Book Title: Kundalpur
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Mahendra Singhi

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्दिर व गौतम स्तुप तथा जयविजय १७ मन्दिर व १७ प्रतिमाओं एवं गौतम स्वामी के स्तूप के साथ-साथ भगवान महावीर के समय की प्राचीन प्रतिमाओं का उल्लेख करते हैं । इसके आठ वर्ष पश्चात् ही कवि जसकीर्त्ति केवल ऋषभदेव जिनालय का वड़गांव में उल्लेख कर चारों कोनों के चोतरे में गौतम स्वामी के दो चरणों की संघपति द्वारा पूजा करने का उल्लेख करते हैं । कवि विनयसागर तो इनके सहयात्री थे । कवि विजयसागर दो देहरों में एक सौ प्रतिमाएँ और गौतमस्वामी के पगला (चरणपादुके) स्थान ( स्तूप ) का उल्लेख करते हैं । कवि शीलविजय लिखते हैं कि यहां एक स्तूप है, अवशिष्ट जोर्ण प्रासादों में प्रतिमाएँ नहीं हैं, यह उल्लेख सं० १७५० का है । इस समय अन्य मन्दिरों की प्रतिमाएँ एक ही मन्दिर में विराजमान हो चुकी थी, विदित होता है । अन्तिम उल्लेख बीसवीं शताब्दी का है जिसमें सेठानी हरकर व सेठ उमाभाई के अहमदाबाद से रेल में आये हुए संघ सहित चैत सुदि १३ के दिन गुब्वर गाँव का उल्लेख है जो वर्त्तमान रूप है । इन यात्रा वर्णनों में कई बातें लोकोक्तियों पर आधारित हैं । जिनप्रभसूरिजी के समय से जिस कल्याणक स्तूप का गौतम स्वामी के केवलज्ञान स्मारक का या वीर स्तूप का जो वर्णन आया है वह सं० १७५० तक तो विद्यमान था । यह स्थान नालन्दा विश्वविद्यालय के हाते में ही होगा क्योंकि सभी कवियों ने बहाँ पात्रा खान या यात्रा खान का उल्लेख किया है । कवि पुण्यसागर ने इस स्थान पर पहाड़ जैसा ईंटो का ढेर कहते हुए कयवन्ना सेठ का घर बतलाया है । कवि जसकीर्ति और विनयसागर ने दक्षिण की ओर १५०३. तापसों की कैवल्य भूमि कही है । कवि विजयसागर और सौभाग्यविजय ने लिखा है कि यहाँ श्रेणिक राजा के समय साढे बारह कुल कोटि घर निवास करते थे। कवि विजयसागर के अनुसार दो मन्दिरों में एक सौ जिन प्रतिमाएँ थी । वे यह भी लिखते हैं कि यहाँ इतनी बौद्ध प्रतिमाएँ हैं कि उनकी कोई गिनती नहीं थी, आनन्द श्रावक का निवास स्थान वाणिज्यग्राम भी इस के पास ही बतलाया है । कवि सौभाग्यविजय लिखते हैं कि बड़गाँव में एक विशाल बौद्ध प्रतिमा है जिसे वहाँ के अधिवासी लोग " तिलियाभिराम" कहते हैं यह प्रतिमा मैंने भी एक खेत में पड़ी देखी थी और सुना था कि तेलुआ बाबा और टेलुआ बाबा नाम से प्रख्यात बौद्ध प्रतिमाएँ है । तेलुआ बाबा पर जनता तेल चढ़ाती है और ढेलुआ बाबा को पत्थरों से मारती है कि वह भग-वान के पास जाकर उनकी सिफारिस करे । बौद्ध विशेध और विद्वेष को जनः मानस में रूढ करने का इससे बढ़कर मूर्खतापूर्ण क्या उदाहरण हो सकता है ।" अस्तु । [ १ For Private and Personal Use Only

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