Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीगणचंद चोरोवणीयगहणं तकरजोगं विरुद्धरजगमं । कूडतुलकूडमाणं तप्पडिस्वं च ववहारं ॥ ७ ॥
तृतीयेऽ
व्रते वसु महावीरच चोरिकाउ विरत्ता कहपि चोरेहिं संपउत्तावि। वसुदत्तोव न पावंति आवई सुइसमायारा ॥८॥
दत्तकथा ४ प्रस्तावः18 गोयमसामिणा भणियं-भयवं! को एस वसुदत्तो ?, जयगुरुणा कहियं-अवक्खित्तचित्तो निसामेषु, वसंतपुरे | ॥३०॥ दानयरे वसुदेवो नाम इब्भो, तस्स य वसुमित्ता नाम भारिया, तीसे य अवचं न होइ, तओ सा चिंतेइ-जइ अवच्चस्स 41
कारणे एस मम भत्ता अन्नं परिणिस्सइ ता अहं गेहस्स असामिणी, अह अचंतनिभराणुरागरंजियमणो अन्नं न | परिणेइ, तत्थ य मरणपज्जवसाणयाए एयस्स नरवरदाइदाईहिं हीरते गेहसारे सविसेसं असामिणी चेव, अओ जइ ||
कहवि मम पुत्तो हवइ ता सोहणं संपजइ, इमेण य अभिष्पारणं सा अणवरयं देवयाणं उववाइयसयाणि पयच्छइ8 A मंततंतवाइजणं चापुच्छइ । इओ य सोहम्मे कप्पे अरुणाभविमाणे महिडिओ विजप्पभो नाम देवो, सो य पचा-1 सन्नचवणसमयत्तणेण अत्तणो पयइविवज्जासं पेच्छिऊण वक्खित्तचित्तो भयसंभंतो परिचिंतेइ
कह रयणनियरउग्गाढपीढियादढनिबद्धमूलोऽवि । निचावद्वियरूकोवि कप्परुक्खो पकंपेइ ? ॥१॥
सुंदरमंदारतरुप्पसूयमालाऽमिलाणपुवावि । कारणविरहेऽवि कहं पमिलायइ संपयं सहसा ? ॥२॥ है कह जच्चकंचणुडामरोऽवि देहस्स कंतिपन्भारो । ताविच्छगुच्छसंछाइयव मालिन्न वहइ ॥ ३॥
कह वा भुयंगनिम्मोयनिम्मलाईपि देवदूसाई । कजलजलधोयाणिव अइकसिगाई विभाविति ? ॥ ४॥
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