Book Title: Jayanand Kevali Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 13
________________ मेरे ज्ञान से विषाक्त दिखने के कारण स्वशरीर एवं संयम के उपघातक होने से ग्रहण नहीं किये।" मंत्री ने मोदक मंगवाये और उस पर बैठी मरी हुई मक्खियों को देखकर योग्य व्यक्ति के पास निर्जीव स्थान पर परठा दिये । 44 मंत्री के हृदय में अपने परिवार के प्राण बचाने वाले मुनिभगवंत के प्रति अत्यन्त आदर प्रकट हो गया । उसने कहा 'आप हमारे जीवन दाता हैं । हमें आपका उपकार जीवन पर्यन्त याद रहेगा । हम आपके सेवक हैं । हमें धर्मबोध सुनाने की कृपा करें । मुनिभगवंत ने सुदेव, सुगुरु, सुधर्म का स्वरूप, पंचमहाव्रतों का स्वरूप और द्वादशव्रत का स्वरूप समझाया । धर्मोपदेशश्रवणकर मंत्री ने कहा "गुरुदेव ! हम यति धर्म स्वीकार करने में असमर्थ हैं । हम श्रावक धर्म को स्वीकार करना चाहते हैं । " गुरुदेव ने समकित मूल द्वादश व्रत उच्चरवाकर आवश्यक विधि की शिक्षा भी दी । मंत्री कल्पवृक्ष के समान धर्म प्राप्तकर अपने आपको कृतकृत्य मानता हुआ मुनि भगवंत को नमस्कारकर अपने घर गया । साधु अवज्ञा के पाप की निन्दा और आलोचना की । परंतु साधु की अवज्ञा करते समय जो तीव्र द्वेषभाव आ गया था । उसके कारण कुछ कर्म शेष रह गया । धर्मरुचि भी यथाशक्ति व्रत नियम ग्रहणकर अपने घर गया । मुनि भगवंत मासकल्प करते हुए वहाँ रहें । मासखमण का तप पूर्ण हुआ । इधर मंत्री श्रावक धर्म का विधिवत् पालन करते-करते शास्त्रों का भी ज्ञाता हुआ और श्रावकाग्रणी हो गया । जीवादि तत्त्वों का ज्ञाता बनकर क्रिया कुशल होकर दृढ़ श्रावक हो गया । धर्म क्रिया में उसे देवता भी चलायमान न कर सके वैसी त्रिकरण तीन योग से धर्म क्रिया करता था। शासन प्रभावना १२

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