Book Title: Niti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Author(s): Ravichandra Maharaj
Publisher: Ravji Khetsi

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Page 477
________________ ( ४६६ ) ari करतां त्रेपन वया जपमालाना मणियां गया । कथा सुणी सुणी फुट्या कान तोय न आवी हइडे शान।। तन कसोटी देत है पण मन कसोटी नाहीं ॥ राफड कूटे लकडीशें पण मणिधर न मरे मांहीं ॥ १ ॥ तुलसी हाय गरीबकी कबुं न खाली जाय ॥ मुआ ढोरके चांमशे लोहा भस्म हो जाय ॥ २॥ तजवा लायक तरत छे जगमां चाकर चार ॥ तस्कर रोगी आलसु प्रत्युत्तर पठनार ॥ ३॥ तुलसी तलब न छोडीये निश्वें लीजे नाम ॥ मन मजूरी देत है तो क्युं रखेगा राम ॥ ४॥ तुलसी चेतन खेत है मन वच कर्म कीशान ॥ पाप पुन्य दो बीज है बोवे शो लणे निदान ॥ ५ ॥ तुलसी शुद्ध स्वभावने करी शके कुसंग ॥ चंदने विष व्यापे नही वलगी रहत भुजंग ॥ ६ ॥ तीर लगो गोला लगो लगो मरमके वाय ॥ नयना किसी मत लगो उनका नहि उपाय ॥ ७ ॥ तुलसी तर्ष्या पीनेशें घटे न सरिता नीर ॥ धर्म कीये धन ना घटे साथ करे रघुवीर ॥ ८ ॥

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