Book Title: Jayanand Kevali Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ श्री शत्रुञ्जयाधिपति श्री आदिनाथाय नमः प्रभु श्री मद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वराय नमः "श्री जयानन्द केवलिचरित्र" सकल विश्वके उपकारक सभी प्रकार के सुख प्रदाता केवलज्ञानियों के अधिपति, शासनाधिकारी श्री वर्धमानस्वामी को नमस्कार करके, भव्यात्माओं को प्रतिबोधित करने हेतु केवलज्ञानधारक श्री जयानन्दराजर्षि ने पूर्वभव में सम्यग्दर्शनपूर्वक दानशील आदि धर्मक्रिया, (अपनी प्रिया के साथ) करके जो पुण्योपार्जन किया, उसके परिणाम स्वरूप स्वर्गलक्ष्मी, उत्तमराज्यभोग, देवसहायता आदि संपत्ति उनको किस प्रकार प्राप्त हई, उसका विवरण संक्षेप में श्री पद्मविजयजी ने संस्कृत गद्य में रचा । उसका भाषांतर हिन्दी में करने का प्रयास मैंने किया है। ढाई द्वीप में जंबूद्वीप एक लाख योजन का है । उसमें एक भरतक्षेत्र, एक ऐरवतक्षेत्र और एक महाविदेहक्षेत्र है । इस कथा का प्रारंभ भरतक्षेत्र से हुआ है । इस भरतक्षेत्र में 'रतिवर्द्धन' नामक सुंदर नगर था । वहाँ ऐश्वर्य, सौन्दर्य, धैर्य, वीर्यादि गुण युक्त इन्द्र के समान नरवीर नामक राजा राज्य करता था । उसकी कीर्तिसुन्दरी आदि अनेक महारानियाँ थी । उस राजा का मन्त्रियों में मुख्य, वचन चातुर्यता का मंदिर, सभी शास्त्रों में विद्वान, दानी, गुणग्राही, क्षमावान, शक्तिशाली, राजभक्त, विनयवान, न्यायवान्, और धर्मात्मा मतिसुन्दर नामक प्रधान मंत्री था । मंत्री की योग्यता के कारण, राजा राज्य की चिन्ता से मुक्त होकर आमोदप्रमोद में अपना अधिक समय व्यतीत करता था । मतिसागर को भी कामदेव की रति और प्रीति के समान दो प्रियाएँ थी । प्रथम प्रीतिसुन्दरी, दूसरी गुणसुन्दरी ।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 194