निर्मिमाणस्तावद् ग्रन्थप्रारम्भे प्रेक्षावत्प्रवृत्तिप्रयोजकमभिधेयमाविष्कर्तुमादिमं सूत्रमाह अथ प्रमाणपरिभाषा ॥१॥ ननु मङ्गलतिरस्कारेण प्रथमत एवाभिधेयमाविष्कुर्वतः सूरेः शिष्टसमयपरिहाणितः शिष्टतापरिपालनं नेषत्करम् , शिष्टा हि

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