Book Title: Kaise Banaye Aapna Career
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 15
________________ VEER उतारू हो गए, पर ज़रा यह सोचो कि तुम्हारे साथ तम्हारे माता-पिता ने भी तो तुम्हें पालने-पोषने में इक्कीस साल की मेहनत की है। क्या तुम उसे इस तरह निरर्थक कर दोगे? क्या तुम्हारे माता-पिता भी आत्महत्या कर बैठे? युवक की आँखें खुल गईं। वह वापस घर लौट गया। उसकी सोई हई आत्मा जग गई। वह अपनी आत्मिक शक्ति का मालिक बन गया। मैंने उसे शांति और सफलता का ध्यान सिखाया। वह आशा और विश्वास से फिर भर उठा और सफल भी हुआ। आज अगर तुम उदास हो, असफल हो, तो हो सकता है, तुमने लक्ष्य को हासिल करने के लिए मेहनत ही न की हो, या अपने केरियर के प्रति गंभीर ही न हुए हो। कोई अगर परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है तो इसके लिए शिक्षक नहीं बल्कि विद्यार्थी स्वयं जिम्मेदार होता है। शिक्षक तो सभी बच्चों को एक ही भाव से, एक जैसा ही पढ़ाते हैं, पर जो छात्र आगे बढ़ जाता है, वह गुरु । द्वारा दिए गए ज्ञान से संतुष्ट नहीं होता अपितु उसमें और भी अधिक ज्ञान पाने की लालसा रहती है। छात्र की लालसा और जिज्ञासा ही उसे आगे बढ़ाती है। जो गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान से संतुष्ट हो जाते हैं वे जरासंध बनते हैं और जिन्हें अधिक ज्ञान-पिपासा रहती है, वे अर्जुन बन जाते हैं। गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को आगे बढ़ाना ही अर्जुन की सफलता की मूल चाबी है। गुरु द्रोण के पास दुःशासन, दुर्योधन और अर्जुन सभी शिक्षा पाते थे, फिर क्या कारण है कि एक तो दुर्योधन ही रह जाता है और दूसरा अर्जुन बन जाता है। कारण स्पष्ट है, दुःशासन, दुर्योधन और जरासंध तो वे प्रतीक हैं जिन्हें गुरु ने जो कुछ जितना सिखा दिया, उतने से ही संतुष्ट हो गए, पर अर्जुन और एकलव्य जैसे लोग जिन्हें यदि साक्षात् गुरु मिल जाएँ तो वे उनका उपयोग करते हैं और न भी मिल पाएँ तो उनकी मिट्टी की मूर्ति बनाकर भी गहन अभ्यास कर लेते हैं। सीखने की ललक हो तो मिट्टी के गुरु से भी सीखा जा सकता है। आखिर घिसाई के बिना तो 14 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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