Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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कल्याण हेतु उनका अर्पण-विसर्जन करना भी अनि- व विपक्ष पर 'छु' करके छोड़ देते हैं । वे युवकों को वार्य है। सरोवर में या कुए में जल भरता ही नाना प्रलोभन देकर, सरसब्ज बाग दिखाकर दिग-112 रहे, कोई उस जल का उपयोग न करे, तो वह जल भ्रांत किये रखते हैं। इस मृगतृष्णा में पड़ा युवक गन्दा हो जाता है, खारा हो जाता है, किन्तु जल न तो अपना स्वतन्त्र चिन्तन कर कुछ निर्माण कर प्रवाह बहता रहे, तो जल स्वच्छ और मधुर बना सकता है और न ही उनके चंगुल से छूटने का साहस रहता है । इसलिए प्रौढ़ अवस्था के बाद मनुष्य को ही दिखा सकता है। दूसरों के इशारों पर कलासमाज-सेवा, राष्ट्र-सेवा तथा दान एवं परोपकार बाजी दिखाना और विद्रोह-विध्वंस में अपनी शक्ति का की तरफ विशेष रूप से बढ़ना चाहिए। यह सेवा का दुरुपयोग करते रहना-यह युवा-शक्ति के लिए परोपकार एवं दान ही "विसर्जन" का रूप है, जो शर्म की बात है । अब विद्रोह और विध्वंस का नहीं
मुख्य रूप में वृद्ध अवस्था, या परिपक्व अवस्था में किन्तु निर्माण का रास्ता अपनाना है। यद्यपि ENA किया जाता है, किन्तु यहाँ अधिक इस विषय में विध्वंस करना सरल है, निर्माण करना कठिन है। C)
अभी नहीं कहना है, यहाँ हमें युवाशक्ति के विषय किसी भी सौ-दो सौ वर्ष पुरानी इमारत को एक पर ही चिन्तन करना है।
धमाके के साथ गिराया जा सकता है ____ मैंने कहा था कि समाज में, संसार में चाहे ।
___ निर्माण करने में बहुत समय और शक्ति लगती है। o जिस देश का या राष्ट्र का इतिहास पढ़ लीजिए,
मैं युवकों को कहना चाहता हूँ, प्रत्येक वस्तु आपको एक बात स्पष्ट मिलेगी कि धार्मिक या को रचनात्मक दृष्टि से देखो, विरोध-विद्रोह, सामाजिक, राजनैतिक या आर्थिक, जिस किसी
विध्वंस की दृष्टि त्यागो, जो परिस्थितियाँ हमारे क्षेत्र में जो क्रान्तियाँ हुई हैं, परिवर्तन हुए हैं, और
___ सामने हैं, जो व्यक्ति और जो साधन हमें उपलब्ध 5 नवनिर्माण कार्य हुए हैं, उनमें पचहत्तर प्रतिशत
हैं, उनको कोसते रहने से या गालियाँ देते रहने से 10 युवाशक्ति का योगदान है। इसलिए युवाशक्ति कुछ नहीं होगा, बल्कि सोचना यह है कि उनका यानी क्रान्ति की जलती मशाल ! युवा शक्ति यानी उपयोग कसे, किस प्रकार से कितना किया जा नवसृजन का स्वर्णिम प्रभात !
सकता है ताकि इन्हीं साधनों से हम कुछ बन सकें, मान
कुछ बना सकें। रचनात्मक दृष्टिकोण रखिए :
राम ने जब लंका के विशाल साम्राज्य के साथ __ मैंने बताया कि यौवन सर्जन का काल है, यह युद्ध की दुन्दुभि बजाई तो क्या साधन थे उनके बसन्त का समय है, जिसमें जीवन के प्रत्येक पहलू पास ? कहाँ अपार शक्तिशाली राक्षस राज्य और पर उमंग और उल्लास महकता है, कुछ करने की कहाँ वानरवंशी राजाओं की छोटी-सी सेना। ललक उमंगती है इसलिए यौवन एक रचनात्मक सीमित साधन ! अथाह समुद्र को पार कर सेना ? काल है। आज के युवावर्ग में रचनात्मक दृष्टि का को उस पार पहुँचाना कितना असंभव जैसा कार्य ।
अभाव है। वे दूसरों की तो आलोचना तो करते हैं, था, किन्तु उन सीमित साधनों से छोटी-सी सेना मा नारेबाजी और शोर-शराबा करके विद्रोह का को भी राम ने इस प्रकार संगठित और उत्साहित विगुल भी बजा देते हैं। वे किसी भी निहित स्वार्थ किया जो रावण के अभेद्य दुर्ग से टक्कर ले सकी। वालों के इशारों पर अपनी शक्ति का दुरुपयोग राम ने अभावों की कमी पर ध्यान नहीं दिया, करने लग जाते हैं । आजकल के राजनीति छाप समुद्र पर पुल बनाने के लिए और कुछ साधन नहीं ) समाज नेता, युवाशक्ति को अलसे शियन कुत्ते की मिले तो पत्थरों का ही उपयोग कर अथाह समुद्र तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें किसी भी विरोधी की छाती पर सेना खड़ी कर दी। ३०२
चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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