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कषायों के साथ चारित्र का सम्बन्ध है । ज्यों ज्यों कषाय घटते जाते हैं, त्यों त्यों चारित्र आता जाता है ।
अनंतानुबंधी कषाय जाने पर ही सम्यक्त्व प्राप्त होता है । अप्रत्याख्यानी कषाय जाने पर ही देशविरति चारित्र प्राप्त होता है। प्रत्याख्यानी कषाय जाने पर ही सर्वविरति चारित्र मिलता है । संज्वलन कषाय जाने पर ही यथाख्यात चारित्र मिलता है। यह तो हम जानते हैं न ?
कषाय नष्ट करने के लिए क्या करें ? जिन-जिन में आपको जिन-जन कषायों की मन्दता दिखाई दे, उन-उनकी आप अत्यन्त अनुमोदना करते जाओ । उन्हें नमन करते जायें । कषाय-मुक्त प्रभु को नमन करते जाओ । जिस गुण को आप नमन करो, वह गुण आपमें आ ही जायेगा, यह नियम है।
क्रोध क्यों आता हैं ? क्रोध अभिमान के कारण आता हैं । अहंकार को टक्कर लगने से ही क्रोध आता है। आप यदि अपनी मानसिक वृत्ति का बराबर निरीक्षण करेंगे तो यह बात तुरन्त समझ में आ जायेगी ।
क्रोध एवं मान का प्रगाढ़ बन्धन है । माया एवं लोभ का प्रगाढ़ बन्धन है ।
घर में कहीं कभी कभी दिखाई देने वाले सांप, बिच्छु को तुरन्त दूर निकाल देने वाले हम कषायों को दूर नहीं करते । इसका अर्थ यही है कि हमें कषाय सांपो के समान प्रतीत नहीं हुए ।
जिस प्रकार 'मोक्ष-प्राप्ति' ध्येय बनाया है, उस प्रकार कषाय आदि भावों से मुक्त बनना भी ध्येय होना चाहिये । कषायों से मुक्ति होने के बाद ही वह मुक्ति मिलेगी न ? "कषाय-मुक्तिः किल मुक्ति-रेव ।" कषाय-मुक्ति होने पर ऊपर का मोक्ष तो मिलेंगा तब मिलेगा, परन्तु आपको यहीं मोक्ष का सुख मिलेगा ।
प्रशम का सुख इतना अधिक होता है कि उसका वर्णन करने के लिए शब्द कम पड़ते हैं ।
कषाय चित्त को चक्कर में डालते हैं, चित्त को व्याकुल एवं व्यग्र बनाते हैं । व्याकुल एवं व्यग्र चित्त में सुख आ सकता है, क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं ? (कहे कलापूर्णसूरि - २800mmmmowwwwwwwwwwww १९९)