Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 94
________________ ( ए३) हजार वर्ष, ते कायनुं त्रण अहोरात्र, वाकायनुं त्रण हजार वर्ष ने वनस्पतिनुं दश हजार वर्षनुं श्राखुं जाणवुं. इंडियनुं बार वर्ष. तेइंद्रियनुं उगणपचास दिवस. चौरिंडियनुं ब मासनं. देवता ने नारकीनुं त्रीश सागरोपम, चतुष्पद, तिर्यंच ने मनुष्यनुं त्रण पत्योपमनुं श्रजखुं. जलचर, उरः परिसर्प, जुजपरिसर्प एउनुं उत्कृष्ट पूर्व कोमीनुं खं जावं. पक्षीनुं पल्योपमना असंख्यातमा जागनुं श्रायुष्य जाणवुं. सर्व सूक्ष्म तथा साधारण वनस्पति ने संमूहिम मनुष्य एनुं जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त्तनुं उखु होय. '' ॥ हवे संमूर्धिमनुं श्रायुष्य कहे बे ॥ जलचर संमूर्छिमनुं पूर्व क्रोम वर्ष, स्थलचरनुं चोराशी हजार वर्ष, खेचरनुं बहोंतेर हजार वर्षनुं आयुष्य, उरः परिसर्पनुं त्रेपन हजार वर्षनुं त्र्यायुष्य,

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