Book Title: Kundalpur Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Mahendra Singhi View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहित कोशाम्बी, वाराणसी, काकन्दी, राजगृह, पावापुरी, नालंदा, क्षत्रियकुण्ड, अयोध्या, रत्नपुर आदि तीर्थों की यात्रा करके वापस लौटकर उद्दड़विहार में चातुर्मास किया जहाँ मालारोपण महोत्सवादि हुए। नालंदा बस्ती से बिलकुल सटा हुआ गुव्वर गांव था जो आज भी इसी नाम से विद्यमान है इसे प्राचीन कवियों ने मगध देश में ही लिखा है। विशेषावश्यक नियुक्ति में भी इस गोबर गांव को मगध देश में लिखा है । यतः मगहा गोब्बर गामो गोसंखो वेसिआण पाणामा कुम्मागाभायावण गोसाले गोवण पउट्ट ।। ४६३ ।। सं० १४१२ में रचित विनय प्रभोपाध्याय कृत गौतमरास में :जंबूदीव जंबूदीव भरहवासंमि खोणी तल मंडण मगह देस सेणिय नरेस रिउ दल बल खंडण धणवर गुव्वर गाम नाम तिहां गुण गण सजा विप्पवसें वसुभूई तांह तसु पुहवी मजा ताणपुत्त सिरि इंदभुइ भूवलय पसिद्धो च उदह विजा विविहरूप नारी रसलुद्धो" इस उल्लेख से स्पष्ट है कि उस समय वड़गाँव ( नालन्दा-गुव्वरगाँव में श्रावकों के पर्याप्त घर थे और वे बाहर से आकर बसे हुए नहीं पर मगध के ही अधिकारी धनाढ्य श्रावक थे। वे सुदूर तीर्थयात्रा के संघ निकालते थे, साधुओं के चातुर्मास कराते थे । वड़गाँव में मन्दिर और प्रतिमाएँ प्रचुर संख्या में यों जिसका उल्लेख आगे किया जायगा। ___ सं० १३६४ में उपयक्त राजशेखर गणि को आचार्य पद मिला था उस प्रसंग में भी राजगृहादि महातीर्थों की वन्दना करने का उल्लेख किया गया है। ठ० प्रतापसिंह के पुत्र अचल सिंह ने वैभारगिरि पर जो चतुर्विशति जिनालय बनवाया था उसके लिए सं० १३८३ में जालोर में श्रीजिनकुशलसूरिजी ने अनेक पाषाण व पित्तलमय जिन प्रतिमाओं की तथा गुरुमूर्तियों की प्रतिष्ठा की थी। . सं० १३६४ में जिनप्रभसूरि कृत 'वैभारगिरि कल्प' में "नालन्दा” का उल्लेख इस प्रकार मिलता है। नालन्दालंकृते यत्र. वर्षारात्रांश्तुर्दश ।। अवतस्थे प्रभुवीर स्तत्कथं मास्तु पावनम् ॥२५॥ यस्यां नैकानि तीर्थानि नालन्दा नायन श्रियाम् । भव्यानां जनितानन्दानालन्दानः पुनातु सा ॥२६॥ [५ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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