Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२१.) नुयपरिसप्पा-जुजपरिसर्प. नउल-नोलिया. श्रलयरा-स्थलचर जीव. पमुहाप्रमुख. तिविहा त्राण प्रकारना. | बोधवा-जाणवा. गो-गाय.
समासेणं-संदेपथी. सप्प-सर्प.
अर्थ:-( अलयरा तिविहा के) स्थलचर जीवो त्रण प्रकारना , ते आः-एक (चउपय के) चतुपद एटले चार पगवाला सर्व प्रकारनां पशुउँ जाणी देवां, वीजा (उरपरिसप्पा के०) उरःपरिसर्प ए जीवो उदरथी चाले बे. एनी नाग प्रमुख घणी जाति होय , एमां केटलाएक जीवो विषरहित होय , अने केटलाएक विष सहित होय बे. ते लोकमां प्रसिद्ध ले. (य के ) वली त्रीजा (जुयपरिसप्पा केप) जुजपरिसर्प ए जीवो जुजा वडे चाले बे. ते नोलिया प्रमुख जाणी लेवा. ए उपर कह्या जे त्रण प्रकारना स्थलचर जीवो तेउँ अनुक्रमे (गो के) गाय प्रमुख ते चतुष्पद, (सप्प के) सर्प प्रमुख ते उरःपरिसर्प तथा (नजलपसुहा के) नोलिया प्रमुख ते तुजपरिसर्प, ए (समासेणं के) .. संदेषमात्रे करी (बोधवा के ) जाणी लेवा. ए । स्थलचर जीवोना नेद कह्या ॥१॥

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