Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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यह माथे का चन्दन है
- कवि निर्मल 'तेजस्वी', उदयपुर
अभिनन्दन करके हर्षित हम यह माथे का चन्दन है |
गुणग्राहकता से ही फलता है दुनिया का नन्दन वन है ।
कब चाहा था नाम सूर्य ने तिमिर गला जग जान गया तेजस्वी सूरज की ताकत सारा जग पहिचान गया । तुमने भी कब चाहा था नाम मिले बहुमान मिले पर कर्मठता से ही तुमको सारे हो सम्मान मिले ।
यह प्रशस्ति का गीत नहीं है गुण का पूजन अर्चन है अभिनन्दन करके हर्षित हम यह माथे का चन्दन है |
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उजली किरण भोर की तुम हो गीत जागरण के नूतन सतत प्रवाहित जल गंगा हो श्रमण संघ की तुम
भूषण ।
ग्रन्थ सुधा का गागर है या फिर बूटी संजीवन है। अभिनन्दन करके हर्षित हम यह माथे का चन्दन है "
मंगल दिवस अनूठा आया आओ इसे मनाएँ हम जीवन की जागृति के सपने आओ सफल बनाएं हम ।
संघ एकता के आरोही हम मंजिल तक जायेंगे जिनवाणी के गीत अनूठे अपनी धुन में गायेंगे |
ये जड़ता के बोल नहीं यह सिंहों का गर्जन है अभिनन्दन
समर्पण
- श्री हीरालाल जैन, खरड़ ( पंजाब )
गुलिस्तां भी है उनसे आबाद वीराने भी हैं तेरे दिवानों में काबा भी है बुतखाने भी हैं शमां पर यूँ तो जला करते हैं परवाने सभी शर्मा खुद ही जलती है जिन पे ऐसे परवाने भी हैं । जिन्दगी लाखों की बनाई तूने सोई तकदीर भी जगाई तूने ज्ञान के प्यासों की है प्यास बुझाई तूने किश्ती लाखों की किनारे पर लगाई तूने ।
बाग था खुश्क उसे तूने ही आबाद किया
तूने ही शाद किया आके जगाया तूने राग सुनाया तूने । तेरे दीवाने बने तेरे परस्तार बने
तू सारंगी हम साज के तार बने मीठी आवाज में पैगाम सुनाया तूने परोपकार में ही जीवन लगाया तूने ।
दिल था नाशाद उसे रंग महफिल में जब सारे मतवालों को जब
प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंना
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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