Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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क्रम से घटता गया है । मेरु पर्वत के तीन काण्ड योजन है, जिसमें से १६ हजार योजन पृथ्वी के हैं। प्रत्येक काण्ड के अन्त में एक-एक कटनी है। नीचे और चौरासी हजार योजन पृथ्वी के ऊपर यह चार वनों से सुशोभित हैं-एक जमीन पर है। चोटी पर उसका घेरा बतीस हजार योजन
इन तीन कटानियों पर । इनके क्रम से तथा मल में सोलह हजार योजन है. अतः इसका (५ नाम हैं-भद्रशाल, नन्दन, सौमनस और पाण्डुक। आकार ऐसा प्रतीत होता है मानो यह पृथ्वी रूपी इन चारों वनों में, चारों दिशाओं में एक-एक वन कमल का 'कमलगट्टा' (Seedcup) हो। पद्ममें चार-चार इस हिसाब से सोलह चैत्यालय हैं। पुराण के अनुसार इसका आकार धतूरे के पुष्प पाण्डुकवन में चारों दिशाओं में चार पाण्डुक जैसा घण्टे के आकार (Bell shape) का है । वायुशिलाएँ हैं, जिन पर उस दिशा के क्षेत्रों में उत्पन्न पुराण के अनुसार चारों दिशाओं में फैली इसकी हुए तीर्थंकरों का अभिषेक होता है। इसका रंग शाखाओं के वर्ण पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर पीला है।
में क्रमशः श्वेत, पीत, कृष्ण और रक्त है । सीलोन ___ वेदों में मेरु नहीं है। तैत्तिरीय आरण्यक के बुद्धिष्ट लोगों के अनुसार मेरु का घेरा सर्वत्र (१-७-१-३) में 'महामेरु' है किन्तु इसकी पहचान एक जैसा है । नेपाली परम्परा के अनुसार मेरु का के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं है। रामायण, आकार ढोल जैसा है । महाभारत, बौद्ध एवं जैन आगम साहित्य में इसके आधनिक भौगोलिक मान्यता परिमाण तथा स्थान के बारे में प्रायः एक जैसे ही मेरु की उपर्युक्त स्थिति को ध्यान में रखते व कथन उपलब्ध हैं।
हए अब हमें उसके वर्तमान स्वरूप और स्थान के परशियन, ग्रीक, चायनीज, ज्यूज तथा अरबी विषय में विचार करना चाहिए। लोग भी अपने-अपने धर्मग्रन्थों में मेरु का वर्णन
पन-अपन धमग्रन्थी में मेरु का वर्णन हिमालय तथा उसके पार के क्षेत्र (Himalकरते हैं । नाम एवं स्थान आदि के विषय में भेद ayan and Trans-Himalayan Zone) में पांच होते हुए भी केन्द्रीय विचारधारा वही है जैसा उन्नत प्रदेश हैं। पुराणों में प्राप्त मेरु के विवरण के हिन्दू-पुराणों में इसका वर्णन है। जोरोस्ट्रियन आधार पर, इन उन्नत प्रदेशों की तुलना मेरु से की धर्मग्रन्थ के अनुसार अल-बुर्ज (Al-Burj) नामक जा सकती है। ये प्रदेश है : पर्वत ने ही पृथ्वी के समस्त पर्वतों को जन्म दिया १. कराकोरम (Kara-Koram) पर्वत शृंख- ६
और इसी से विश्व को जल से आप्लावित करने लाओं से घिरा क्षेत्र, वाली नदियां निकलीं । यही अल-बुर्ज मेरु है। २. धौलगिरि (Dhaulgiri) पर्वत शृंखलाओं चाइनीज लोगों का विश्वास है कि सिग लिंग' से घिरा क्षेत्र, (Tsing-Ling) ही मेरु पर्वत है। इसी से विश्व के
३. एवरेस्ट (Everest) पर्वत श्रृंखलाओं से समस्त पर्वत और नदियां निकलीं।।
घिरा क्षेत्र, ___ मेरु के परिमाण और आकार के विषय में ४. हिमालय आर्क्स (Himalayan Arcs) तथा विष्णुपुराण में उल्लेख है कि सभी द्वीपों के मध्य कुन-लुन (Kun-lun) पर्वत से घिरा हुआ तिब्बत 2 में जम्बूद्वीप है और जम्बूद्वीप के मध्य में स्वर्ण का पठार, तथा गिरि मेरु है। इसकी समस्त ऊंचाई एक लाख ५. हिन्दूकुश (Hindukush) कराकोरम, टीनd
१ सर्वार्थसिद्धि' भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, तृतीय अध्याय, पृष्ठ २११-२२२ AL २ डा० एस० एम० अली-जिओ आफ पूरान्स अध्याय-३ (दि माउन्टेन सिस्टम आफ वि पूरान्स पृष्ठ-४७-४८
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पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास
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8 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थOR650
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