Book Title: Mahavira Charitam
Author(s): Gunchandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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५४ महा०
आभरणाणि, निवेइयं च रन्नो, अह भयसंमंतमणो राया सयमेव परियणसमेओ तस्स सगासोवगओ कथंजली भणिउमादत्तो भो भो सद्धम्म परेकचित्त ! जं निनिमित्तमवि मोहा एवंविहं अवत्थं उवणीओ तं खमसु मन्त्र, एवं च सुचिरं पसाइऊण करेणुगाखंधे समारोहिऊण य महाविभूईए पवेसिओ नयरे पालओ, जहोचियं तंबोलाइणा संमाणिऊण पेसिओ सहि, परितुट्ठो जेहभाया, कथं वद्धावणयं । अवश्वासरे य पालगेण अणियं-हे आय ! | सचन्नुधम्ममाहम्णमेयं जं वसहमुत्तमेत्तेणवि तुह पसंतो जलोयरवाही, ममावि निकारणमेव कणयसिंहासणतेण परिणया सुलिगा, पहारावि जाया आभरणत्तणेणं, ता सुच्चउ गेहवासवासंगो, अंगीकीरउ एत्तो सवचिरई, को हि | नाम सुणियामयपाणगुणो विससलिलं पाउमुच्छहेजा ?, रविणा भणियं एवं होऊ, तओ ते दोवि थेराणं अंतिए पञ्चजं गहाय समाराहियसं पुन्नस मणधम्मा सुरसिवसुहभावणं जायति ॥
इय इंदभूइमुनिवर ! वीयगुणवयमिमं विनिहि । एत्तो तइयं वोच अणत्थदंडस्स विरइति ॥ १ ॥ सो पुण अत्थदंडो ने अब उहो अवज्झाणो । पमयायरिए हिंसप्पयाण पावोवएसो य ॥ २ ॥ कंदप्पे कुकुए मोहरियं संजयाहिकरणं च । उपभोगपरीभोगाइरेगयं चेत्थ वजे ॥ ३ ॥ जेऽणत्थदंडविरया न हुंति तेऽणत्थगाई जंपता । पार्वति धुवं मरणं लोइयकोटिय मुणिव ॥ ४ ॥ जो पुण एसो कोटिंगो मुणी जह व मरणमणुपत्तो । तह संपय सीसंतं सर्व गोयम ! नितामेसु ॥ ५ ॥

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