Book Title: Kaise Banaye Aapna Career
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ अठन्नी-चवन्नी में बेचा करते थे। तब कहीं जाकर बमुश्किल अपने लिए किताबों की व्यवस्था कर पाते थे। यही तो है पुरुषार्थ कि जो बच्चा इमली के बीजों को बेचा करता था, उसने भी ऊँचे सपने देखे थे। उन सपनों को पूरा करने के लिए वह पूरी लगन से लगा रहा और एक दिन महान् वैज्ञानिक बना और देश का सर्वोच्च पद भी हासिल किया। आज वे भारत के आदर्श बन गए हैं। मैं इसे ही कहता हूँ – 'केरियर'। मैं एक ऐसे लड़के को जानता हूँ, जिसकी माँ चल बसी। वह लड़का हमारे पास आया। लड़का स्वाभिमानी था। उसने सौ-पचास रुपए की पूँजी से कपड़ों में लगने वाले बटन खरीदे और कुछ रंग भी। वह बाजार में जाता और ज़रूरत के मुताबिक रंगीन बटन के ऑर्डर ले आता। घर में ही वह बटन रंगता और सप्लाई कर देता। धीरे-धीरे व्यापार चल निकला, तो वह रंगीन बटन ही खरीदकर देने लगा। व्यवसाय बढ़ता गया और आज वह करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है। मैं ऐसे ही एक अन्य लड़के को भी जानता हूँ, जिसे हिन्दी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान था। जब वह ग्यारहवीं में पढ़ता था तभी मेरे सम्पर्क में आ गया था। उसने मुझसे काफ़ी कुछ सीखा है। उसके पास एक अच्छी साहित्यिक प्रतिभा है। अब वह बी.ए.,बी.एड. कर चुका है। उसे काफ़ी मशक्कत के बाद सरकारी नौकरी मिली। हम उससे उसकी कुछ मदद करने की बात करते तो वह स्वाभिमानी काम की फरमाइश करता। वह मेरे प्रवचनों को ऑडियो कैसेट लिखा करता। इससे उसे जो पारिश्रमिक मिलता उससे वह आगे की पढ़ाई करता और जो राशि शेष बचती, वह उस अपनी बूढ़ी माँ को भेज देता। इसी बीच दीपावली आ गई। मैंने उससे कहा – 'दीपावली आ रही है, कुछ कपड़े बनवा लो, अगर चाहो तो हम दिलवा देते हैं।' लेकिन उसके स्वाभिमान को इस तरह लेना गँवारा न था। 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122