Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ आवे , (असं के० ) ए पण एक जातिली माटीज बे, पण दार चूमिमां उत्पन्न थवाश्री दार अथवा खारो ए नामे उलखाय के. एवी रीते (मही के) माटी अने (पाहाण के) पाषाण, ए वे पदार्थोनी काली, नीली, राती, पीली अने धोली एवी (जाइउणेगा के) अनेक जाति बे ते वधी लेवी तथा (सोवीरंजण केण्) ए सुरमो एवे नामे उलखाय २ ते आंखमां अंजाय बे. (खूणा के ) सिंधव, साजी, बिमलवण, काचलवण तथा ससुखलवण, (श्चाई के) इत्यादि, (पुढविलेयाश् केप)पृथिवीकाय संसारी जीवोना नेद कहेवाय ॥४॥ हवे वादर अप्काय जीवोनुं वर्णन करे :जोमंतरिकमुदगं, उसा हिल करग हरितणू सदिा ॥ हुँति घणोददिमाई, आ णेगा य आजस्स ॥ ५॥ गाथा ५ सीना बूटा शब्दना अर्थ. ' · जोमं जूमिनुं. हिम-हिम, बरफ. . । अंतरिक-आकाशन. करग-करा. : उदगः पाणी. हरितणू-घास प्रमुख लीली व. उसा-उसनुं पाणी, काकल. नस्पतिना अग्र नाग उपरनां पाणीनां विंड

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