Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

View full book text
Previous | Next

Page 478
________________ (४६७) तुलसी मनका दुःखकी प्रगट न करीये वात ॥ लीये न बेंची कोई ते भर्म जाय लाकात ॥९॥ तब लग तो सर्वे मला जब लग पदे म बोल ॥ काक कोयलका होत हे ऋतुवसंतमे तोल ॥१०॥ ते सुख सुख नहि मानिये अंतें आपद खान ॥ तजीयें सोनुं तरत ते जेहथी बेटे कान ॥ ११॥ ताबुस घेला तुरकडा विवाह घेली नार। होली घेला हंडुडा ए त्रणे एक अवतार ॥ १२॥ दश दृष्टांते दोहिलो पाम्यो नर अवतार । धर्म विना धोखो थशे जातां नरकद्वार ॥१॥ दुःखशें दर मत मानवी पडति बडति सदाच । मगन रहो धीरज धरो शशी पितक मम लार्य ॥२॥ दुर्जन संगतथी सदा सज्जमने दुःख धाय ।। एकवार कुसंगयी गाय गले घेट पाय ।।३।। दुर्जन संग न कीजिये दुर्जनथी सुख दूर ।। हंस काकनी प्रीतिथी पाम्बी दुःख मरपूर ॥१॥ दुर्जनकी कृपा बुरी भली सज्जनको त्रास ॥ जब सूरज गरमी करे तब वरसमकी ऑसि ॥ ५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500