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मूल, शब्दार्थ अने जावार्थ
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साथे.. . : श्रावृत्ति ठिमी
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पावी प्रसि करनार ३ श्रावक भीमसिंह माणेका पुस्तक प्रसिद्ध करनार तथा वेचनारः ... मांडवी, शाकगद्दी, मुंवर निर्णयसागर गपखानामां उपावी प्रसिद्ध करी. वीर संवत् २४४५, विक्रम संवत् १९७५, सने १९१९.
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॥ श्री गौतंसाय नमः ॥
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॥ अथ श्री जीवविचार प्रकरण प्रारंभः ॥
थम ग्रंथकर्त्ता श्रीशांति सूरि श्रयमा मंगलाचरण करतां प्रयोजनादिकनुं सूचन करे :॥ आर्यावृत्तं ॥ जुवण पईवं वीरं, नमिकण नामि प्रवुदबोदवं ॥ जीवसरूवं किंचिवि, जद जयिं पुत्रसूरीहिं ॥ १ ॥ गाथा १ लीना बूटा शब्दना अर्थ.
areji - बोध थवा अर्थे. जीवसरूवं = जीवनुं स्वरूप.
किंचिवि-लेशमात्र.
भुवण - भुवन (त्रण ).
पचं = प्रदीप ( समान ) -
चीरं = महावीरस्वामीने. नमिका - नमस्कार करीने. जामि= कहुं नुं.
जह-जेम, जेवी रीते. नयिं कथं वे. पुत्र = पूर्वना. अज्ञानी | सूरी हिं- सूरिए.
अर्थ :- (
व के० ) त्रण. भुवन, एटले चतुर्दशरज्ज्वात्मक जे लोक, तेने विषे ( पईवं के० ) प्रदीप
ह - ( तत्त्वविचारने विषे )
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समानाने सकल पापने दूर करनारा एवा (वीरं hu ) श्री महावीरखामीने (नविण के० ) नमस्कार करीने ( जह के० ) जेस ( पुछसूरीहिं के० सुधर्मस्वाम्यादिक पूर्वसूरिए ( नणियं के० ) पोतानाममां प्रगट कर्युबे तेम हुंपण (अनुवोहवं के० ) तत्त्वविचारने विषे ज्ञानी जीवोने वोध थवाने अर्थे (किंचिव के० ) लेशमात्र ( जीवसरूवं के० ) जीवनुं स्वरूप ( जणामि के० ) कहुं हुं ॥ १ ॥ हवे जीवन द कही बतावे बे:जीवा मुत्ता संसा, - रिणो अ तस यावरा संसारी ॥ पुढवि जब जवण वाऊ, वणस्सई यावरा नेच्या ॥ २ ॥ गाथा १ जीना बूटा शब्दना अर्थ.
पुढच पृथ्वी काय.
जीवा जीव.
मुत्ता मुक्ति पामेला, मुक्त. संसारिणो = संसारी जीवो.
अ-तथा
तस = त्रस ( हाले चाले ते ). थावरा - स्थावर ( स्थिर रहे सारी = संसारी.
|
ते).
जला काय.
जल - तेल काय.
वाऊ = वायुकाय.
वसई - वनस्पतिकाय.
नेत्रा - जाणवा.
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अर्थः-(जीवा के) जीव ते एक मुक्तिना तथा वीजा संसारी, ए वे प्रकारना बे. तेउंमांना (मुत्ता के ) जेई सकल कर्मरूप पटलोनो क्षय करीने मुक्तिपदने पाल्या ने ते सिक जीवो कहेवाय ने; (अ के) तथा (संसारिणो के०) जेमा संमृतिने पमाय ते संसार कहेवाय डे, एवा संसारनी नरकादि चार गतिमांजे ब्रमण करे नेते संसारी जीवो कहेवाय . ते (संसारी के ) संसारी जीवना एक (तस के ) त्रस ( के) वली वीजा ( थावरा के० ) स्थावर, ए वे प्रकार जे; तेजेमांना स्थावर जीवोना पांच प्रकार नेते आ प्रसाणेःएक (पुढवि के) पृथ्वीकाय, बीजा (जल के०) पाणी ते अप्काय, त्रीजा (जलण के०) ज्वलन ते अग्नि-. काय, चोथा (वाज के०) वायुकाय, पांचमा (वणस्साई के०) वनस्पतिकाय, एवी रीते ए (थावरा केय) स्थावर जीवो पांच प्रकारना (नेया के०)जाणवा ॥२॥ हवे ए स्थावर जीवोना नेदमां अनुक्रमे प्राप्त श्रयेला पृथ्वीकाय जीवोना वेद कहे :- . फलिह मणि श्यण विहुम, हिंगुल हरि
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(४)
याल मणसिल रसिंदा ॥ कणगाइ धाज सेढी, बन्नि अ अरणेट्टय पलेवा ॥३॥ अप्पय तूरी जसं, मट्टी पाहाण जाड होगा। सोवीरंजण लूपा,-इ पुढविलेआइ श्चाई॥४॥
गाथा ३ जीना बूटा शब्दना अर्थ.. फलिह-स्फटिक रत्न. कणगाश् कनकादि (सोनुं मणि-चंजकांतादिक मणि.
विगेरे). रयण-रत.
धाउ-धातु. विदुम-परवालां.
सेढी खमी माटी, चाक.
वनि-लाल रंगनी माटी, हिंगुल-हिंगलो.
हरमजी. हरियाल-हमताल.
अरणेट्टय-पाषाणना कटकानी मणसिल-मणसिल.
साथे मलेली धोली माटी. रसिंदा-पारो.
पलेवा-एक जातिनो पाषाण. गाथा ४ थीना बूटा शव्दना अर्थ. अजय-अवरख (पांच वर्णनो): गणेगा अनेक. तूरी एक जातिनी माटी. जसं-खारो.
लूणा-सिंधव विगेरे. मही-माटी.
पुढवि-पृथ्वीकाय. पाहाण-पाषाण, पवर. जेआइ-जेदो. ना-जाति. श्चिाई-इत्यादि.
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(य)
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अर्थ :- ( फलिह के० ) स्फटिक प्रसिद्ध बे, ('मणि के० ) सपि ते चंद्रकांतादिक अथवा जे समुद्रमां उत्पन्न याय वे ते, तथा ( रयण के० ) रत्न ते वज्र कर्केतनादिक अथवा जे खाणमां उत्पन्न याय बे ते, विदुम के० ) परवालां अथवा विद्रुम, (हिंगुल के० ) हिंगलो, (हरियाल के० ) हरुताल, (मसिल के० ) मसिल, (रसिंदा के० ) पारो अथवा रसेंद्र, ( कणगाइ धाउ के० ) कनकादि धातु सात बे:- सोनुं, रूपुं, त्रां, कथीर, जस्त, सीसुं तथा लोढुं; ए अग्निसंयोना नावे पृथ्वी काय बे ने अग्निसंयोगे तेजकाय वे, (सेढी के० ) खमी माटी अथवा चाक कहेवाय बे ते, (वन्नि के० ) हरमजी अथवा लाल रंगनी माटी थाय दे ते, ( अरोहय के० ) पाषाणना कटकानी साथे मलेली धोली माटी थाय बे ते तथा ( पलेवा के० ) ए एक जातिनो पाषाण बे ॥ ३ ॥ ( अयं के० ) पांच वर्णनो अबरख, ते सोनी लोकोने सोनुं तपाववाना उपयोगमां आवे थवा वैद्य लोको एनी जस्म विगेरे करीने औषधियां वापराने कामे लगाडे बे, ( तूरी के० ) एक जातिनी माटी बे, ते कापमने पाश देवाना कामसां
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आवे , (असं के० ) ए पण एक जातिली माटीज बे, पण दार चूमिमां उत्पन्न थवाश्री दार अथवा खारो ए नामे उलखाय के. एवी रीते (मही के) माटी अने (पाहाण के) पाषाण, ए वे पदार्थोनी काली, नीली, राती, पीली अने धोली एवी (जाइउणेगा के) अनेक जाति बे ते वधी लेवी तथा (सोवीरंजण केण्) ए सुरमो एवे नामे उलखाय २ ते आंखमां अंजाय बे. (खूणा के ) सिंधव, साजी, बिमलवण, काचलवण तथा ससुखलवण, (श्चाई के) इत्यादि, (पुढविलेयाश् केप)पृथिवीकाय संसारी जीवोना नेद कहेवाय ॥४॥
हवे वादर अप्काय जीवोनुं वर्णन करे :जोमंतरिकमुदगं, उसा हिल करग हरितणू सदिा ॥ हुँति घणोददिमाई, आ णेगा य आजस्स ॥ ५॥
गाथा ५ सीना बूटा शब्दना अर्थ. ' · जोमं जूमिनुं.
हिम-हिम, बरफ. . । अंतरिक-आकाशन. करग-करा. : उदगः पाणी.
हरितणू-घास प्रमुख लीली व. उसा-उसनुं पाणी, काकल. नस्पतिना अग्र नाग उपरनां
पाणीनां विंड
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महिला = वरसादनी फरफर, | नेत्रा -नेदो.. धुमरीनुं पाणी.
गा=अनेक.
उस्सा कायना.
* इंति =थाय ते.
घणोद हिमाई - घनोदधिश्रादि.
अर्थ :- ( नोमं के० ) कूपादिनुं पृथ्वीमां रहेलुं तथा शिरोपानीय, एवधुं भूमिजल कद्देवाय बे, (अंतरिकमुदगं के० ) सरोवरादिकने विषे जे मेघनुं पाणी जराय ने ते अंतरिक्ष उदक कहेवाय बे, (जैसा के० ) उसनुं पाणी ए तुषार अथवा काकल पण कदेवाय बे, ( हिस के० ) हिस पड्याथी जे बंधार जाय बे ते पाणी, ( करग के० ) वर्षातुमां मेघ पतां वायुना योगे पाणी वंधाइ कठिन थइने धोला पापापना कटका जेवा पृथ्वी उपर पडे बे ते करा अथवा करक कहेवाय बे, ( हरित के० ) उगेला घास प्रमुख वनस्पतिना मोर अथवा मात्र प्रमुखनां पांदगांने बेंडे जे पाणीनां बिंदु थाय बे ते हरितनु कवाय वे, ( महिया के० ) आकाशने विषे कोइ समये वादल यह आवे बे तेना योगे अति सूक्ष्म जीणी जीणी पाणीनी बूंदो पडे बे ते महिका अथवा धुमरीनुं पाणी कहेवाय बे, एवी रीते (उस्स
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रण
hu ) अकायना (घणोद हिसाई के० ) जेने आधारे पृथ्वी रही वे ते घणोदधि यदि दइने वीजा पण ( या रोगा के० ) अनेक नेदो (हुंति के० ) थाय d. ए अकाय जीवोना नेद कह्या ॥ ५ ॥
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हवे ते काय जीवोना नेद कहे बे:इंगाल जाल सुम्सुर, उक्कासणि कणग विकुमाईच्या || अगणिजिप्राणं नेया, नायवा निजणबुझिए ॥ ६ ॥ गाथा ६ हीना बूटा शब्दना अर्थ.
विॐ-विजली. आईच्या आदि. अगणिकाग्निकाय. जित्राएं = जीवोना.
गाल - अंगारानो नि.
जाल ज्वालानो नि. सुम्मुर = प्रासद्धि, नागे. उक्का-उस्कापातनो अनि
अणि वज्रनो मार मारतां | नेचा-नेदो.
परुतो अग्नि. नायबा - जाणवा योग्य. निजण निपुण, सूक्ष्म.
कग कीयानो अग्नि.
अर्थ :- ( इंगाल के० ) ज्वाला विनानो नि, काष्ट. प्रमुख वस्तुनुं सत्त्व ज्यारे बली जाय वे त्यारे अग्निनी ज्वालानो नाश घर जाय बे, छाने रक्त रखनी पेठे चलकित ककमा यर रहे बे ते अंगार कहेवाय
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में, (जाल के० ) ज्वालानो अग्नि, (सुम्सुर के) अग्मिनी ज्वालामांधीजे सूक्ष्म कण नीकले ते त्रासद्धि अथवा नाठो कहेवाय बे, (उका केप) कोश्क कालने विपे आकाशमाथी अश्विनी वृष्टि थाथ । ते उल्कापातनो अग्नि कहेवाय ने, (असणि के०) वज्रनो सार मारतां तेमांथी अग्नि पडे मे ते अशनि कहेवाय , ( कणग के ) कोश्क कालने विषे
आकाशमां अग्निना तणखा उमता देखाय ने ते कनक एटले कणीबानो अग्नि कहेवाय बे, (विज्जुमाया के) विजली आदिक ते वर्षातु प्रमुख को पण तुमा ज्यारे मावठं थाय ने त्यारे को वखते आकाशथी विजली पृथिवी उपर पड़े लेते विद्युत्पात कहेवाय , इत्यादि (अगणिजियाणं के) अग्निकाय संसारी जीवोना (नेया के) नेदो ते (निजणबुद्धिए के) निपुण एटले सूक्ष्म बुद्धिए करी (नायबा के) जाणवा योग्य वे ॥६॥
हवे वायुकाय जीवोना नेद कहे जेःजनामग जकलिया, मंडली मह सुक्ष
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गुंजवाया य ॥ घणतणुवायाईया, या खटु वानकायस्स ॥ ७ ॥
गाथा ७ मीना बूटा शब्दना अर्थ. उल्लामग-जनामक एटले गुंजवाया-गुंजारव करतोवायु.
उंचे जमावे तेवो वायु. घणतणुवाया घनवायु अने नक्कलिया-उत्कलिक एटले
तनुवायु. नीचो पसतो वायु. आईया-आदिक. मंझली टोली, ममलिक या दो. मह-महावायु
खलु-निश्चे. सुद्ध-शुधवायु. वाउकायत
वाउकायस्स बालकायना. ___ अर्थः-(उप्लासग के०) उंचो आकाशने विषे जे आयु तृणादिकना बेमाने जमावे जे ते उशामक वायरो कहेवाय, (उकलिया के ) जे वायु नीचो पमतो होय ते उत्कलिक वायु कहेवाय बे, (संगली के) वंटोली अथवा मंगलिक वायु कहेवाय बे, (मह के) कोश्वार मोटोवायरो थाय ते सहावायु, (सुद्ध के)जे शनैः शनैः वाय ते शुभवायु, (गुंजवाया य के) जे गुंजारव करे ते गुंजवायु कहेवाय बे, अने (घणतणुवाया के) जे वे वायुने आधारे नरक देवलोकादि रहेलांबे ते एक घनवायु तथाचीजो तनुवायु कहेवाय
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वे, (आईया के ) इत्यादिक (खनु के) निश्चेकरी (वाउकायस्स के ) वायुकाय संसारी जीवोना! (नेया के०) लेदो जाणवा. ए प्रमाणे उगाथाए करी पृथिवी, अप, तेज तथा वायुकायना नेद कह्या॥७॥ . हवे वनस्पतिकायना नेद कहे :साहारण पतेआ, वणस्सइ जीवा । उहा सुए जाणा ॥ जेसिमणंताणं तणु, एगा साहारणा तेज ॥७॥
गाथा सीना बूटा शब्दना अर्थ. साहारण-साधारण. जेसिं-जेमतुं. पत्तेया-प्रत्येक.
नणंताणं अनंत जीवोन. . चणस्स-वनस्पतिकाय. तणु-शरीर. जीवा-जीवो.
एगा-एक. उहा-वे प्रकारना. साहारणा-साधारण. सुए-सिद्धांतने विषे. तेज-तेने. जाणा-कहेला . ___ अर्थः-(वणस्स जीवा के) वनस्पतिकाय जीवो ते एक (साहारण के) साधारण अने बीजा (पत्तेआ के०) प्रत्येक, ए (इहा के०) वे प्रकारना (सुए के) सिद्धांतने विषे (जणि के०)कहेला जे.
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(2)
ते मां (जेसिमताणं के० ) जे अनंत जीवोनुं (तपुं एगा के० ) एक शरीर होय (तेऊ के०) तेने (साहारणा ho ) साधारण वनस्पतिकाय जीवो जाणवा ॥ ८ ॥ हवे बे गाया करी ए साधारण वनस्पतिकाय जीवोना नेद कहे :
कंदा अंकुर किसलय, पणगा सेवाल भूमिफोमा अ ॥ अह्नयतिय गजर मो.- वचुला येग पलंका ॥ ए ॥ कोमल फलं च सवं, गूढसिराइ सिपाइ पत्ताई || योदरि कुंधारि गुग्गुलि, गलोयपसुदाइ बिन्नरुदा ॥ १० ॥
गाथा ए सीना बूटा शब्दना अर्थ.
कंदा- कंद.
अंकुर = अंकुर, फलगा.. किसलय - कुंपलो. पगा-पांच वर्णनी फुगीसेवाल - सेवाल, लील.
भूमिफोमा - विलामीना टोप
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श्र, लीली हलदर अने लीलो कचूरो ).
गजर = गाजर.
मोठ-मोथ.
वत्रुला = ए नामे शाक विशेष. घेग-धामुरा, घेगी.
अल्लयतियईक त्रिक (लीलुं पलंका - ए नामे शाक विशेष
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"(१३)
गाथा १० मीना बटा शब्दना अर्थ. कोमल कोमल, जेमां वीज न योहरि सर्व जातनो पोर.
थयां होय ते. कुंआरि-कुंवार. फल-फल.
गुग्गुलि-गुगल. सधं-सर्व.
गलोय-गलो, ग. गूढ-गनी.
पमुहाप्रमुख. सिराइ-कणसला आदि. आश्-आदि. सिणा-शणादि. चिनरुहा-ठेद्यां थकांवाव्याथी पत्ताई-पांदमां.
फरी उगे ते. अर्थः-(कंदा केण्) सूरणादि सर्व जातनां कंद,. ( अंकुर के) बहार नीकलेला अंकुर, (किसलय के७) सर्वे जातिनां कुंपलना नवा टसा फूटे ते पातरां जाणवां.(पणगा के०)पांच वर्णनी फुगी, (सेवाल के) जे पाणीनी उपर रंग रंगनी लील थाय ने ते, (जूमिफोमा के ) वर्षाकालमां बनने आकारे पृथ्वीमांथी नीकले बेते.ते बिलामीना टोप एवे नामे उलखाय जे. (अ के) वली ( अब्बयतिय के) आकत्रिक एटले लीबुं आठ, लीली हलदर तथा लीलो कचूरो, (गजर के० ) गाजर, (मोब कै) मोथ, (वबुला केण) वंथुलो नामे शाक विशेष, (थेग के)' धासुरा, थेगी,(पवंका केण) ए नामर्नु शाक विशेष,
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(९४) एने लोको पालखु कहे ॥ ए॥ (च के ) वली (कोमल फलं लवं केस) सर्व कोसल फल एटले जेमां वीज थयां न होय अने (पूढसिराइ के०) जेनो कणसलो अथवा पोख गनो होय, एटो जेना कण पाधरा देखाता न होय, तथा जेनी नसो अथवा सांध स्पष्ट देखाती न होय त्यांसुधी ते अनंतकाय जाणवां, ते (सिणापत्ता के०) शणादिकनां पातरां आदि शव्दे करी जारनां पातरां पण लेवां.(योहरि के)योहरनी सर्व जाति,एमां कांटालो तथा खुरलाणी पण जाणवो. (कुंआरि के) कुंवार थाय ने ते लोकसां प्रसिद्ध बे,एने घरमां उंची टांगी होय तोपण सूकाती नथी, किंतु एना नवा मोर नीकलता जाय बे. (गुग्गुलि के) गुगल प्रसिद्ध बे. (गलोयपमुहा के) वली गजुची प्रमुख एने गपण कहे , एवबीने आकारे थाय दे, ए ज्वरादिकमटाडवानी औषधि विशेष ले. (आश् के)ए आदे दश्ने वीजां पण सर्वे जे (जिन्नरुहा के०) व्यां थकां पण वाव्याथी फरीने उगे ते सर्वे साधारण वनस्पति अथवा अनंतकाय कहीए ॥ १० ॥ .
इच्चाइणो अणेगे, दवंति या अणंत
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१९५/ कायाणं ॥ तसिं परिजाणण, लकण. मेयं सुए मणियं ॥११॥
गाथा ११ मीना बूटा शब्दना अर्थ. इच्चायो-इत्यादिक. | परि सारी रीते, समस्त प्रकारे. अणेगे अनेक.
जाणणचं-जाणवाने अर्थ. हवंति होय .
खरकणं लक्षण. नेया-जेदो.
एयं-आ. ठाणंतकायाणं-अनंतकायना. | सुए-सूत्रने विषे. तेसि तेमने.
नणियं-कहेलु ने. अर्थः-(चाश्णो के) इत्यादिक ( अणंतकायाणं के)अनंतकाय जीवोना पिंक, कचूर तथा गिरिकर्णिकादिक (अणेगे के०) अनेक (नेया के) नेदो (हवंति के) होय , ( तेसिं के) ते अनंतकाय जीवोने (परिजाणण के०) सारीरीते जाणवाने अर्थे ( एयं के०) आ वदयमाण एटले जे आगल कदेशे ते (लकणं के०) लक्षण (सुए के) सूत्रने विषे (चणियं के) कहेढुं ते ॥ ११ ॥ हवे अनंतकाय वनस्पतिजीवोनुं लक्षण कही बतावे बे.
गूढ सिर संधि पवं, समन्नंगमही
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( १६ )
रुगं च विन्नरुदं || साहारणं सरीरं, तविवरीच्यं च पत्तेयं ॥ १२ ॥
गाथा १२ सीना बूटा शब्दना अर्थ.
गूढ - बानां.
अहीरुगं - तांता विनानं. निरुह बेदीने वाव्याथी फ
सिर- कणसालां.
संधि - सांधा.
रीने जगे ते.
पर्व- गांग. समनंग-नांग्याथी जेनां सरखां वे फासीयां
तaिati - ते थकी विपरीत लक्षणवाली. शकतां होय. | पत्तेयं प्रत्येक वनस्पतिकाय. अर्थ:- ( सिर के० ) कणसां प्रमुख शिर, (संधि ho) सांधा अथवा नसो, (पवं के० ) पर्व अथवा गांगः एत्रणे जे कामनां (गूढ के० ) गुप्त बानां होय एटले दीठासां न यावतां होय ने (समजंग के० ) नांग्याथी जेनां सरखांबे फासीयां यह शकतां होय, ( अहीरुगं के०) तंतु रहित जेमां तांता होय नहीं, (च के० ) पुनः एटले वली (बिन्नरुहं के०) जे बेदी ने फरी वावीए तो उगे, ए सर्व प्रकारनां वृक्षोने (साहारणं सरीरं के० ) साधारण वनस्पतिकायनां शरीर कहीए, अने एज अनंतकाय पण कहेवाय बे. ( तविवरी
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के) ते थकी विपरीत लक्षणवाली वनस्पतिने ( पत्तेयं के० ) प्रत्येक वनस्पतिकाय कहीए ॥ १५ ॥ ,
एग सरीरे एगो, जीवो जेसिं तु ते :
य पत्तेया ॥ फल फूल ल्लि कहा, . मूलग पत्ताणि बीयाणि ॥ १३ ॥
गाथा १३ मीना बूटा शब्दना अर्थ. एग-एक.
फल-फल. सरीरे शरीरने विषे.. फूल-फूल. एगो-एक.
बह-गल. जीवो जीव.
कहा-काष्ठ, लाकडं.. जेसिं जे (वनस्पति)ने. मूलग-मूल.
पत्ताणि-पांदमां.. ते-तेने..'
बीयाणि जीज. 'पत्तेया प्रत्येक (वनस्पतिकाय.)
अर्थः-(एग सरीरे के०) एक शरीरने विषे (एगो जीवो के० ) एक जीव (जेसि के०) जे वनस्पतिने विषेहोंय (तु ते य पत्तेया के)तेनेज प्रत्येक वनस्पतिकाय कहीए.ए प्रत्येक वनस्पतिकायना सात प्रकार ले ते आ प्रमाणे:-(फल केस) सर्व प्रकारनां फल, (फूल के० ) सर्व प्रकारनां फूलो, (बद्धि के०) उप.
।
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रनी त्वचा अथवा बाल, (कहा के०) सर्व प्रकारचें
काष्ठ अथवा लाकडं, (मूलग के० ) हुं। तलीयानुं , थरू, (पत्ताणि केस) सर्व जातिनां पांदमां, (वीयाणि
के) सर्व वीज; ए साते स्थानक प्रत्येक जिन्न जिन्न जीवरूप होवामी एउने प्रत्येक वनस्पतिकाय कहीए. एवी रीते ए बादर पृथिव्यादिक पांचे थावरना बेद विवरीने कह्या ॥ १३ ॥ • हवे पांच स्थावर सूदमनुं वर्णन करे :- .
पत्तेयं तरु मुत्तं, पंचवि पुढवाइणो संयल लोए । सुदुमा हवंति नियमा, अंतमुहुत्ताज अहिस्सा ॥१४॥
गाथा १४ मीना बूटा शब्दना अर्थ. पत्तेयं तर प्रत्येक वनस्पति- | सुडमा सूदम. .
काय हवंति-होय . सुत्तं-सूकीने.
नियमा-निश्चये करी. पंचवि-पांचे.
अंतमुडुत्त-अंतर्मुहूर्त. पुढवाइणो-पृथिव्यादिक. . आज-आयुष्य. सयल-संकल.
| अहिस्सा अदृश्य(चर्मदृष्टिए लोए (चौद राज) लोकने विपे. देखाय नहीं तेवा.)
अर्थः-(पत्तेयं तरु सुत्तं के) ए पूर्वोक्त प्रत्येक वन
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स्पतिकाय मूकीने (पंचवि पुढवाश्णो के) पांचे पृथि.व्यादिक (सयल लोए के०) सकल चौद राजलोकने “विपे(सुदुमा केय) सूदम (हवंति के)होय ने, (नियमा. के०) निश्चये करी.एने पांच स्थावर कहीए.ते (अंतमुदुत्ताउ के० ) अंतर्मुहूर्त्तना आयुष्यवाला होय के ने (अहिस्सा के) अदृश्य होय बे, एटले चर्मदृष्टिए देखाय नहीं. तेथीज ए सूदम कहेवाय बे ॥ १४ ॥
ए पांच स्थावर सूक्ष्म अने पांच वादर मलीने दश नेद थया, अने प्रत्येक वनस्पतिकाय ते बादरज होय ,पण सूक्ष्म होय नहीं तेश्री प्रत्येक वनस्पतिकायनो एक जूदोज नेद होवाथी सर्व अगीयार भेद थाय ने. ते अगीयार पर्याता तथा अगीयार अपर्याता मलीने वावीश नेद स्थावर संसारी जीवना कह्याने अने वीजासंसारी उस कहेवाय ,तेना मूल चार नेद लेते
आः-बेइंडिय, तेइजिय, चौरिंजिय तथा पंचेंजिय. तेउमांना प्रथम बेजिय त्रस जीवना छेद कहे जेः
संख कवडय गंडुल, जलोय चंदणग अलस लहगाई। मेहरि किमि पूछरगा, बेइंदिय माझ्यादाई ॥ १५ ॥
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(१०)
गाथा १५ मीना बूटा शब्दना अर्थ.
संख-शंख. कवड्डय - कोसी.
गंकुल- गंगोला.
जलोय - जलो. चंदग - चंदनक,
अलस-कालसीयां. लहगाई - लालीया जीव. हरि - मेर ( लाककामां यंता ) किमि = कृमि.
रिया,
पूचरगा-पूरा. अक्ष. | माइवाहाई- चूमेल आदि. अर्थ:- ( संख के०) दक्षिणावर्त्त प्रमुख मोटा तथा नाना शंख होय बे ते, ( कबड्डय के० ) कपर्दक अथवा कमी अनेकोमा थाय बे ते, (गंडुल के० ) गंगोला एने गगुता कड़े बे, ए उदरमां मोटा कृमियां उत्पन्न थाय बे ते जाणवां, (जलोय के० ) जलो ए शरीरनी उपर फोमा वगेरे आव्या होय त्यारे तेनी उपर मूक्याथी ते जग्यानुं रक्त शोषण करी लीए बे. ते, ( चंदग के० ) एने सिद्धांतोमां अक्ष एवा नाम थी प्रतिपादन कर्यु बे, एनेरिया पण कहे बे, ते साधु स्थापनामा राखे बे. (अलस के०) वर्षाकालसां वृष्टि याय बे ते वखते पृथिवीमांथी सर्पना श्रकारे लाल रंगवाला जे ति पातला जीवो उत्पन्न थाय बे, ते ज्यांसुधी वरसाद तो होय त्यांसुधी ज्यां त्यां घणा
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(१)
फरता दीगमां आवे बे, ज्यारे वरसाद रही जाय ले ने तकको पडे हे त्यारे तेउसांनो एक पण दीगमा आवतो नथी.एने जूनाग अथवा अलसीयां पण कहे के. (लहगाई के०) रोटली प्रमुख पकावेढुं अन्न वासी रही गयाथी केटलाएक काले तेमां जे जीव पडे में तेने लालीया कहे , (मेहरि के०) काष्ठमा जे कीमा थाय ने ते, (किमि के०) ए पण एक जातना कीमा होय जे ते उदरमा उत्पन्न थायः बे, अथवा गुदप्रदेशने विषे हरस थाय बे तथा गुंबमां वगेरेना दतने विषे जे कीमा थाय ने तेने कृमि कहे . (पूछरगाके) ए जीवपाणीमा उत्पन्न थाय बे, ए जीवोनों वर्ण रातो होय ने अने मुख कालु होय . एने कही जाषामां पूरा कहे ; अने (माश्वाहाई के०) मातृवाहांदिक एने चूडेल. पण कहे ने, मूल गाथामां आदि शब्द लेतेयादि शब्दथी मनुष्यना अंगमांजे वाला थाय बे ते पण लेवा, इत्यादिक (बेंदिय के०) बेइजिय जीव जाणी लेवा. ए जलमां तथा स्थलमा उत्पन्न श्राय . ते अनेक प्रकारना जे. एउने स्पर्शनें. जिय तथा रसनेंजिय ए. बे इजियो होय २ ॥१५॥
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LOOTER
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(२) हवे वे गाथा वडे तेत्रिय जीवना भेद कहे ;
गोमी मंकण जूआ, पिपीलि उद्देहिया . यमकोडा॥इल्लिय घयमिक्षीउँ, साक्य गोकीमजाई॥१६॥गद्दय चोरकीमा, गोमयकीका य धनकीमा य॥ कुंथु गुवालिय इलिया, तेइंदिय इंदगोवाशा१७॥
गाथा १६ मीना बूटा शब्दना अर्थ. गोमीकानखजूरा. | इलिय-इद. मंकण-मांकन.
घयमिबी-धीमेल. जूआ-यूका.
सावय-सावा. पिपीलि-कीमी.
गोकीम-गींगोमा. उद्देहिया-उद्देहिका, उधे. जाई जातियो. मक्कोमा मंकोमा.
गाथा १७ सीना बूटा शब्दना अर्थ. गइहय-जत्तिंगा, गङ्गया. कुंथु-कुंथुआ. चोरकीमा-विष्टाना कीमा. गुवालिय गोपालिक. गोमयकीमा-गणना कीसा. इलिया इलिका. धन्नकीमा-धान्यना कीमा. ते दिय-तेइजिय. य-वटी.
| इंदगोवाई-इंजगोपादि. अर्थः-( गोमी के०) कानखजूरीया, एना पग
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घणा होय , ने ए कानमा पेसी जश्ने माणसने घणी ..इजा करे ने, एम कहेवाय बे, (संकण के०) माण'सना सुवाना विगनामां अथवा खाटला प्रसुखनी नवारसांजे जीवो उत्पन्न थाय ने तेने मांकन कहे जे, (जूश्रा के०) यूका, ए जीवो माणसनामाथाना वालमां उत्पन्न थाय ठे, अथवा माणसनां कपकांसां उत्पन्न थाय , एटले एमाणसना शरीरनामेलमांथी उत्पन्न थाय , एने कही तथा गुजराती भाषामां लीख कहे ठे, ते संस्कृत लिद शब्दनो अपभ्रंश जे.(पिपीलि के) एने पिपीलिका अथवा कीमी कहे , एनी राती अने काली एवी घणी जाति होय,ते लोकमां प्रसिक वे. (उद्देहिया के) उद्देहिका,एने वाल्मिक जीव पण कहे . ए जीवो वृक्षमा, काष्ठमां अथवा गृहमांज्यां ज्यां प्रवेश करे ने त्या त्यां पोतानुं शरीर रहेवा पूरतुं घर वनावीने तेमांथी तेवृक्षादिकने खाती खाती चाली जाय वे. (य के) वली (मकोमा के०) मत्कोटिका अथवा मंकोमा,ए जीव घj करीने बावलना कामना थममां उत्पन्न थाय बे,अथवा गोल प्रमुख मिष्ट पदार्थ ज्यां होय त्यां थाय जे. (इल्लिय के) इखिका, एजीव
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( २४ ) धान्यादिकमा उत्पन्न याय बे, एने इल पण कहे बे. (घयमिली के० ) ए जीव घृतमां उत्पन्न याय ढे, एने घीसेल पण कहे बे. (सावय के ० ) सावा, ए जीव मनुष्यना शरीरना माथा सिवाय बीजां सर्व अवयवमांना के शोना थमां उत्पन्न याय वें. तेमां पण विशेषे करी यांखनी पांपणमा थाय छे. ते जे वखते मनुष्यना शरीरमां उत्पन्न याय बे ते वखते जविष्यकाल विषे एवं अनुमान थाय बे के कांड पण कष्ट प्राप्त थशे. एने लोक सावा कहे बे. (गोकी रुजाईट के० ) गोकीटंक जाति, ए जीव गाय प्रमुख पशुनां शरीरना. अवयवोमां उत्पन्न याय बे, ते तेर्जनी त्वचामां चोटी रहेला होय . एने ही जाषामां चिश्चमी अथवा गगोमा पण कहे बे ॥ १६॥ ( गद्दय के०) गया, ए जीव गौशाला प्रमुखमां उत्पन्न याय बे, एउनो वर्ण श्वेत होय बे, एउने शास्त्रोमा उत्चिंगा पण कहे बे. ( चोरकीमा के० ) ए जीव विष्टामां उत्पन्न थाय बे. ( गोमय कीमा के० ) ए जीव बाणमां उत्पन्न याय बे. ( धन्नकीमा के० ) ए जीव धान्यमां उत्पन्न याय बें, ते लोकमां धनेरीयां एवे नामे उलखाय बे: ( य के० ) वली ( कुंथु के० ) ए जीव सूक्ष्म बतां
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पांच रंगना थाय , एने कुंथुश्रा पण कहे . (गंगालिय केय) गोपालिक, ए एक जातिना एवाज' जीव थाय ने, ते अप्रसिद्ध बे. (इलिया के0) शलिका, ए जीव खांस अथवा चोखासा उत्पन्न थाय (दगोवाई के) इंगोपादि, ए जीव वर्षातुसां वरसाद पडे त्यारे उत्पन्न थाय बे, एनो अत्यंत रक्त वर्ण होय , एने लोकमां मेहना लामा पण कहे . इत्यादिक ( तेइंदिय के) तेइजिय' जीवो वीजा पण घणा ले ते सर्व जाणी लेवा. ए तेजिय जीवोने स्पर्शनेडिय अने रसनेलिय तथाः घ्राणेंजिय ए त्रण इंजियो होय जे. एम ए तेइंजिय जीवोना लेद कह्या ॥ १७ ॥
हवे चौरिंजिय जीवोना नेद कहे :चरिंदिया य विचू, टिंकुण नसरा य नमरिया तिडा ॥ मचिय मंसा मसगा, कंसारी कविल मोलाई ॥ १७ ॥
गाथा १७ मीना बूटा शब्दना अर्थ.. चलरिदिया चौरिंजिय. टिंकुणबगाइ. . . . विवी , . . . नमरा-भ्रमर, . . . .
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(२६)
जमरिया-जमरी.
मसगा-मबर. तिड्डा-तीमः
कसारीकसारी. मबिय-माखी.
कविल-करोलीया. मसा-सांस.
मोलाई-खरूमांकमी. अर्थः-( चरिंदिया के) चौरिंजिय जीवो श्रा :-( विलू के) किंतु ए जातना फेरी जीवो थाय बे, तेना पूंबमामां एक कांटो होय जे, तेना भारथी माणसने विष चडे बे, ते विठी एवे नामे लोकमां प्रसिद्ध ले. (ढिंकुण के) ए जीवो कांश्क मक्षिकाने मलता होय , ते धोकाना तबेला प्रमु
खने ठेकाणे उत्पन्न श्राय बे, तेने लोकमां बगा - कहे . (जमरा के) ए जीवो काला वर्णना होय
जे, अने ते घणुं करीने ज्यां सुगंधी. पुष्पोनां वृदो ' होय जे त्यां रहे बे, ए जीवोने पुष्पोनो सुगंध घणो दप्रिय होय , ए जमर एवे नामे लोकमांप्रसिद्ध ले. (नमरिया के) उमरिका, ए जीवो पीतादिक घणा रंगवाला होय बे, तेमज विविध आकारवाला होय . (तिड्डा के ) ए जीवो वर्षास्तुना अवसानमा जे वखते धान्यनां वृक्ष पाकी रहेला होय
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२७ ) वे ते वखते आकाशमार्गे अगणित संख्याबंध जमतां कोइ धान्यनां क्षेत्र वगेरे उपर आवीने पडे बे, ते जेटली जग्यामां आवी पडे बे तेटली जग्यानां काम पान वगेरे सर्व खाइने खाली करी नाखे बे, . ते तीन एवे नामे लोकमां प्रसिद्ध बे. ( महिय के० ) मक्षिका, ए जीवो लोकमां अति प्रसिद्ध बे, ए माखी एवे नामे उलखाय बे, उपलक्षणथी मधुमक्षिका पण जाणी लेवी. ( डंसा के० ) मांस, ए जीवो सिंधु देशमां प्रसिद्ध बे. ए घणुं करीने वर्षाकालमां ची कणी जमीनमां उत्पन्न थाय बे. ( मसगा के० ) मसक, ए जीवो लोकमां मछर एवे नासे जलंखाय बे, ए लोकमां प्रसिद्ध बे. ( कंसारी के० ) ए जीवो घणुं करीने उजम घर प्रमुखमा उत्पन्न याय बे, ते लोकमां प्रसिद्ध बे. ( कविल के० ) करोलीया ने ( मोलाई के० ) खम्मांकदी, आदि शब्द थकी पतंग प्रमुख बीजा जे चौरिंद्रिय जीवो। होय ते सर्व जाणी लेवा. ए जीवने स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय, घ्राणेंद्रिय तथा नेत्रेंद्रिय ए चार इंद्रियो होय बे ॥ १८ ॥
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(२७) हवे पंचेंजिय जीवोना नेद कहे बे:. पंचिंदिया य चनदा, नारय तिरिया
भगुस्स देवा य ।। नेरच्या सत्तविहा, . लायचा पुढविजेएणं ॥१५॥
गाथा १ए भीना बूटा शब्दना अर्थ, पचिंदिया-पंचेंजिय. नेरझ्या नारकीना जीव.' चहाचार प्रकारना. . सत्तविहा-सात प्रकारना. नारय-नारकी.
नायवा-जाणवा. तिरिया-तिर्यंच. पुढविजेएणं ( रत्नप्रजादि) मणुस्स-मनुष्य.
__ पृथ्वीना नेदे करीने. देवा-देवता. " अर्थः-(पंचिंदिया के) जेने स्पर्शनेंजिय,रसनेंप्रिय, प्राणे प्रिय, चक्षुरिंघिय तथा श्रोत्रिय ए पांच इंजियो होय ते पंचेंजिय जीव कहेवाय , श्हां “च” समुच्चयार्थमां बे. ते जीव (चव्हा के चार प्रकारना . एक (नारय के.) नारकी, बीजा '( तिरिया के ) तिर्यंच, जीजा (मणुस्स केण)
मनुष्य, चोथा ( देवा के ) देवता. ते मां प्रथम र(नेरश्या के) नारकीना जीव ते (पुढविजेएणं के०), वरत्नप्रजादि पृथ्वीना नेदे करी ( सत्तविहा के.)
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सात प्रकारना बे. ते सात पृथ्वीनां नाम कहे बे: - घमा, वंशा, सेला, अंजणा, रिठा, मघा तथा माघवती, ए सात ठेकाणे उत्पन्न थयेला जीवोने नारकी कहीए. तथा तेमनां गोत्रनां नाम कहे बे. रत्नप्रजा, शर्कराप्रजा, वालुकाप्रजा, पंकजा, धूमप्रजा, तमःप्रजा तथा तमस्तमः प्रना, ए सात प्रकारने पर्याप्ताना तथा अपर्याप्ताना नेदे गणतां चौद वेद नारकी जीवोना थाय बे ॥ १५ ॥
हवे पंचेंद्रिय तिर्यंचना जेद कहे बे:जलयर थलयर खयरा, तिविदा पंचेंदिया तिरिरका य ॥ सुसुमार मच कछव, गाहा मगराइ जलचारी ॥ २० ॥ गाथा २० मीना बूटा शब्दना अर्थ.
जलयर = जलचर.
'थलयर - थलचर-
1 खयरा - खेचर.
तिविहाण प्रकारना. पंचेंदिया-पंचेंप्रिय..
तिरिरका - तिर्यंच...
सुसुमार-सुसुमार.
महं=माबलां.
कछव - काचबो.
गाहा=कुंम.
मगराइ - मगर विगेरे.
जलचारी - जलचर जीव.
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२७ )
शाय,
अर्थ:- ( तिरिरका पंचेंदिया तिविहा के० ) ति - यंच पंचेंद्रिय त्रण प्रकारना बे, ते आ:- एक ( जलयर के० ) जलचर एटले जे जीवो पाणीमां उत्पन्न पाणीसां रहे तथा पाणीसांज नाश पामे ते जलचर जीव जाणवा. वीजा ( थलयर के० ) स्थलचर एटले जे जीवोनी उत्पत्ति, स्थिति तथा नाशनो संजय जलचरोनी पेठे पृथ्वी उपर होय ते, तथा श्रीजा ( खयरा के० ) खेचर एटले जे जीवोनी चालवानी स्थिति आकाशने विषे होय ते जाणवा. तेर्जमां प्रथम जलचर जीवना मुख्यं पांच भेद े ते आ प्रमाणे:- एक ( सुसुमार के० ) पासाना जेवा मत्स्य होय बे, ते घणुं करी सीठा पाणीना तलाव प्रमुखमां दीवामां आवे बे, वीजो (म के० ) नाना प्रकारनां जे वीजां माबलां दीगमां आवे वे ते, ए जातिना जीवो घणुं करी खारा समुद्रमां विशेष दीवामां आवे बे, त्रीजो ( कठव के० ) कछप, ए जीवो घणुं करी सीठा पाणीना तलाव अथवा खोदेला कूवाना पाणीमां दीवामां आवे बे, एनी 'त्वचा घणी कठिन होय वे अने तेमांथी, ढाल ए
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९३ /
नामनां हथियार देहरक्षणार्थे लोक करे छे, ए जीवने लोकसां काचवाना नामे उलखे बे, चोथो ( गाहा के० ) ए जीवो समुद्रमां तेमज मीठा पाणीना तलाव प्रमुखमा पण याय बे. ए जीव तंतु आकारे होय बे, ने अति बलवान् होय बे, पाणीमां यतुं एटलु जोर होय वे के ते हाथीने पण घसकी जाय बे, एने लोकसां फुंरु एवे नामे जलखे बे, पांचमी ( मगर के० ) मगर, ए जीव समुद्रसां होय बे, एनुं शरीर अति विशाल होय बे, ए लोकमां मगरमत्स्य एवे नामे उलखाय बे, ए (आइ के० ) आदि शब्दे करी बीजा पण ( जलचारी के० ) जलचर जीव घणा प्रकारना बे. ए जलचर पंचेंद्रिय तिर्यंच जीवना भेद का ॥ २७ ॥
"
हवे स्थलचर जीवोना नेद कहे :चडपय डरपरिसप्पा, जुयपरिसप्पा य यलयरा तिविदा || गो सप्प नउलपमुदा, बोधवा ते समासेणं ॥ २१ ॥
गाथा ११ मीना बूटा शब्दना अर्थ. | जरपरिसप्पा- नरः परिसर्प. चचपय = चार पगवालां.
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(२१.) नुयपरिसप्पा-जुजपरिसर्प. नउल-नोलिया. श्रलयरा-स्थलचर जीव. पमुहाप्रमुख. तिविहा त्राण प्रकारना. | बोधवा-जाणवा. गो-गाय.
समासेणं-संदेपथी. सप्प-सर्प.
अर्थ:-( अलयरा तिविहा के) स्थलचर जीवो त्रण प्रकारना , ते आः-एक (चउपय के) चतुपद एटले चार पगवाला सर्व प्रकारनां पशुउँ जाणी देवां, वीजा (उरपरिसप्पा के०) उरःपरिसर्प ए जीवो उदरथी चाले बे. एनी नाग प्रमुख घणी जाति होय , एमां केटलाएक जीवो विषरहित होय , अने केटलाएक विष सहित होय बे. ते लोकमां प्रसिद्ध ले. (य के ) वली त्रीजा (जुयपरिसप्पा केप) जुजपरिसर्प ए जीवो जुजा वडे चाले बे. ते नोलिया प्रमुख जाणी लेवा. ए उपर कह्या जे त्रण प्रकारना स्थलचर जीवो तेउँ अनुक्रमे (गो के) गाय प्रमुख ते चतुष्पद, (सप्प के) सर्प प्रमुख ते उरःपरिसर्प तथा (नजलपसुहा के) नोलिया प्रमुख ते तुजपरिसर्प, ए (समासेणं के) .. संदेषमात्रे करी (बोधवा के ) जाणी लेवा. ए । स्थलचर जीवोना नेद कह्या ॥१॥
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हवे खेचर जीवोना नेद कहे बे:खयरा रोमयपरकी, चम्पयपरकी य पायमा चेव॥नरलोगाउँ बाहिं, समुग्गपरकी विययपरकी ॥१२॥
गाथा २२ मीना बूटा शब्दना अर्थ. खयरा-खेचर जीच. चैव-निश्चे. . रोमय-रुवाटांनी पांखवाला. नरलोगार्ज-मनुष्यलोकनी. परकी-पक्षी.
वाहि-वहार. चम्मय-चाममानी पांखवालां. समुग्ग-संकोचेली पांखवालां. पायमा प्रगट. वियय-विस्तारेली पांखवालां:
अर्थः-(खयरा के) खेचर जीवो ते आकाशने विषे विचरनारांजे पक्षी ते वे प्रकारनां बेः-एक (रोमयपरकी केस) रोमज पदीर्ड, एटले जेउनी पांखो
रोमसंयुक्त होय रे,जेवां के, शुक, हंस तथा सारसा. दिक पदी तेमज पारेवां, कागमा, चकलां, पोपट प्रमुख एनी पांख मोवालानी होय , ते (य के)बीजां (चम्मयपरकी के)चसेज पदीनी (पायमा के) प्रगट अर्थ के. एटले जेऊनी पांखो चाममाना जेवी होय ठे तेने चर्मज पदी कहीए. जेवां के, चामाची
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मियां अथवा चर्मची टिका, तथा वनवागुल अथवा वयुली प्रमुख ए (चेव के ) निश्चे लोकमां प्रसिद्ध बे, अने (नरलोगाउँ वाहिँ के ) मनुष्यलोकनी वहार ( समुग्गपरकी के ) समुज पदीठ, तथा (विययपरकी के०) वितत पदी होय . ते मनुष्यलोकनुं प्रमाण शास्त्रोमां आवी रीते कह्यु :जंबुढीप, धातकी खंग तथा पुष्करवर द्वीपना अर्ध नाग सुधी मनुष्योनी वस्ती एटले ए अढी दीपमां मनुष्यो . ते अढी छीपमांना प्रथम जंबुछीपने चोफेर खानी पेठे लवण समुल वीटी रह्यो ने तथा वीजा धातकी खंगने कालोदधि वीटी रह्यो ले अने अढी छीपनी चोफेर स्वर्णमय भानुष्योत्तर पर्वत किहानी पेठे वेष्टित थइ रहेलो बे. ए नरलोकक्षेत्रनुं प्रमाण एकंदर पीस्तालीश लाख योजननुं का . हांज मनुष्योनां जन्म तथा मरणनो संजव होवाथी ए मनुष्यलोक कहेवाय डे, तेथी वहार उपर कहेलां बे जातिनां पदी होय , तेमां समुशवत् समुज पतीनी पांख बेसती वखते संकोचने पामे , अने वितत पदीनी पांख सर्वदा विस्तारेलोज होय . ए सर्व खेचर जीवो जाणवा ॥२॥
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( २ )
हवे उपर त्रण प्रकारना जे तिर्यंच जीवो का ते एकेका वली बेबे ने बीजी रीते कहे डे:सवे जलथल खयरा, समुचिमा गनया उहा हुंति ॥ कम्पाकम्मग भूमि, अंतरदीवा मगुस्सा य ॥ २३ ॥
गाथा २३ मीना बूटा शब्दना अर्थ. स सर्व प्रकारना
जल-जलचर.
थव-स्थलचर.
खयरा - खेचर.
समुचिमा = संमूर्हिम.
गया - गर्भज.
हा- वे प्रकारना
हुति - बे.
कम्माकम्मग भूमि- कर्मभूमि
कर्मभूमिना. अंतरदीवा= अंतरदीपना.
मणुस्सा = मनुष्य.
अर्थ:- ए उपर कहेला ( सवे के० ) सर्व प्रका रना ( जल थल खयरा के० ) जलचर, स्थलचर तथा खेचर जीवो ते एक ( समुचिमा के० ) संमूबीजा ( गया के० ) गर्भज ए ( उहा के० ) द्विधा एटले वे प्रकारना ( हुंति के० ) बे. एम प्रत्येकना बब्बे प्रकार होवाथी बनेद थया. तेमां जे जीवो माता पितानी अपेक्षा विना उत्पन्न यायतें संमूर्छिमकवाने जे जीवो गर्नमां उत्पन्न
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(२६)
थाय ते गर्भज कहेवाय बे. तिहां एकेंद्रिय, द्वीप्रिय, त्रींद्रिय तथा चतुरिंद्रिय ए सर्व जीव संमूर्छिमज होय . ए तिर्यंचना सर्व मली अमतालीश नेद थाय बे ते आवी रीतेः- प्रथम एकेंद्रिय जीव बधा यावर कहेवाय बे. तेना बावीश नेद बागल चौदमी गाथाना अर्थमां दर्शाव्या बे ने वीजा त्रस जीवना बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौरिंडियाने पंचेंद्रिय ए चार भेद मूल बे; तेमां बेइंद्रिय, तेइंद्रिय तथा चौरिंडिय एत्रण विकलें डियने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता गणतां व भेद थाय ते पूर्वोक्त बावीश साथे मेलवतां अव्यावश भेद थया.
"
हवे पंचेंद्रिय तिर्यंचना वीश नेद वे ते देखाडे बे. जलचर, थलचर, खेचर, रः परिसर्प ने परिसर्प, ए मूल पांच भेद संमूर्छिमना ने पांच गर्भजना मली दश नेद याय. ते दश पर्याप्ता अने दश अपर्याप्ता मली वीश नेद थया, तेने पूर्वोक्त अव्यावीश साये मेलवतां अमतालीश नेद तिर्यंचना थाय. ए रीते गाथाना पूर्वार्धमां पंचेंद्रिय तिर्यंचनुं वर्णन क. हवे. गाथाना उत्तरार्धमां पंचेंद्रिय मनुष्यना भेद कहे :
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(३७) (कम्माकम्मग नूमि के ) कर्मचूमिमां उत्पन्न श्रयेला, अकर्मनूमिमां उत्पन्न थयेला तथा (अंत'रदीवा मणुस्सा य के०) अंतरछीपमा उत्पन्न अयेला ए त्रण प्रकारना मनुष्य होय . तेमां कृषिवाणिज्यादिक कर्मप्रधान नूमि ते कर्मचूमि कहीए. तेनूमिने विषे जे मनुष्य उत्पन्न थाय ने ते कर्मचूमिज कहेवाय ने. ते कर्मचूमि अढी छीपमां पंदर ने अने जेमां कृषि वाणिज्यादि कर्म नथी एवी अकर्मचूमि त्रीश ने, तथा अंतरछीप बप्पन जे ते आ प्रमाणे:एजंबुद्वीपना मध्यजागे मेरु पर्वत . ते मेरुथी दक्षिण दिशे लवण समुज्ने लगतुं लवण समुनी उत्तर दिशे नरत क्षेत्र नेते कर्मचूमिज जे तथा ते जरत क्षेत्रने उत्तर दिशिने बेडे हेमवंत पर्वत बे, ते पर्वत मूकी तेनी उत्तर दिशिमां हिमवंत नामे युगलियार्नु केत्र बे,अने वली मेरुथी उत्तर दिशेलवण समुनने लगतुं समुपनी दक्षिण दिशे ऐरवत क्षेत्र नेते कर्मचूमिज 'ले. ते ऐरवतनी दक्षिण दिशिने बेडे शिखरी नामे पर्वत बे, ते पर्वत सूकीने तेनी दक्षिण दिशे एक हिरण्यवंत नामे युगलियानुं क्षेत्र डे एटले पूर्वे . कहेला एक हिमवंत अने बीजुं हिरण्यवंत ए बे .
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( ३८ )
कर्मभूमि क्षेत्र बे; एने विषे युग लिया मनुष्य रहे बे, तेनुं सदाकाले एक गाउ देहमान ने एक पल्यो - पमनुं आयु. बे. त्यां सदाकाल त्री जो आरो वर्त्ते बे.
तथा वली ते पूर्वोक्त हिमवंत नामे युग लियाना क्षेत्रथी उत्तर दिशे एक महाहिमवंत पर्वत बे, ते पर्वतनी उत्तर दिशे हरिवर्ष नामे युग लियानुं देत्र बे तथा पूर्वोक्त हिरण्यवंत नामे युगलियाना क्षेत्रथी दक्षिण दिशे एक रूपी नामे पर्वत बे, ते पर्वतनी दक्षिण दिशे एक रम्यक नामे युग लियानुं क्षेत्र बे. ए रीते एक हरिवर्ष तथा बीजुं रम्यक एबे कर्मभूमि क्षेत्रमां युगलियां वसे बे, तेनुं सदाकाले बे गाउ देहमान ने वे पल्योपमनुं श्रायु बे. त्यां सदाकाल बीजो आरो व बे.
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तथा वली हरिवर्ष नामे युग लियाना देत्रथी उत्तर दिशे मेरुनी तरफ लाल हिंगला जेवा वर्णे निषध नामे पर्वत बे, तेनी पासे एक देवकुरु नामे युगलियानुं देत्र बे तथा वली मेरु थकी उत्तर दिशे जे रम्यक नामे युगलियानुं क्षेत्र बे तेनाथी दक्षिण दिशे नील वर्णे एक नीलवंत नामे पर्वत बे, ते पर्वत की दक्षिण दिशे मेरुनी
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पासे एक उत्तरकुरु गामे युगलियानुं क्षेत्र . एटले • एक देवकुरु अने बीजुं उत्तरकुरु ए बे अकर्मनूमि 'देत्र, तेने विषे युगलिया मनुष्य रहे . तेनुं सदा काल त्रण गाउनुं देहमान डे अने त्रण पट्योपमर्नु आयु बे. तिहां सदाकाल पहेलो आरो वर्ते बे. · तथा निषध अने नीलवंत ए बे पर्वतो कह्या तेनी वचाले मेरु पर्वत बे, ते मेरुनी चारे दिशि मांदेथी पूर्व दिशे पूर्व महाविदेहनी सोल विजय ने अने पश्चिम दिशे पश्चिम महाविदेहनी सोल विजय बे. ए बेहु मली बत्रीश विजय, एक महा विदेह नामे कर्मनूमि क्षेत्र . . ए.रीते प्रथम जंबुझीपने विषे एक हेमवंत अने हिरण्यवंत, बीजुं हरिवर्ष ने रम्यक, त्रीजुं देवकुरु ने उत्तरकुरु, ए त्रण जोमले मली ब क्षेत्र युगलिया मनुष्यनां ने ते अकर्मनूमिज कहीए, कारण के ए क्षेत्रमा जे मनुष्य रहे ने तेने प्रायः कर्म थोमां 'लागे बे, केमके असि, मसि ने कृषि ए त्रण वस्तु कर्मबंधनुं कारण ते वस्तु ए क्षेत्रोमां नथी, अने एक नरत, एक ऐरवत तथा एक महाविदेह मली त्रण क्षेत्र कर्मचूमिज .
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(४)
ए रीते बीजो धातकीखंग छीप अने पुष्करवरनो अर्ध ए दोढ बीपमा प्रत्येके प्रत्येके एक पूर्व दिशिए अने बीजो पश्चिम दिशिए भली बे वे मेरु पर्वत , अने ज्यां एक मेरु होय त्यां एक जरत, एक ऐरवत तथा एक महाविदेह, ए त्रण कर्मनूमि क्षेत्र होय अने पूर्वोक्त जंबुद्वीपनी पेठे ब युगलियानां क्षेत्र होय ते वारे बे जरत, बे ऐरवत, बे महाविदेह, ए ब क्षेत्र कर्मचूमिनां अने बे हेमवंत, वे हिरण्यवंत, बेहरिवर्ष, बे रम्यक, बे देवकुरु अने वे उत्तरकुरु, ए सर्व मली बार युगलियानां देव धातकी नामे बीजा छीपमां ने अने तेटलांज वली पुष्करार्ध नामे त्रीजा अर्धा छीपमां पण ने, केमके ए बेहु छीपमा प्रत्येके बेबे मेरु बे. ___ ए रीते ए अढी छीपनां देवने एकगं करीए ते वारे त्रीश क्षेत्र अकर्मचूमिनां अने पंदर क्षेत्र कर्मजूमिनां थाय, सरवाले पीस्तालीश देत्र मनुष्यनां थयां.
हवे वली उप्पन नेद बीजा देखाडे जे. जंबुद्धीप मांदला लरत क्षेत्रना उत्तरने बेडे हेमवंत नामे पर्वत बे. ते पूर्व दिशे अने पश्चिम दिशे लवण समुख पर्यंत लांबो जे. ते पर्वतनी पूर्व तथा पश्चिम एकेकी
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( ४१ ) दिशे लवण समुद्र मध्ये वे बे दाढा नकली बे ते वारे वे दिशिनी चार दाढा थइ, तेवीज रीते 'ऐरवत क्षेत्रने दक्षिणने बेडे शिखरी नामे पर्वत बे, ते पण पूर्व पश्चिम हेमवंतनी परे लांबो बे. तेमांथी पण हेमवंतनी रीते वे दिशिए मली चार दाढाउ समुद्रमां नीकली बे. एबे पर्वतनी या दाढाउ मांदेली एकेकी दाढाने विषे सात सात अंतरद्वीप बे, ते वारे व दाढाउने विषे उप्पन अंतरद्वीप थया तेने विषे पण युगलिया रहे बे, तेने अंतरीपनां मनुष्य कहीए.. ते मनुष्य एकांतरे आहार लीए बे, तथा तेमनां शरीरनी उंचाइ श्रावसो धनुष्यनी, अने पल्योपमना असंख्यातमा जाग जेटलुं तेमनुं ययु बे. ए प्रमाणे मनुष्यना पीस्तालीश नेद पूर्वे कह्या तेनी साथै ए अंतरीपना बप्पन नेद मेलवतां १०१ नेद थाय, तेने पर्याप्ता अने अपर्याप्ताए बे प्रकारे गुणीए ते वारे २०२ नेद थाय तथा वली एहीज गर्भज मनुज्यानां मल, मूत्र, श्लेष्म प्रमुख चौद स्थानकने विषे जे उपजे तेने संमूर्छिम मनुष्य कहीए. ते संमूहिम मनुष्य सर्व धुरी पर्यातिएज मरण पामे बे, माटे ए पर्याप्ताज होय, तेथी एना १०१ नेद पूर्वोक्त
.
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(४२) . २०२ नी साथें मेलवतां ३७३ जेद् थाय ने ॥ ३ ॥
हवे चार निकायना देवोना नेद कहे :- . दसदा. नवणादिवई, अविहा वाणवंतरा हुँति ॥ जोइसिया पंचविदा, उविदा वेमाणिया देवा ॥२४॥
गाथा २४ मीना बूटा शब्दना अर्थ. दसहा-दश प्रकारना. जोसिया-ज्योतिषी. नवणाहिवई-जवनाधिपति, | पंचविहा-पांच प्रकारना.
(जवनपति ). उविहा=बे प्रकारना. अविहा-आठ प्रकारना. वेमाणिया वैमानिक. वाणवंतरा-वाणव्यंतर देवो. देवा-देवो. दुति-वे.
अर्थः- जवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक, ए चार प्रकारना जे देव ने तेज॑मांना (दसहा जवणाहिवई के०) नवनाधिपति देवोना दश नेद बे, ते आः-असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिशिकुमार, वायुकुमार तथा स्तनितकुमार, ए दश नेद कह्या. हवे एर्नु रहेवानुं स्थान कहे जेः-रत्नप्रना नामे प्रथम नरकनुं दल जामपणे १७०० योजननु
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(५३) बे, तेमां तेर पाथमा , ते तेर पाथमाना बार
आंतरा बे, तेमांथी पहेलो अने बेझो आंतरो 'मूकीने बाकीना दश आंतरा वचाले रह्या, ते मांहे एकेके आंतरे एकेका जवनपति देवोनी निकाय , ते दशे निकायमांप्रत्येके एक दक्षिणे अने एक उत्तरे मली बेबे इंस, ते वारे दश निकायना वीश इंस बे.ए प्रथम जवनपति देवोने रहेवार्नु स्थानक कडं. . हवे ए बीजा व्यंतर निकायना देवो कहे . (अहविहा वाणवंतरा हुँति के ) आठ प्रकारना वाणव्यंतर देवो बे, तेमां व्यंतर देवोना आउनेद बे, ते आः-पिशाच, नूत, यद, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग अने गंधर्व, तथा बीजा अणपन्नी, पणपन्नी, रुषिवादी, नूतवादी, कंदित, महाकंदित, कोहंम अने पतंग, ए आठ नेद जे ते वाणव्यंतर देवोना जाणवा. : मेरु पर्वतना मूलमां सरखी पृथिवी . त्यांथी मांमी नीचे जइए ते वारे (
१०) योजन रत्नप्रजा पृथिवीना तलीया लगण थाय, तेमांथी एक हजार योजन उपर अने एक हजार योजन नीचे मूकीए, बाकी (१NGur)योजनमां पूर्वोक्त तेर पाथमा दे, तेमां
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दश नवनपतिना देवो रहे ,अने उपरला एक हजार योजन मूक्या वे तेमांथी वली सो योजन हेग्ल अने सो योजन उपर सूकी वाकी आउसो योजन रह्या तेमां आठ व्यंतरनी निकाय . ए आठ निकायमां पण दक्षिण अने उत्तर दिशिमली एकेकी निकायना बे बेजबे, ते वारे सोल इज व्यंतर देवोना ने तथा वली उपरला जे एकसो योजन सूक्या तेमांथी वली दश योजन उपर तथा दश योजन नीचे मूकीए, चाकी एंशी योजन रहे तेमां आठ प्रकारना वाणव्यंतर देवो रहे बे. एमां पण पूर्वोक्त रीते एकेकी निकायने विषे बे वे इंज गणतां सोल इंज वाणव्यंतर देवोना बे. सर्व मली बे प्रकारना व्यंतर देवोना बत्रीश इंश . तेनी साथे पूर्वोक्त जवनपति देवोना वीश ई मेलवीए ते वारे बावन इंस थाय.
हवे त्रीजा ज्योतिषी देवोनी निकायना देवो कहे . (जोशसिया पंचविहा के०) ज्योतिष्क देवोना पांच नेद , तेथाः-चंद्र, सूर्य, ग्रह, नत्र तथा तारा. ते फरी बे प्रकारना बेः- एक चर ने बीजा स्थिर, तेमां जे मनुष्यक्षेत्रने विषे ज्योतिषी ने ते चर एटले अस्थिर सदाकाल फरता रहे थे,
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(४५)
अने जे मनुष्यदेवथी बहार ते स्थिर , केसके तेमनां विमान फरतां नथी. जे ज्यां ने ते त्यां स्थिर रह्यां . एना पांच नेदमांथी एक चंद्रमा अने वीजो सूर्य, ए बेने इंझपदवी बे; बीजाने इंशपदवी नथी. मेरुने मूले संतला पृथ्वी थकी सातसें नेतुं योजन ऊंचा जश्ए तिहां तारानां विमान बे, तिहांथी दश योजने सूर्यनुं विमान बे, तिहांथी एंशी योजने चंडमानुं विमान बे, तिहाथी. चार योजन ऊंचा नक्षत्रनां विमान बे, तेथी उंचा सोल , योजनमा वली जूदा जूदा ग्रहनां विमान . ए रीते
सर्व मली सातसें नेवु योजनथी उपरे एकसो दश योजनमा ज्योतिषी देव रहे बे.
हवे चोथा वैमानिक देवोनी निकायना देवो कहे बे, (सुविहा वेमाणिया देवा के ) वैमानिक देवोना वे नेद बे, ते कहे . एक तो जे श्रीतीथंकरादिकना पांच कल्प एटले आचार जाणवा, माटे एने कल्पोपपन्न देवो कहीए. ते देवता सौधर्म, ईशानादि बार देवलोकना नेदे करी बार प्रकारे बे. ते बार देवलोकमां वली आउ देवलोक पर्यंत तो प्रत्येके एकेको इंज, अने नवमा तथा दशमा.
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(४५) ए वे देवलोके एक इंश , अने अगीयारमा तथा बारमा ए बे देवलोके पण एक इं . ए रीते बार देवलोकना मली दश न दे, अने पूर्वे नवनपतिना वीश तथा व्यंतरना वत्रीश अने ज्योतिषीना बे मली चोपन इंश कह्या तेनी साथे ए दश इंश मेलवीए ते वारे सर्व मली चोसठ इंश थाय. ए सर्व कल्पोपपन्न देवता कहेवाय.
हवे बीजाजेकल्प एटले आव्या गयानो आचार तेणे करी रहित ने तेने कल्पातीत देवो कहीए. तेना वली बे नेद दे. एक तो नव अवेयकना देवो अने बीजा पांच अनुत्तर विमानना देवो जाणवा.
हवे ए कल्पोपपन्न तथा कल्पातीत देवोनां स्थानक कहे जे. चौद राजलोक जे तेमां सात राज नीचे साते नारकीए करी पूख्यो डे अने सात राज उंचो . ए चौद राजलोक पुरुषने आकारे ले, तेमां नाचिने स्थानके मनुष्यलोक अने मेरुने मूले संन्नूतला पृथिवी बे,त्यांथी सातसें नेवु योजनश्री मामीने नवसे योजन पर्यंत उंचा ज्योतिषी देवो रहे बे, तेवार पनी एक राजने आशरे उंचा जश्ए तिहां दक्षिण दिशे सौधर्म देवलोक अने उत्तर दिशे ईशान देवलोक
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( ४१ ) ए रीते वे देवलोक जोमाजोडे बे. तेवारे वली त्रीजो सनत्कुमार दक्षिण दिशिए अने चोथो माहेंद्र उत्तर दिशे, ए रीते वे देवलोक जोमाजोडे बे. तेवार पबी वली पांचमो ब्रह्म देवलोक, बो लांतक, सातमो शुक्र, आठमो सहस्रार, ए चार देवलोक अनुक्रमे एक एकनी उपर केटले केटले यांतरे एकला एकवाज बे. तेवार पी वली केटलाएक उंचा जइए त्यां नमो नत ने दशमो प्राणत ए बे देवलोक दक्षिण ने उत्तरे जोमाजोडे बे. तेवार पढी वली पण केलाएक उंचा जइए तेवारे अगीयारमो आरण ने बारमो अच्युत ए बे देवलोक दक्षिण ने उत्तर दिशे जोमाजोडे बे. तेवार पी वली केटलाएक उंचा जइए तेवारे चौद राजलोकरूप पुरुषना गलाने स्थानके नव ग्रैवेयक बे. तेवार पी वली केटलेक उंचे पांच अनुत्तर विमान बे. तेवार पढी चौद राजलोकरूप पुरुषना ललाटने ठेकाणे सिद्ध शिला बे, ते स्फटिक रत्ननी परे निर्मल बे, तिहां सिद्धना जीवो रह्या बे. एम ए देवताने रहेवानां स्थानक कह्यां. दवे इहां वली to प्रकारना किल्बिषिया देवो तथा नव प्रकारना
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( ४०
लोकांतिक देवो ढे तेने रहेवानां स्थानक कही बतावे बे. त्यां प्रथम किल्विषिया देवानां स्थानक कहे बे. एक तो पहेला अने वीजा देवलोकनी नीचे ऋण पल्योपसना युवाला रह्या बे अने बीजा वली त्रीजा तथा चोथा देवलोकनी नीचे त्रण सागरोपमना युवाला रह्या बे, तथा त्रीजा वली पांचमा देवलोकनी नीचे तेर सागरोपमना आयुवाला रह्या ढे. ए त्रण प्रकारना किल्विषिया देवो चंमालप्रायः जाणवा तथा वली पांचमा देवलोकने बेडे उत्तर ने पूर्वनी अभ्यंतर कृष्णराजीमां नव प्रकारना लोकांतिक देवो रहे बे, एनुं या सागरोपमनुं यु बे.
1;
ए सर्व देवोना वधा मली एकसो ने अहाणुं नेद शास्त्रोमां कह्या बे, ते आ प्रमाणे: - जवनपतिना दश नेद, चर ज्योतिषीना पांच नंद, स्थिर ज्योतिबीना पांच जेद, वैताढ्यने विषे रहेनारा तिर्यग्जूं। जक देवोना दश नेद, नारकी जीवोने दुःख आपनारा परमाधामीना पंदर नेद, व्यंतरना आठ भेद, वाणव्यंतरना आठ भेद, किल्विषियाना त्रण नेद, लोकांतिकना नव भेद, वार देवलोकना वार नेद,
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(ए) नव ग्रैवेयकना नव नेद, पांच अनुत्तर विमानोना पांच नेद, ए सर्व मती नवाणुं नेदं थया. एने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता ए बे नेदे गुणतां एकसो ने
अहाणुं नेद थाय ॥२४॥ ___ ए रीते पूर्वोक्त तिर्यंचना अमतालीश, नारकीना चौद,मनुष्यना त्रणसें ने त्रण तथा देवताना एकसो ने अहाणुं मली जीवोना ५६३ नेदो थया. एम चौद राजलोकमां जीवादिक ब अव्य बे, तेमां एक जीव अव्यना एक संसारी अने वीजा सिक एबे जेद पूर्वे कह्या हता, तेमांथी संसारी जीवोना पांचसें वेसठ नेद संदेपे कही देखाड्या, ए संसारी जीवोनो विचार कह्यो.
हवे वीजा सिक जीवोना नेद कहे बे:सिहा पनरस नेया, तिब अतिबाइ
सिझनेएणं ॥ एए संखेवणं, जीववि. गप्पा समकाया ॥२५॥
गाथा २५ मीना बूटा शब्दना अर्थ. सिधा-सिद्ध
जेया नेदो. तिब-तीर्थकर
पनरस-पंदर.
जी. ४
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(ए) अतिबाइ अतीर्थकरादि. जीवविगप्पा-जीवना विकल्प सिब्जेएणं-सिघना नेदे करी.
(नेदो).
समरकाया-कह्या. संखेवेणं-संदेपश्री.
अर्थः-(सिधा के) सिद्ध ते सर्व कर्मोथी मुक्त थयेला जीवो, तेना (तिब अतिबा के) तीर्थकर तथा अतीर्थकरादि ( सिद्धलेएणं के०) सिझना जेदे करी (पनरस नेया के०) पंदर नेद थाय . ते पंदर नेदनां नाम नव तत्वना बालावबोध थकी जाणवां. (एए संखेवेणं के) ए पूर्वोक्त सर्व संदेपे करीने (जीवविगप्पा के ) जीवना विकल्प एटले नेद ते ( समरकाया के ) रुडे प्रकारे कह्या बे ॥२५॥
हवे जे आगल कहेवा योग्य बे ते मूल .
ग्रंथकर्ता पोतेज गाथा वडे कहे . एएसिं जीवाणं, सरीरमाऊ लिई सकायंमि ॥ पाणा जोणिपमाणं, जेसिं जं अजितं नणिमो ॥२६॥
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(५१) गाथा २६ मीना बूटा शब्दना अर्थ.
एएसि जीवाणं-ए जीवोनुं. जोणि-योनि. सरीरं-शरीर.
(पमाणं-प्रमाण. आऊ-आयुष्य.
जेसिं-जेमर्नु, विई-स्थिति.
जं-जेटलु. सकायंमि-पोतानी कायने विषे. अस्थि-डे. पाणा-प्राण,
तं नगिमोतेलु कहीशुं. अर्थः-(एएसिं के) ए पूर्वोक्त एकेडियादिक (जीवाणं के ) जीवोना एक ( सरीरं के) शरीरनुं प्रमाण, वीजुं (आज के ) जघन्यथी तथा उत्कृष्टथी आयुष्यनुं प्रमाण, त्रीजु (वि सकायंमि के०) एकेंजियादिक जीवो मरण पामीने फरी त्यांज उत्पन्न थाय एवीजे खकाय स्थिति तेनुं प्रमाण, चोथु ( पाणा के) इंजियादिक दश प्राणोतुं प्रमाण, पांचमुं ( जोणिपमाणं के) चोराशी लद योनि मांहेली कया कया जीवोमां केटली केटली योनि होय तेनुं प्रमाण, ते (जोर्स जं अनि के) जे जे जीवोनुं जेट डे (तं जणिमो के) ते जीवोनुं तेटर्बु अमे कहीशुं ॥ २६ ॥
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समा.
(५५) त्यां प्रथम शरीरना प्रमाणनो प्रकार कहे :
अंगुल असंख लागो, सरीरमेगिंदियाण सवेसि ॥ जोयण सहस्स
महियं, नवरं पत्तेय रुकाणं ॥ १७ ॥ ___ गामा ७ मीना बूटा शब्दना अर्थ. अंगुल-अंगुलना. | सहस्सं-हजार. असंख-असंख्यातमा. अहियं-अधिक. नागो-नाग जेटलुं. | नवरं-विशेष. सवेसि एगिदियाण=सर्वे एके- पत्तेय रुकाणं प्रत्येक वनस्पबिय जीवोनां.
तिना. . जोयण-योजन.
अर्थः- ( सवेसि एगिंदियाण सरीरं के ) सर्वे सूक्ष्म तथा बादर पृथ्वीकाय प्रमुख एकैछिय जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण (अंगुल असंख नागो के०) अंगुलना असंख्यातमा नाग जेटलुं होय , (नवरं के०) पण एटली विशेषता बेजे (पत्तेय रुरकाणं के०) प्रत्येक वनस्पतिना शरीरनुं प्रमाण (जोयण सहस्सम हियं के ) एक हजार योजनथी कांश्क अधिक होय बे. ते समुजादिकने विषे उत्सेधांगुल प्रमाण हजार योजनना उंमा पाणीमां पद्मनाल होय तथा आ
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अढी छीपथी बहार एवी लताउँ पण होय बे. अंहीं यद्यपि सामान्यपणे पृथ्वीकायादिक एकेजिय जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण अंगुलनो असंख्यातमो नाग मात्र कडं, तथापि संग्रहिण्यादिकने विषे विशेष करी जाणवामां आवे ने के अंगुलना असंख्यातमा जागना पण असंख्य जेदबे. एवीरीते ते एकेजियना शरीरनुं प्रमाण कडं. हवे हींजियादिक विकलेंजिय जीवोनां
शरीरोनुं प्रमाण कहे :बारस जोयण तिन्ने,-व गाजा जोयणं च अणुकमसो ॥ बेइंदिय तेइंदिय, चरिंदिय देहमुच्चत्तं ॥ ॥
गाथा २७ मीना बूटा शब्दना अर्थ. वारस-बार.
जोयणं एक योजन. जोयण-योजन.
अणुकमसो-अनुक्रमे. "तिन्नेव-त्रण.
देह-शरीर. गाजा-गाज.
उच्चत्तं-उंचपणुं. अर्थः-मनुष्यदेवनी बहार रहेला (बेदिय के) शंखादिक बेखिय जीवनां शरीरनी ऊंचाइ (बारस
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(ए) जोयण के)बार योजननी होय बे, अढी छीपनी वहार रहेला (तेदिय के०) कर्णशृंगालादिक तेइंघिय जीवोनां शरीरनी उंचार ( तिन्नेव गाउबा के ) त्रण गाउनी होय बे, (च के ) तथा अढी छीपनी वहार रदेला ( चारिदिय के०) मरादिक चौरिंजिय जीवोनां (देहमुच्चत्तं के) शरीरनुं ऊंचपणुं (जोयणं के) एक योजन- होय . ( अणुकमसो के) गाथाना पदना अनुक्रमे एटले बेजियने वार योजन वगेरे कहेवा ॥ २०॥ ए विकलेंशिय जीवोनां शरीरनुं प्रमाण कडं.
हवे नारकी आदिक पंचेंशिय जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण कहेतो थको प्रथम नारकी
जीवोनां शरीरनुं प्रमाण कहे बे. धणुसयपंच पमाणा, नेरझ्या सत्तमा पुढवीए॥ तत्तो अपणा, नेया रयएप्पदा जाव ॥श्ए॥
गाथा शए मीना बूटा शब्दना अर्थ. धणु-धनुष्य.
पमाणा-प्रमाण. सयपंच-पांचसें. | नेरझ्या नारकी.
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सत्तमाइ सातमी आदि. नेया-जाणवू. पुढवीए-पृथ्वीने विषे.
रयणप्पहा-रत्नप्रना. तत्तो तेथी.
जाव-ज्यांसुधी. अधचूणा अर्धा अर्धा उंग.।
अर्थः-( सत्तमाय पुढवीए के) तमस्तमःना. नामनी सातमी आदि नरकपृथ्वीमा रहेनारा (नेरश्या के) नारकीर्जनां शरीरोनुं प्रमाण आवी रीते :-( धणुसयपंच पमाणा के ) सातमी पृथ्वीना नारकीनां शरीरोनुं प्रमाण पांचसे धनुष्य जेटली उंचानुं बे. एम अनुक्रमे (तत्तो अबणा के) तेथी अर्ध अर्ध संख्या जणी करवी, एटले अढीसें धनुष्य जेटला प्रमाणनुं शरीर बही पृथ्वीना नारकीटना शरीरोनुं होय . सवासो धनुष्य उंचाश्चं प्रमाण पांचमी पृथ्वीना नारकीउनां शरीरोनुं होय . सामा बासठ धनुष्य उंचा
नुं प्रमाण चोथी पृथ्वीना नारकीनां शरीरोनुं . होय जे. सवा एकत्रीश धनुष्य' ऊंचाश्र्नु प्रमाण
त्रीजी पृथ्वीना नारकीनां शरीरोनुं होय . सामा पंदर धनुष्य अने बार अंगुल उंचाचं प्रमाण बीजी पृथ्वीना नारकीनां शरीरोनुं होय बे. स
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(द)
अनुक्रमे ( जाव रयणप्पहा के० ) यावत् रत्नप्रना नामनी पहेली पृथ्वीना नारकीर्तनां शरीरोनुं प्रमाण पोणा आठ धनुष्य ने व अंगुलनुं ( नेया के० ) जावं. एटलुं खाजाविक दे हनुं प्रमाण होय वे ते कयुं; पण एनुं वै क्रिय शरीरनुं प्रमाण तो एथी वमणुं होय बे ॥ २७ ॥ एस नारकीर्तनां शरीरोनुं प्रमाण कयुं. हवे तिर्यंच पंचेंद्रिय जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण ढी गाथाए करी कहे :जोयण सहस्स माणा, मच्चा जरगा य गनया हुंति ॥ धणु पुहुत्तं परिकसु, जुयचारी गाज पुहुत्तं ॥ ३० ॥ खयरा धणुच् पुहुत्तं, जुयगा उरगा य जोय पुहुत्तं || गाय पुहुत्त मित्ता, समुचिमा चप्पया जणिया ॥ ३१ ॥ बच्चेव गाडच्याई, चप्पया गनया मुणेयवा ॥
गाथा ३० मीना बूटा शब्दना अर्थ. जोयण = योजन. मचा = मत्स्य, मालां. उरगा-तरः परिसर्प. गलया - गर्भज.
सदस्य- हजार.
माणा मान, प्रमाण.
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fa
इंति-वे.
धणुा = धनुष्य. पुदुक्तं पृथक्त्व, वेथी नव सुधी. ! गाउळा = गाउ.
A.
५७ )
खयरा - खेचर. जुयगा-तुजपरिसर्प, मित्ता-प्रमाणवाला.
गाथा ३१ सीना बूटा शब्दना अर्थ.
समुचिमा - संमूर्खिम.
चप्पया चार पगवाला.
मणिया कह्या बे.
=
गाथा ३२ मी पूर्वार्धना बूटा शब्दना अर्थ.
बच्चेव - निचे ब.
गाउचाई = गाउ.
परिकसु-पक्षी नं. नुयचारी - तुजपरिसर्प.
गनया-गर्भज. मुणेयचा = जाएवा.
अर्थः- तिर्यच जीवो गर्नज ने संमूमि ए बे प्रकारना होय बे, तेमां गर्भजना शरीरनुं प्रमाण यावी रीतेः - (मछा उरगा य सहस्स जोयण माणा के० ) मत्स्य ने उरः परिसर्पनां शरीरनुं प्रमाण एक हजार योजननुं होय बे. एवां मोटां मत्स्यो स्वयंभूरमण समुद्रमां होय . अने एवा उरः परिसर्पो अढी द्वीपथी बहार होय बे. ( परिकसु धणु पुहुत्तं के० ) पक्षीनां शरीरनुं प्रमाण धनुष्य पृथक्त्व पटले वे धनुष्यथी लइने नव धनुष्य
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(ठ)
सुधी होय बे, अने ( यचारी गाउा पुहुत्तं के० ) गोधादिक जुजपरिसर्पना शरीरनुं प्रमाण गव्यूति पृथक्त्व पटले वे गाउथी मांगी नव गाउ सुधी होय. एवधा जीवो (गनया हुंति के० ) गर्भज बे ॥ ३० ॥ हवे संमूर्छिमनां शरीरतुं प्रमाण आवी रीतेःखयरा जुयगा धणु पुहुत्तं के० ) खेचर एटले पक्षी ने जग एटले मुजपरिसर्पनां शरीरोनुं प्रमाण धनुष्य पृथक्त्व एटले बे धनुष्यथी मांगीने नव धनुष्य सुधी होय बे, तथा ( जरगा य जोयण पुहुत्तं hu ) उरग एटले जरः परिसर्पनां शरीरतुं प्रमाण योजन पृथक्त्व पटले वे योजनथी मांगीने नव योजन सुधी होय बे, अने ( चउप्पया गाडय पुहुत्त सित्ता के० ) चतुष्पद एटले चार पगवाला जीवोनां शरीरतुं प्रमाण गाज पृथक्त्व पटले वे गाउथी मांगीने नव गाउ सुधी होय बे, एवी रीते ( समुचिमा जलिया के० ) संमूर्खिस तिर्यंच जीवोनां शरीरनुं प्रमाण कह्युं बे. केटलांएक पुस्त -- कोमां “जुयगा उरगा य जोयण पुहुत्तं" एवो पाव बे, ए प्रमाणे अर्थ करतां भुजपरिसर्पनां शरीखुं प्रमाण योजन पृथक्त्व थाय बे ते समीचीन
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नथी, केमके प्रज्ञापना तथा संग्रहिण्यादि सूत्रोथी विरुक ते ॥ ३१ ॥ अने (चजप्पया गप्नया बच्चेव गाजया के ) गर्नज चतुष्पद जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण उत्कृष्टथी व गाउनुज (मुणेयवा के०) मनाय वे. एवां मोटां शरीरना हस्ती देवकुळदिक युगलियानां क्षेत्रोमां होय ते.
हवे पंचेप्रिय मनुप्यनां शरीरतुं प्रमाण __ गाथाना उत्तरार्ध वडे कहे :कोस तिगं च मणुस्सा, जक्कोस सरीर माणेणं ॥३२॥ गाथा ३२ मी उत्तरार्धना बूटा शब्दना अर्थ. कोस-गाज.
उक्कोस-उत्कृष्ट. तिगंत्रण.
माणेणं-प्रमाण. माणुस्सा मनुष्य.
अर्थः-(मणुस्सा उकोस सरीर माणेणं के) उत्कृष्टथी मनुष्यनां शरीरचं प्रमाण ( कोस तिगं के ) त्रण कोशनुं होय . ते देवकुर्वादिक क्षेत्रोना युगलिया जाणवा ॥ ३२॥ ए मनुष्यनां देहसान कह्यां.
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हवे देवोनां खानाविक शरीरोनुं प्रमाण कहे बेः
ईसाणंत सुराणं, रयणी सत्त हुँति उच्चत्तं ॥ उग जुग जुग चन गेवि,जाणुत्तरे इतिक परिदाणी ॥ ३३ ॥
गाथा ३३ मीना बूटा शब्दना अर्थ. ईसाणंत=(वीजा ) ईशान देव- उच्चत्त-उंचाइ.
लोकना अंत सुधीना- जगने. सुराणं-देवतानां. चन-चार. रयणी-हाथ.
गेविजा-(नव ) अवेयक. सत्त-सात.
अणुत्तरे (पांच ) अनुत्तरमां. हुँति-होय .
इकिक-एक एक.
परिहाणी कर. अर्थः-(ईसाणंत सुराणं के) वीजा ईशान देवलोकना अंत सुधी जे नवनपति, व्यंतर तथा ' ज्योतिष्क देव ने तेउनां शरीरोनी ( उच्च के)। ऊंचाइ (सत्त रयणी डंति के) सात हाथनी
होय . त्यारपनी "जुग जुग जुग चउ गेविड। णुत्तरे इक्विक परिहाणी" अनुक्रमे एकेक हाथ
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(६१) घटामतां जवू; जेमके सनत्कुमार अने माहें ए पुग के ) हिक एटले बन्ने देवलोकमांना देवोनां शरीरोनी उंचाश्नुं प्रमाण व हाथर्नु होय बे, ब्रह्म अने लांतक ए (जुग के ) बे देवलोकमां पांच हाथ होय , शुक्र अने सहस्रार ए (जुग के० ) बे देवलोकमां चार हाथ होय , ए . त्रण कि कही अन यानत, प्राणत, आरण तथा अच्युत ए (चज के) चार देवलोकमांत्रण हाथ होय बे, (गेविज के ) नव अवेयकमां बे हाथ होय , अने (अणुत्तरे के०) पांच अनुत्तरवासी देवलोकमांना देवोनां शरीरोनुं प्रमाण एक हाथर्नु होय . ए रीते (शकिक परिहाणी के ) एकेक हाथनी हाणी करतां जq ते वारे पूर्वोक्त मान थाय, ए सर्व जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण उत्सेधांगुलनी रीते जाणवू ॥३३॥ हवे जीवोना आउखानुं बीजं धार कहे . . बावीसा पुढवीए, सत्तय आजस्स तिनि वाजस्स ॥ वास सहस्सा दस तरु,गणाण तेज तिरत्ताऊ ॥ ३४ ॥
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( ५२ /
गाथा ३४ मीना बूटा शब्दना अर्थ.
बावीस-बावीश. पुढवी ए = पृथ्वी काय.
सत्तय= सात.
श्राजस्स=अप्काय.
तिन्नित्रण.
वालस्स= वायुकाय. वास-वर्ष.
सहस्सा = हजार
दस-दश.
तरु = प्रत्येक वनस्पति.
गणाण = समूह. तेज-तेज काय. तिरित्ता-त्रण अहोरात्र
आऊ आयुष्य.
अर्थः- ( पुढवीए बावीसा के० ) पृथ्वी काय जीवोनुं आयु उत्कृष्टथी बावीश हजार वर्षनुं होय बे, (सत्तय यास्स के० ) काय जीवोनुं श्रायु सात हजार वर्षनुं, ( वास्स तिन्नि के० ) वायुकाय जीवोनुं आयु त्रण हजार वर्षनुं, ( तरुगणाण के० ) प्रत्येक वनस्पतिसमूहनुं श्रायुष्य ( दस सहस्सा वास ho ) दश हजार वर्षतुं होय बे ने ( ते तिरताऊ के० ) तेजस्काय जीवोनी उत्कृष्ट श्रायुःस्थिति अहोरात्रानी होय वे अने ए वधा जीवोनुं जघन्यथी अंतर्मुहूर्त्त त्र्यायुष्य होय बे ॥ ३४ ॥
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दवे विकलेंद्रिय जीवोनुं यु कहे बे. वासाणि बारसाऊ, बिंइंदियाणं ति
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( ६३ ) इंद्रियाणं तु ॥ अनापन्न दिखाई, चरिंदीणं तु वम्मासं ॥ ३५ ॥
गाथा ३५ मीना बूटा शब्दना अर्थ.
| तु=तो.
उणापन्न = गणपचास. दिलाई-दिवस.
चासाणि= वर्ष.
वारस=वार.
आऊन्त्रायुष्य.
विदियाणं वेइंद्रिय जीवोनुं चरिंदी = चतुरिंडिय जीवोनुं. तिइंदिया- ते प्रिय जीवोनुं | बम्मास = महीना.
अर्थः- (विदियाणं वारसाऊ वासाणि के० ) इंद्रिय जीवोनुं उत्कृष्टथी वार वर्षनुं आयुष्य होय : बे, ( ति दियाणं तु ० ) तेइंडिय जीवोनुं श्रायुष्य ( उपापन्न दिलाई के० ) गणपचास दिवसनुं होय
अने ( चरिंदीणं तु के० ) चतुरिंद्रिय जीवोनुं आयुष्य (उम्मासं के० ) ब महीनानुं होय बे. तेमज ए सर्व जीवोनुं जघन्यथी पूर्ववत् अंतर्मुहूर्त्तनुं आयुष्य : होय बे ॥ ३५ ॥ ए विकलेंद्रियनुं आयुष्य क. हवे पंचेंद्रिय जीवोनुं उत्कृष्टथी आयुः प्रमाण कहे बे:सुर नेरइयाण विई, नकोसा सागराणि तित्ती सं॥चडपय तिरिय मधुस्सा, तिन्नि
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(६४) य पलिउँवमा हुँति ॥३६॥ जलयर जर जुयगाणं, परमाऊ होइ पुछकोमा । परकीणं पुण नणिजे, असंखलागो अ पलियस्स ॥ ३७॥
गाथा ३६ मीना बूटा शब्दना अर्थ. सुर-देवता.
चउपय-चार पगवाला. नेरझ्याण-नारकी. | तिरिय-तिर्यंच. नि-स्थिति.
मणुस्सा-मनुष्य. उकोसा उत्कृष्टथी. तिनियन्त्रण. सागराणि-सागरोपम. पलिउवमा-पट्योपम. तित्तीसं तेत्रीश.
दुति-होय वे. गाथा ३७ मीना बूटा शब्दना अर्थ. जलयर जलचर.
परकीर्ण-पदीउनु. जर-जदरथी चालनारा. पुण-तेवी रीते, वली. नुयगाणं-लुजाथी चालनारा. नपिन कहेलु . परमाऊ-उत्कृष्ट आयुष्य. असंखन्नागो असंख्यातमो होश्-होय .
नाग. पुवकोमी-पूर्व कोमी. पलियस्स पढ्योपमनो.
अर्थः-(सुर नेरश्याण ठिई के ) देव' अने नारकीर्जुना आयुष्यनी स्थिति (उकोसा के)
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(६५) उत्कृष्टथी (तित्तीसं सागराणि के) तेत्रीश साग- ' रोपमनी होय . एटबुं आयुष्य पांच अनुत्तर विमानोना देवोर्नु तथा सातमी नरकना जीवोनुं उत्कृटथी जाणी लेवं अने ( चउपय के) चतुष्पद एटले चार पगवाला ( तिरिय केश ) तिर्यंच जीवोनु तथा ( मणुस्सा के ) सर्व प्रकारना माणसोनुं उत्कृष्टथी ( तिन्निय पलिवमा के) त्रण पट्योपमनुं आयुष्य (हुंति के) होय बे. एवा आयुष्यवाला जीवो देवकुर्वादिक क्षेत्रोमां होय बे. अहीं पट्योपम तथा सागरोपमने विषे सूक्ष्मताथी अथवा विशेषण विशिष्टनुं ग्रहण कस्याथी देव तथा नारकीउँनु जघन्यथी आयुष्य दश हजार वर्षतुं होय बे, अने मनुष्य तथा तिर्यंच जीवोनुं जघन्यथी पूर्वनी पेठे अंतर्मुहूर्त्तनुं आयुष्य होय बे॥३६ ॥ ___ गर्नज अने संमूर्बिम ए बे प्रकारना (जलयर
के ) जे जलचरजीवो ने, (उर के०) उदथी चाल: नारा जे सो बे, (जुयगाणं के०) जुजाथी चालनारा जे नोलिया प्रमुख जीवो बे, तेउनुं ( परमाज के) उत्कृष्टथी आयुष्य (पुवकोमी के०) पूर्व
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( ६६ ) कोमीनुं ( होइ के० ) होय बे. सित्तेर लाख अने बप्पन हजार कोटि वर्षनो एक पूर्व थाय बे. एवा एक कोटि पूर्वनुं आयुष्य जाणवुं . ( परकी के० ) पक्षीनुं (पुण के० ) तेवी रीतेज ( प लियस्स असंखनागो के० ) पल्योपमना असंख्यातमा नाग जेटलं आयुष्य ( नणि के० ) कहेलुं वे. आा गर्नज तिर्यंचनुं आयुष्य जाणवुं. आ प्रकरणमां संमूर्छिम स्थलचर तथा खेचरादि पंचेंद्रियोनुं उत्कृष्टथी श्रायु कयुं नथी, पण वीजा ग्रंथोमां कहेतुं बे, ते या प्रमाणे:- 'समुनि पििद थलयर, खयर जरग नुयय जिह विश् कमसो; वास सहस्साचुलसी, बिसत्तरी तिपन्न वायाला ||१||' इति ॥ ३७ ॥
हवे सूक्ष्मादि जीवोना श्रायुष्यनुं प्रमाण कहे बे:सधे सुदुमा सादा, रणाय समुचिमा मधुस्सा य ॥ उक्कोस जहन्ने, अंतमुत्तं चिय जियंति ॥ ३८ ॥
गाथा ३० मीना बूटा शब्दना अर्थ.
सबे - सर्वे. सुदुमा=सूक्ष्म.
साहारा = साधारणसमुचिमा - संमूर्व्विम.
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मगुस्सा = मनुष्य. जहन्नें - जघन्यथी. अंतमुदुतं अंतर्मुहूर्त्त.
( ६५ )
चिय- मात्र. जियंति - जीवे बे.
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अर्थ :- ( स ० ) पृथ्वी काय, अप्काय, तेजकाय, वायुकाय तथा वनस्पतिकाय, ए सर्वे ( सुदुमा साहारणा य के० ) सूक्ष्म तथा वीजा साधारण एटले बादर निगोदरूप जे अनंतकाय जीवो बे ते छाने ( समुचिमा मणुस्सा य के० ) संमूमि मनुष्यो जे एकसो ने एक क्षेत्रोने विषे उत्पन्न थयेला गर्भज मनुष्योनांज मल मूत्र तथा वातादिकने विषे उत्पन्न याय बे ते बधा (उक्कोस ho ) उत्कृष्टथी तथा ( जहन्नेां के० ) जघन्यथी ( तमुत्तं चिय के० ) एक अंतर्मुहूर्त मात्रज ( जियंति के० ) जीवे बे ॥ ३८ ॥
उपलां बे द्वारमां जे कयुं ते गाथा वडे सूचवे बे:
जंगाढणान माणं, एवं संखेवर्ड समकायं ॥ जे पुण व विसेसा, विसेस सुत्तान ते नेया ॥ ३५ ॥
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गाथा ३ए मीना बूटा शब्दना अर्थ. उगाहणा-अवगाहना. जे-जे. आउ-आयुष्य.
पुण-वली. भाएं-प्रमाण.
श्व-अही. एवं-एवी रीते.
विसेसा-विशेष. संखेवर्जसंदेपे करी. सुत्ताज-सूत्रोथी. समरकायं कर्तुं.
ते ते.
नेयाजाणी लेवा. अर्थः-(उंगाहणाज माणं के ) जेने विषे जीवनी स्थिति होय , जेमां जीव रहे तेने . अवगाहना कहीए, एवं जे प्रत्येक जीवनुं शरीर तेना आयुष्यनुं प्रमाण ( एवं के) एवी रीते ( संखेवर्ड के) संदेपे करी ( समरकायं के) समाख्यातं एटले कडं, परंतु (जे पुण श्व के) अत्रे वली जे कांश देवलोकादिकने विष प्रतरादि आश्रित ( विसेसा के ) विशेष अवगाहना तथा आयुना नेद बे ( ते विसेस सुत्ताउ के ) ते. विशेष सूत्र जे संग्रहिणी तथा प्रज्ञापनादिक सूत्रो बे ते थकी ( नेया के० ) जाणी लेवा ॥३॥ए रीते अवगाहना तथा आयुःस्थिति मली बे हार कह्यां.
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( ६ए ) हवे त्रीजुं खकाय स्थिति द्वार कहे बे:एगिंदिया य सवे, प्रसंख नस्सप्पिणी सकायंमि ॥ नववऊंति चयंति, अणणंतकाया प्रांता ॥ ४० ॥
गाथा ४० मीना बूटा शब्दना अर्थ. उस्सप्पिणी = उत्सर्पिणी. | चयंति-च्यवे बे. सकायंमि= पोतानी कायाने विषे. अता अनंत उत्सर्पिणी उववर्द्धति - उपजे वे. ने अवसर्पिणी सुधी. अर्थ:- (स एगिंदिया य के० ) पृथ्वी काय, अकाय, ते काय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय, ए जे पांच स्थावर एकेंद्रिय े ते सर्व (असंख उस्सप्पिणी के० ) असंख्य उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी सुधी ( सकायंमि के० ) तेज पोतानी कायने विषे ( उववऊंति के ० ) उत्पन्न थाय बे, अने ( चयंति tha) मरणने पामे बे. अर्थात् तेज कायम उत्पन्न
इने फरी त्यांज नाश पामे बे, तथा (तकाया ha) अनंतकाय वनस्पति जीवो जेबे ते ( अताउ ho) अनंत उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी सुधी यावत् स्वकायमा उत्पन्न थने तेज कायमां नाश पाने बे ॥४०॥ एवी रीते एकेंद्रिय जीवोनी काय स्थिति कही.
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() हवे छींजियादि विकलेंजियनी काय स्थिति कहे बेः
संखिज समा विगला, सत्तनवा पणिंदि तिरि मणुया ॥ उववऊंति सकाए, नारय देवा अ नो चेव ॥४१॥
गाथा ४१ मीना बूटा शब्दना अर्थ. संखिजसमा संख्यातांवर्ष सुधी मणुया मनुष्य. विगला विकलेंडिय जीवो. सकाए-पोतानी कायाने विपे. सत्त-सात अथवा आउ. नारयनारकीना जीवो. नवा-लव.
देवा देवो. पणिंजि-पंचेजिय.
नो-नहिः नथी. तिरि-तिर्यंच.
चेव-निश्चे. अर्थः-(विगला संखिजा समा के) वेजिय, तेंइनिय तथा चौरिडिय ए जे विकलेंजिय जीवो ने ते संख्यातां वर्ष सुधी (उववर्जति सकाए केप) उपपचंति खकाये एटले खकायने विषे उत्पन्न थाय अने च्यनेने तथा (पणिदि तिरि मणुया के ) पंचेंजिय तिर्यंच अने मनुष्य ए वे जातिना जीवो ते तेवाज जवपणे केमावेडे (सत्तह नवा के) सात अथवा आठ जव करे बे. साते नव तो --उत्कृष्ट संख्यातां वर्ष सुधीमां थइ शके बे अने
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उत्कृष्ट असंख्यातां वर्ष सुधीमां बाउ जव थश् शके बे. एटले आठ नवमां पूर्व कोटी पृथक्त्व अने त्रण पत्योपम अधिक काल जाणी लेवो अने जघन्यथी सर्वत्र कायस्थिति अंतर्मुहर्तनी जाणी खेवी. तथा ( नारय देवा अ नो चेव के) नारकी जीवो अने देवो मरण पामीने फरी तेज गतिमा उत्पन्न थता नथी एटले नारकी मरी फरी नारकीमा न उपजे अने देवता मरी फरी देवतामां न उपजे. अवश्य एक बे जव बीजी गतिमां करीने पछी : ते गतिमां उपजे, तेम वली देवता मरी नरकमां पण न जाय अने नारकी मरी देवतामां पण न जाय, ए त्रीजु खकाय स्थिति द्वार कह्यं ॥१॥
हवे चोथु प्राण द्वार कहे बेःदसहा जियाण पाणा, इंदि उसासाउ जोगबलरूवा ॥ एगिदिएसु चनरो, विगलेसु सत्त अहेव ॥ ४२ ॥ असन्नि सन्नि पंचिं,-दिएसु नव दस . कमेण बोधवा ॥ तेहि सह विप्पउँगो, जीवाणं नमए मरणं ॥४३॥
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गाथा ४२ मीना बूटा शब्दना अर्थ. दसहा-दश प्रकारना. वलरुवा-वलरूप. जियाण-जीवना. एगिदिएसु-एजियने विषे. पाणा-प्राण.
चउरो-चार. इदि-इजियो.
विगलेसु-विकलेंजियने विषे. जसास-श्वासोवास.
सत्त-सात. आज आयुष्य.
স্বস্বান্ত जोग-योग.
गाथा ४३ मीना बूटा शब्दना अर्थ. असन्नि-असंझी. तेहिँ-तेनी. सन्नि-संझी.
सह-साणे. पंचिंदिएसु-पंचेजियने विषे. विष्पोगो-वियोग. नव-नव.
जीवाणं-जीवने. दस-दश.
जमए कहेवाय . कमेण-क्रमे करी. मरणं मरण. वोधवा-जाणवा.
अर्थः-(दसहा जियाण पाणा के )जीवोना दश प्रकारना प्राण होय , ते कहे बे, (दि के०)इजियो (उसास के ) श्वासोबास, (आज के) आयु तथा ( जोगवलरूवा के योगनां वलरूप जाणवा. एट्ले स्पर्शनादि पांच इंजियो, बछो उल्हास निःश्वास,
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सातसुं श्रायु तथा मन, वचन, काय, ए त्रणं योगनां त्रण बल मली दश प्राण बे. तेमां (एगिं दिएस के० ) एकेंद्रिय जीवोने स्पर्शनेंद्रिय, श्वासोवास,
यु तथा कायबल, ए ( चउरो के० ) चार प्राण होय, ने ( विगलेसु के० ) विकलेंद्रिय एटले द्वीप्रिय जीवोने स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय, श्वासोवास, आयु, कायबल तथा वचनबल, ए ( ब के० ) ब प्राप होय वे. त्रीडिय जीवोने स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय, घ्राणेंप्रिय, श्वासोवास, आयु, कायबल तथा वचनबल, ए ( सन्त के० ) सात प्राण होय बे. चतुरिंडिय जीवाने स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय, प्राणेंद्रिय, चक्षुरिंडिय, श्वासोश्वास, आयु, कायबल तथा वचनबल, ए ( व के० ) आठ प्राण होय ते ॥ ४२ ॥
( सनसनि पंचिदिएस के० ) संज्ञी पंचेंप्रिय तथा संज्ञी पंचेंद्रिय जीवोने ( नव दस के० ) नव ने दश ( कमेण के० ) क्रमे करी बोधवा के० ) जाणवा. एटले संज्ञी पंचेंद्रिय जीवोने एक मनोबल होतुं नथी, बाकीना नवे प्राणो होय बे ने संज्ञी पंचेंद्रिय जीवोने दशे प्राणो होय बे. ए प्राण जेने जेटला कला बे ते जीवने ( तेहि
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AMA
(ज) सह विप्पङगो के) ते प्राणोनो जे वियोग थाय नेते (जीवाणं मरणं जमए के) जीवने मरण कहेवाय . वली ज्यां उपजे त्यां एक आयु तो पूर्वला नवतुं बांधेदुं होय, बाकी वीजा सर्व नवा प्राण अने नवी पर्याप्ति उपजती वेलाए बांधे. श्हां देव, नारकी, गर्नज तिर्यंच तथा मनुष्य ए जीवो संझी पंचेंजिय कहेवाय जे; अने संमूर्छिम तिर्यग्र तथा संसूर्छिम मनुष्य असंझी पंचेंडिय कहेवाय बे. तेउँमा संमूर्बिम मनुष्यो तो नावारूप वाग्वलादिके करी रहित होवाथी ते सात तथा आठ प्राणवाला कह्या ॥४३॥ ___ अहीं एवी आशंका उत्पन्न थाय बे के जीवने प्राण वियोगरूप जे मरण कयुं ते केटला काल सुधी थया करे बे ? एना निरासार्थ उत्तर कदे बे:एवं अणोरपारे, संसारे सायरंमि नीमंमि ॥ पत्तो अणंत खुत्तो, जीवेदि अपत्तधम्मदिं॥४४॥
गाथा ४४ मीना बूटा शब्दना अर्थ. एवं-ए प्रकारे. | संसार-संसाररूप. अणोरपारे-पारावार रहित. । सायरंमि-समुज्ने विषे.
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(ज) भीममिन्महा भयंकर. . जीवेहि जीवोने. पत्तो प्राप्त थाय . अपत्त नहीं पामेला. अणंत अनंती.
धम्मेहि धर्मने. खुत्तो-चार.
अर्थः-(अपत्तधम्मेहिं के ) जेर्डने धर्मनी प्राप्ति थइ नथी एवा (जीवहिं के० ) जीवोने ( एवं के०) पूर्वे कही आव्या तेमा (अणोरपारे के०) पारावार रहित एटले जेनी आदि पण नश्री अने अंत पण नथी एवा (जीमंमि के०) महा जयंकर (संसारे सायरंमि के०) संसाररूप समुउने विषे (अपंत खुत्तो के०) अनंती वार प्राणवियोगरूप मरण ( पत्तो के) प्राप्त थाय ॥ ४ ॥ ए चोधुं प्राण हार कडं.
एटले जे जीव धर्म नथी पाम्या ते जीव एकेकी योनिने विषे अनंती अनंती वार मरण जीवन प्रत्ये करे . योनि एटले जे स्थानमा घणा जीवोनो एक वर्ण, एक गंध, एक रस, एक स्पर्श, एटलां वानां सरखां बरोबर होय ते सर्व जीवनी एक योनि कहीए. ते योनि केटली ने ते सर्व जातिना जीवोनी जूदी जूदी संख्याए आगली गाथाए कहे .
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(६) हवे पांच योनिद्वार कहे :तह चरासी लका, संखा जोणीए दोइ जीवाणं ॥ पुढवाई चनएदं, पत्तेयं सत्त सत्तेव ॥ ४५ ॥ दस पत्तेय तरूणं, चउदस बरका दवंति इयरेसु ॥ विगलेंदिएसु दो दो, चनरो पंचिंदि तिरियाणं ॥ ४६ ॥ चउरो चउरो नारय, सुरेसु मणुआण चउदस दवंति ॥ संपिंमिया य सबे, चुलसी लरका जोलीणं ॥ ४७ ॥ गाथा ४५ सीना बूटा शब्दना अर्थ.
तह - तथा. चतरासी = चोराशी.
लरका-लाख.
संखा - संख्या.
जोणी ए = योनिनी. होइ - बे.
जीवाएं जीवोनी.
पुढवाई - पृथ्व्यादिकनी. चाहं चारनी. पत्तेयं = प्रत्येकनी.
सत्त सत्तेव- सात सात.
गाथा ४६ मीना बूटा शव्दना अर्थ. चउदस-चौद.
दस = दश.
पत्तेय तरुणं प्रत्येक वनस्पति- लरका - लाखकायनी. | हवंति - वे.
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(3) श्यरेसु-इतर (साधारणने विषे).चउरो-चार. विगदिएसु-विकलेंजियने विषे. पंचिंदि-पंचेंजिय. दो दो-वे वे. . तिरियाणं-तिर्यंचनी.
गाथा ४७ मीना बूटा शब्दना अर्थ. चरो-चार.
| संपिमिया एकनी करतां नारय नारकीनी. सर्वेसर्वे. सुरेसु-देवताउनी. चुलसी-चोराशी. मणुाण-मनुष्यनी. लरकाज-लाख. चउदस-चौद.
| जोणीणं-योनिजे. ___ अर्थः-(तह के०) तथा (जीवाणं के०) जीवोनी ( जोणीण के ) योनिनी ( संखा के) संख्या (चउरासी लरका के) चोराशी लद (होश के) बे. जीवोनुं जे उत्पत्तिस्थानक ते योनि कहेवाय बे. तेमां (पुढवाईण चजण्हं के०) पृथ्व्यादिक चार एटले पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजकाय तथा वाजकाय, ए चार प्रकारना जीवोनी (पत्तेयं के०) प्रत्येकनी (सत्त सत्तेव के) सात सात लाख योनिउँ जाणवी. एम चारेनी : सर्व मली अव्यावीश लद योनि थ ॥४५॥ (पत्तेय . तरूणं के०)प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवोनी (दस के०) दश लद योनि बे. ( श्यरेसु के ) श्तरेषु एटले ।
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(७) एथी इतर जे साधारण वनस्पतिकाय जीवो डे तेनी (चउदस लरका के) चौद् लद योनि (हवंति के० ) . (विगदिएसु दो दो के०) विकलेंघिय एटले बेइजिय जीवोनी बे लाख, तेइजिय जीवोनी बे लाख तथा चौरिंजिय जीवोनी वे लाख योनिउँ जाणवी; अने ( पंचिंदि तिरियाणं के ) पंचेंजिय तिर्यक् जीवोनी ( चउरो के) चार लद योनि बे॥ ४६॥ (चउरो नारय के० ) नारकी जीवोनी चार लद योनि , (सुरेसु चउरो के ) देवोनी पण चार लद योनि बे, (मणुआण के) मनुष्य प्राणीऊनी (चजदस हवंति के) चौद लाख योनिउ बे. एवी रीते (संपिंमिया य के) बधीने एकठी करतां सरवाले ( सवे के) सर्व ( चुलसी के ) चोराशी (लरकाउ के) लाख (जोणीणं के ) योनिउँ थाय ॥४॥
एवी रीते संसारी जीवो विषयक शरीरनुं मान, , आउखानी स्थिति, काय स्थिति, प्राण अने योनि • ए पांच हार कह्यां..
हवे सिद्ध जीवो विषयक कहे बे:सिक्षण नलि देदो, न आज कम्मं .
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(पुणे)
न पाण जोणी॥ साइ अणंता तेसिं, दिई जिणंदाऽऽगमे नणिया ॥४॥
गाथा ४७ मीना बूटा शब्दना अर्थ. सिघाण-सिखने. साइ-सादि. नधि-नथी.
अता-अनंत. देहो-शरीर, देह.
तेसिं-तेमनी. नम्नथी.
लिई-स्थिति. आज आयु.
जिणंदाऽऽगमे जिनेष प्रणीत कम्म-कर्म.
सिझवने विषे. पाण-प्राण.
नणिया कही वे. जोगी-योनि. __ अर्थः-( सिकाण देहो नदि के ) सिझ परमात्माने शरीर नथी, माटे (न आज कम्मं के०) आयु अने कर्म पण नथी; अने ज्यां आयु न होय त्यां (पाण जोणी न के) प्राण अने योनि पण नथी. ए सर्वनो अनाव होवाथी काय स्थित्यादिकनो पण अंजाव दर्शाव्यो. एम सर्व कर्मोपाधिविमुक्त अने जे लोकना अग्र नागने विषे स्थित ने (तेसिं के) ते सिद्ध जीवोनी (साइ अयंता लिई के) सादि अनंत स्थिति, ते ( जिणंदाऽऽगमे
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के० ) जितेंद्र प्रणीत सिद्धांतोने विषे ( जलिया ho) कही वे . एटले जे दिवसे यहींथी सिद्धमां गमन थाय ते दिवसे सिद्ध सादिपणुं कर्तुं वे, अने फरी त्यांथी च्यवननो अभाव होवाथी अनंतपणुं वे ॥ ४८ ॥
हवे फरी संसारी जीव विषे कहे :काले पाइनिदणे, जोणी गहणंमि जीसणे इव ॥ नमिया जमिदंति चिरं, जीवा जिणवयणमलहंता ॥ ४८ ॥ गाथा ४० मीना बूटा शव्दना अर्थ.
काले-कालने विषे. श्रानिह ( आदि जोणी - योनि.
ग्रहणं मि- गहन दुःख देनारो. जीस-जयने देनारो.
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| वहीं, संसारने विषे.
अनादिनिधन नमिया - नटकेला वे. रहित )
जमिति - नमशे.. चिरं-लांबा काल सुधी. जिणवयणं - जिनवचनने.
अलहंता नहीं पामेला.
अर्थः- आदि एटले प्रारंभ, निधन एटले नाश वन्ने शब्दो विनक्ति विनाना होवाथी तेर्जनुं एक अन्वयित पद "दिनिधन" एम थाय बे. ए पदनो अर्थ वृत्तिकार आम करे बेः - जेनो प्रारंभ अने नाश दीगमां आवतो नथी तेने अनादिनिधन कहीए. ए
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(१) (अणानिहणे काले के०) अनादि अनंत कालने विषे (जिणवयणमलहंता जीवा के ) हितोपदेशरूप 'जिनवचनने जे जीवो पाम्या नथी ते (जोणी के०) चोराशी लाख संख्यावाली जे योनि तेणे करी(गहणंमि के०) महा गहन उःख देनारो तथा (जीसणे के) जयने देनारो (श्व के) हां वर्णव्यो एवो जे आ संसार तेने विषे (नमिया के) अतीत कालने विषे नटकेला,अने फरी (जमिहंति चिरं के०) आगल आगामिक कालमां पण घणुं ब्रमण करशे ॥४५॥
हवे ग्रंथकार पोताना नामनी सूचना करता ... बंता धर्मोपदेश कहे :ता संपइ संपत्ते, मणुअत्ते उल्लहे वि सम्मत्ते ॥ सिरि संति सूरि सिके, करेद नो उजमं धम्मे ॥ ५० ॥
गाथा ५० मीना बूटा शब्दना अर्थ. ता-ते कारण माटे. | सम्मत्ते-सम्यक्त्व. संपश्-सांप्रत काले. सिरि-श्री, ज्ञानादि लक्ष्मी. . संपत्ते प्राप्त थयु. संति शांति, रागादिकनो मणुअत्ते-मनुष्यपणुं.
उपशम. उबहे-मुर्खनः
सूरि-सूरि, पूजवायोग्य. वि-पण.
| सिं-शिष्ट, उपदेश करेला.
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करेह - करो. जो = हे नव्यजीवो.
उसमं-उद्यम. धम्मे धर्मने विषे. अर्थ : - ( ता के० ) ते पूर्वोक्त कारण माटे ( जो के० ) हे व्यजीवो ! ( संपइ के० ) सांप्रत या समयने विषे दश दृष्टांते करी ( दुल्हे के ० ) डुर्लन एवं जेा ( मणुत्ते के० ) मनुष्यपणुं ते ( संपत्ते ho ) प्राप्त युं बतां अने (वि सम्मत्ते के० ) तेमां पण दुर्लन जिनोक्त तत्त्वत्रयरुचिरूप सम्यक्त्व प्राप्त युं बतां (सिरिसं ति सूरि सिद्धे के ० ) श्री एटले ज्ञानादि लक्ष्मी, शांति एटले रागादिकनो उपशम, एए करी जे सूरि एटले पूज्य एवा श्री तीर्थंकर तथा गणधर ते शिष्टे करेला उपदेशरूप ( धम्मे उद्धमं करेह के० ) धर्मने विषे उद्यम करो ॥ ५० ॥ या पद्यमां कविए पोतानुं नाम सूचव्युं बे ते यावी रीतेः - श्री शांति सूरि उपदेश करे बे के शिष्टे एटले उत्तम पुरुषो यांचरण करेला धर्मने विषे उद्यम करो. एवो अन्य करवो. अथवा श्री शांति सूरिए करेला जगवद्वचनानुसारे धर्मोपदेशनो उद्यम करो. हवे या ग्रंथ सिद्धांतमांथी कहाडेलो बे एम कहे बेःएसो जीववियारो, संखेवरुईण जा
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(३) णणा देठं । संखित्तो नहरिज, रुदाई सुयसमुद्दाऊं ॥५१॥इति ॥ __ गाथा ५१ मीना बूटा शब्दना अर्थ. एसो-ए.
| संखित्तो संक्षेपथी. जीववियारो जीवविचार. उमरि-उधार कयों ने. संखेवरुईण-संदेपरुचिवंतने. रुदा अतिशय विस्तारवाला. जाणणा हेजें-जाणवाने अर्थे । सुयसमुदा-श्रुतसमुपथी. __ अर्थः-( एसो के ) ए जे (जीववियारो के) जीव विचार कह्यो ते (संखेवरुईण के) संदेपरुचि एटले खल्प मतिवाला जीवोने (जाणणा हेजं के) जाणवाने अर्थे ( रुदा के )जेना विस्तारनुं ग्रहण थश् शके नहीं एवा (सुयसमुद्दा के) श्रुतसमुख थकी (संखित्तो उहरिज के०) संदेपथी उझार करीने आ निबंध कस्यो बे. एथी या सर्व जे कांश कडं ते पोतानुं मनःकल्पित कझुनथी; परंतु सिद्धांतोमाथी बझार करीने कर्तुं ,एवी सूचना करी॥५१॥
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इति श्रीजीव विचारप्रकरणं प्राकृत- दि .. व्याख्यासहितं संपूर्णम् ॥
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॥जीवविचारनुं स्वरूप लिख्यते॥
॥जीवना बे नेद ॥ ३ चौरिनिय जीव. १ संसारी जीव. ४ पंचेंद्रिय जीव. २ सिद्धना जीव. ॥ स्थावरना पांच नेद ॥ ॥ संसारीना बे नेद ॥ १ पृथ्वीकाय जीव,
१ त्रस जीव. अप्काय जीव.
२ स्थावर जीव. ३ तेउकाय जीव. ॥ सना चार नेद ।। ४ वाउकाय जीव. १ वेत्रिय जीव. ५ वनस्पतिकाय जीव. ५ तेप्रिय जीव.
१॥ पृथ्वीकायना नेद कहे ॥ स्फटिक रत्न, मणि, रत्न, परवाला, हींगलो, हरताल, मणसिल, पारो, सोनुं आदि देश सात धातु १ ते सोनु,रू', त्रां, सीसुं, जसत, कथीर तथा लोढुं , ७, खलीमाटी, हरमजी, पाषाणना कटकानी साथे । मलेली धोली माटी, पलेवो पाषाण, अवरख, तुरी
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(५ माटी, खारो, माटीनी जात, पाषाणनी जात आदि दे पृथ्वीकायना नेद जाणवा, १
२॥ अप्कायना नेद कहे ॥ मिनुं पाणी, वरसादनुं पाणी,गरनुं पाणी,हिमर्नु पाणी, करानुं पाणी, लीली हरिकायनुं पाणी, घनोदधिनुं पाणी आदि देश् अप्कायना नेद जाणवा.
३॥ तेउकायना नेद कहे ॥ अंगारानो अग्नि, ज्वालानो अग्नि, नागनो अग्नि, नकापातनो अग्नि, वजनो अनि, विजलीनो अनि आदि देश तेउकायना नेद जाणवा. ३
४॥ वाजकायना नेद कहे ॥ उसामक वायरो, उत्कलिक वायरो, मंमलिक वायरो, मोटो वायरो, शुद्ध वायरो, गुंजारव करेते वायरो, घनवात, तनुवात आदि देश वांउकायना नेद जाणवा. ४
५॥ वनस्पतिकायना बे नेद कहे ॥ . १ साधारण वनस्पति. प्रत्येक वनस्पति.
१॥ साधारण वनस्पतिना नेद कहे ॥ सर्वजातनां कंद, सर्व जातना अंकुरा, सर्व जातनां
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कुंपल, पांच जातनी फुगी, सेवाल, नूमिफोमा, लीवु आउ, लीली हलदर ने लीलो कचुरो, गाजर, मोथ, वथुलानी नाजी, ग, सर्व जातना पाला, कोमल फल, सर्वे गुप्त ने सिरा, सांध, पर्व जेनां एवां, शुहर, कुंवार, गुगल, गलो प्रमुख उद्या थकी उगे तेने साधारण वनस्पति कहीए.
॥ प्रत्येक वनस्पतिना नेद कहे ॥ एक शरीरमां एक जीव होय जेने विषे तेने प्रत्येक वनस्पति कहीए. ते फल, फूल, बगल, काष्ठ, मूल, पान ने वीज ए सात स्थानके एक एक जीव होय तेने प्रत्येक वनस्पति कहीए. ए पांच स्थावरना नेद कह्या.
॥ वेजियना नेद कहे ॥ शंख, कोमी, गंडोला, जलो, चंदनक एटले स्थापनाचार्य, अलसीआ,लालीबा,लाकमाना कीमा, कीरमीश्रा, पूरा ए आदि देश्वेजिय जीव जाणवा.
॥ तेभियना नेद कहे ॥ कानखजुरा, मांकण, जु, कीमी, उदेश, मंकोमा, श्ल, घीमेल, सावा,गींगोमा,गधश्या, बाणना कीमा, विष्टाना कीमा, धनेरीश्रा, कुंथुथा, गोपालीक, मेहना मामा आदि देश तेभियना नेद जाणवा,
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is )" ॥ चौरिंडियना भेद कहे बे ॥ विg, ढिकुण, जमरा, जमरी, तिम, माखी, मांस, मछर, कंसारी, करोलीच्या आदि देइ चौरिंडियना नेद जाणवा.
॥ पंचेंद्रियना चार नेद कहे बे ॥
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१ नारकी २ तिर्यंच. ३ मनुष्य ४ देवता॥ नारकीना सात नेद ॥ नारकीनां नाम.
गोत्रनां नाम.
रत्नप्रभा.
शर्कराप्रमा.
वालुकाप्रजा. पंकप्रना.
धूमप्रजा.
तमः प्रना.
तमस्तमः प्रजा.
घमा.
वंसा.
सेला.
अंजणा.
रिहा.
मघा. माघवती.
॥ तिर्यंचना ण द ॥
२ स्थलचर ३ खेचर.
१ जलचर.
१ ॥ जलचरना पांच भेद कहे बे ॥
१ सुसुमार. १ मछ. ३ काचबा. ४ जलतंतु.
५ मगरमच्छ .
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() ॥ स्थलचरना त्रण नेद ॥ उरःपरिसर्प. सर्पनी जाति. जुजपरिसर्प. नोलिया, सुंदर प्रमुख. चतुष्पद. गाय, नेस प्रमुख.
. ३॥ खेचरना बे नेद ॥ रोमज पंखी, चर्मज पंखी, मनुष्यलोकथी बहार समुझ पंखी ने वितत पंखी.
मनुष्यनी मुख्य त्रण जाति बे. तेनी उत्तर जाति ११ मनुष्यदेव जाणवां.
१५ पंदर कर्मचूमि. ३० त्रीश अकर्मचूमि. ५६ बप्पन अंतरछीप.
. ॥ हवे पंदर कर्मचूमि कहे ॥ पांच जरत. पांच ऐरवत. पांच महाविदेह.
॥ हवे त्रीश अकर्मनूमि कहे ॥ १ पांच हेमवंत देत्र. ५ पांच हिरण्यवंत देत्र. ३ पांच हरिवर्ष देत्र. ४ पांच रम्यक क्षेत्र, ५ पांच देवकुरु क्षेत्र. ६ पांच उत्तरकुरु क्षेत्र.
॥हवे बप्पन अंतरडीप कहे ॥ चुलहेमवंत पर्वत अने शिखरी पर्वत, ए वे पर्व
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(C) तनी पूर्वे ने पश्चिमे लवण समुअमां बे बे दाढाउँ नीकली बे; एटले वंने पर्वतनी बंने दिशिनी आठ दाढा यश. ते एक एक दाढा उपरे सात सात छीपने एटले आउ दाढा उपर उप्पन अंतरछीप श्रया. ए प्रमाणे मनुष्यना १०१ नेदं जाणवा.
॥ देवताना चार नेद कहे ॥ १ दश नवनपति. २ आठ व्यंतर तथा वाणव्यंतर. ३ पांच ज्योतिषी. ४ बे वैमानिक.
॥ दश नवनपतिनां नाम कहे ॥ १ असुरकुमार. २ नागकुमार. ३ सुर्वणकुमार. ४ विद्युत्कुमार.५ अग्निकुमार.६वीपकुमार. उदधिकुमार.दिशिकुमार.ए वायुकुमार. १० स्तनितकुमार. ॥ व व्यंतर तथा वाणव्यंतरना नेद कहे ॥
१ पिशाच. ५ जूत. ३ यद. ४ राक्षस. ५ किंनर ६ किंपुरुष. ७ महोरग. गंधर्व.
अणपन्नी. पणपन्नी.३श्सीवादी.४ नूतवादी. ५ कंदित. ६ महाकंदित. ७ कोहंम. पतंग.
॥ज्योतिषीना पांच नेद कहे ॥ १ चंद्र. २ सूर्य. ३ ग्रह. ४ नक्षत्र. ५ तारा.
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॥ वैमानिकना बे नेद' कहे ॥ १कल्प ते बार देवलोक. २ कल्पातीत ते नव प्रैवेयक ने पांच अनुत्तर विमान.
॥ कल्प ते बार देवलोकनां नाम कहे ॥
१ सौधर्म. ५ ईशान. ३ सनत्कुमार. ४ माहें. ५ ब्रह्म. ६ लांतक, शुक्र. ज सहस्त्रार. ए आनत. १० प्राणत. ११ आरण, १२ अच्युत. ॥कल्पातीत ते नव ग्रैवेयक ने पांच अनुत्तर विमान ॥
॥ नव अवेयकनां नाम कहे ॥ १सुदर्शन.२ सुप्रतिबंध.३मनोरम.४ सर्वतोजन. ५ विशाल. ६ सुमनस. ७ सौमनस. ७ प्रीतिकर. ए आदित्य,
॥ पांच अनुत्तर विमाननां नाम कहे ॥ १ विजय. २ वैजयंत. ३ जयंत. ४ अपराजित. ५ सर्वार्थसिक.
॥ ए संसारी जीवोना नेद कह्या ॥
॥ हवे सिद्धना पंदर नेद कहे ॥ . तीर्थसिझ, अतीर्थसिक आदि देश सिद्धना पंदर नेद जाणवा. . . . ए जीवनुं स्वरूप कडुं.
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(ए?). ॥ हवे पांच हारनां नाम कहे ॥ १ शरीरनुं धार. ५ आउखानी स्थितिनुं द्वार. ३ पोतानी कायमां. रहे तेनुं छार. ४ प्राणर्नु हार. ५ योनिनु कार.
'१॥ हवे शरीरनुं बार कहे ॥ सर्व एकेजियनुं अंगुलना असंख्यातमा नागर्नु शरीर होय, पण प्रत्येक वनस्पति-हजार योजनथी अधिक शरीर जाणवं.
बेजियतुं बार योजननुं शरीर, तेइंडियनुं त्रण गाउनुं शरीर, चौरिंजियतुं एक योजननुं शरीर..
पांचसो धनुष्यनुं शरीर सातमी नारकीर्नु, पनी अर्ध अर्ध उठे करीए त्यारे पहेली नारकीर्नु पोणा आठ धनुष्य ने आंगलनुं शरीर जाणवू. __ गर्नज मठ ने उरःपरिसर्पनुं हजार योजन
शरीर जाणवु. . पक्षीनुं धनुष्य पृथक्त्व एटले बेथी नव धनुष्यनुं शरीर जाणवू.
जुजपरिसर्पनुं गाउ पृथक्त्व शरीर होय. ॥ए शरीरनुं मान गर्नजनुं जाणवू ॥
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(ए) ॥ संमूर्बिमनु शरीरमान कहे. ॥ .. खेचर पंखीनुं तथा जुजपरिसर्पनुं धनुष्य पृथक्त्व 'शरीर जाणवू. । उरःपरिसर्पनुं योजन पृथक्त्व शरीर जाणQ. संमूर्बिम चतुष्पदनुं गाउ पृथक्त्व शरीरमान जाणवू.
॥ गज ॥ चतुष्पदनुं ब गाउनुं शरीर होय.
मनुष्यनुं त्रण गाउनुं शरीर होय. जवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिकमां सौधर्म ने ईशान ए बे देवलोक सुधीना देवतानुं सात हाथर्नु शरीर जाणवू.
त्रीजे चोथे बहाथर्नु शरीर. पांचमे के पांच हाथर्नु शरीर.
सातमे आग्मे चार हाथ; नवमे, दशमे,अग्यारमे, बारमे ए चार देवलोके त्रण हाथर्नु शरीर, 'नव अवेयके वे हाथर्नु शरीर. पांच अनुत्तर विमाने एक हाथर्नु. ए शरीरनुं मान जाणवू.
२॥ आउखानुं मान कहे ॥ _ पृथ्वीकायर्नु बावीश हजार वर्ष, अप्कायर्नु सात
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( ए३) हजार वर्ष, ते कायनुं त्रण अहोरात्र, वाकायनुं त्रण हजार वर्ष ने वनस्पतिनुं दश हजार वर्षनुं श्राखुं जाणवुं.
इंडियनुं बार वर्ष. तेइंद्रियनुं उगणपचास दिवस. चौरिंडियनुं ब मासनं.
देवता ने नारकीनुं त्रीश सागरोपम, चतुष्पद, तिर्यंच ने मनुष्यनुं त्रण पत्योपमनुं श्रजखुं. जलचर, उरः परिसर्प, जुजपरिसर्प एउनुं उत्कृष्ट पूर्व कोमीनुं खं जावं.
पक्षीनुं पल्योपमना असंख्यातमा जागनुं श्रायुष्य जाणवुं.
सर्व सूक्ष्म तथा साधारण वनस्पति ने संमूहिम मनुष्य एनुं जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त्तनुं उखु होय.
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॥ हवे संमूर्धिमनुं श्रायुष्य कहे बे ॥ जलचर संमूर्छिमनुं पूर्व क्रोम वर्ष, स्थलचरनुं चोराशी हजार वर्ष, खेचरनुं बहोंतेर हजार वर्षनुं आयुष्य, उरः परिसर्पनुं त्रेपन हजार वर्षनुं त्र्यायुष्य,
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जुजपरिसर्पनुं बेंतालीस हजार वर्षनुं आयुष्य. एवी
रीते आयुष्यनुं मान जाएवं.
३ ॥ हवे कायनी स्थितिनुं द्वार कहे बे ॥ | एकेंद्रिय असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी सुधी पोतानी कायमां रहे.
अनंतकाय अनंती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी सुधी पोतानी कायम रहे.
बेइंद्रिय, तेइंद्रिय तथा चौरिंद्रिय ए त्रणे विक लेंद्रिय संख्यातां वर्ष सुधी रहे.
मनुष्य तथा तिर्यंच सात व जव सुधी रहे. नारकी मरी नारकी न थाय.
देवता मरी देवता न थाय.
४ ॥ हवे दश प्राणनुं द्वार कहे . बे ॥
१ स्पर्शनें प्रिय. श्रसनेंद्रिय.
३ घ्राणेंद्रिय.
४ चरिं प्रिय.
५ श्रोत्रें प्रिय.
६ श्वासोवास. खुं.
छ मनबल.
ए वचनबल.
१० कायवल.
ए दश प्राण जाणवा.
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एकैडियने चार प्राण. बेजियने ब प्राण. तेजियने सात प्राण. चौरिंजियने आठ प्राण. असंझी पंचेंजियने नव प्राण. संझी पंचेंजियने दश प्राण. ___५॥ हवे योनिनुं हार कहे ॥ सात लाख पृथ्वीकाय. सात लाख अप्काय. सात लाख तेउकाय.. '. सात लाख वाजकाय. दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय. चौद लाख साधारण वनस्पतिकाय. बे लाख बेइजिय. .. बे लाख तेइजिय. बे लाख चौरिंजिय. चार लाख देवता. चार लाख नारकी.
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________________ चार लाख तिर्यंच पंचेंजिय. चौद लाख मनुष्यना नेद. ए सर्व मली सर्व जीवोनी चोराशी लाख जीवायोनि थाय. सिझना जीवोने देह नथी, आयु नथी, कर्म नथी, प्राण नथी, योनि नथी. ए सिझना जीवोनी सादि अनंत स्थिति जाणवी. HARTRAITREENERRRRRRRRRRRENT इति जीवविचार प्रकरणना / . बूटा बोलो समाप्त. Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay. Pablished by Bhanji Daya for Bhimsi Blaneck, 238-240, plandri, Sackgalli, Bombas. - - - माaaspre -