Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२६)
थाय ते गर्भज कहेवाय बे. तिहां एकेंद्रिय, द्वीप्रिय, त्रींद्रिय तथा चतुरिंद्रिय ए सर्व जीव संमूर्छिमज होय . ए तिर्यंचना सर्व मली अमतालीश नेद थाय बे ते आवी रीतेः- प्रथम एकेंद्रिय जीव बधा यावर कहेवाय बे. तेना बावीश नेद बागल चौदमी गाथाना अर्थमां दर्शाव्या बे ने वीजा त्रस जीवना बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौरिंडियाने पंचेंद्रिय ए चार भेद मूल बे; तेमां बेइंद्रिय, तेइंद्रिय तथा चौरिंडिय एत्रण विकलें डियने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता गणतां व भेद थाय ते पूर्वोक्त बावीश साथे मेलवतां अव्यावश भेद थया.
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हवे पंचेंद्रिय तिर्यंचना वीश नेद वे ते देखाडे बे. जलचर, थलचर, खेचर, रः परिसर्प ने परिसर्प, ए मूल पांच भेद संमूर्छिमना ने पांच गर्भजना मली दश नेद याय. ते दश पर्याप्ता अने दश अपर्याप्ता मली वीश नेद थया, तेने पूर्वोक्त अव्यावीश साये मेलवतां अमतालीश नेद तिर्यंचना थाय. ए रीते गाथाना पूर्वार्धमां पंचेंद्रिय तिर्यंचनुं वर्णन क. हवे. गाथाना उत्तरार्धमां पंचेंद्रिय मनुष्यना भेद कहे :

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