Book Title: Kundalpur
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Mahendra Singhi

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ना लंदा -भंवरलाल नाहटा भारत के अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त नगरों में राजगृह और नालंदा का स्थान प्रमुख है। समस्त धर्मावलम्बियों का पवित्र स्थान होने के कारण एवं अपने ऐतिहासिक और पुरातत्व सम्बन्धी महत्ता के कारण राजगृह का वैशिष्ट्य तो .था ही पर तन्निकटवती नालंदा स्थान भी गत साठ वर्षों से पुरातत्त्व विभाग द्वारा उत्खनन होने के पश्चात बौद्ध विहार और विश्वविद्यालय निकलने से विश्वविथ त हो गया है। भारत में आनेवाले सभी विदेशी एवं भारतीय पर्यटक नालंदा देखने के लिये अवश्य आते हैं। यहाँ की सारी इमारतें जो पृथ्वीतल में समा कर टीले के रूपमें परिवर्तित हो गई थी, सावधानीपूर्वक निकाली गई और प्राप्त सामग्री को संग्रहालय बना कर प्रदर्शित कर दी गई। आज भी लाखों व्यक्ति यहाँ आकर भारतीय शिक्षा, संस्कृति और शिल्पविद्या का अवलोकन करते हैं । अब तो वहाँ बौद्धधर्म और पालीभाषा का इन्स्टीट्यूट है और नालंदा जिला हो गया है परन्तु यहाँ से जैन धर्म का घनिष्ट सम्बन्ध होने के कारण यह स्थान जैनों के लिए सदा सुपरिचित था, यहाँ नालंदा के विषय में कुछ प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जा रहा है। २५०० वर्ष पूर्व जैन शास्त्रों के अनुसार यहाँ भगवान महावीर के समय साढ़े बारह कुल कोटि जैनों का निवास था भ० महावीर ने स्वयं राजगृह नालंदा में चौदह चातुर्मास बिताये थे। यहाँ भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी जैन प्राचीन काल से रहते थे। जैनागम सूयगडांग सूत्र द्वितीय श्रु तस्कन्ध के सातवें अध्ययन का नाम "नालंदइज्ज" है, यह नालन्दा से ही सम्बन्धित है। नालंदा राजगृह से सात मील उत्तर है, इसमें राजगृह के उत्तर पश्चिम भाग-ईशान कोण में नालन्दा नामक बहिरियापाड़ा लिखा है जिसमें लेप नामक धनाढ्य गाथापति रहता था। नालन्दापाड़ा के ईशान कोण में 'सेसदविया' नामक उदगशाला थी जो प्रासाद बनवाने में बचे हुए उपकरण से निष्पन्न अनेक स्तम्भादि से युक्त थी। उसके ईशान कोण में हस्तियाम नामक वनखण्ड था । 'नालंद For Private and Personal Use Only

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