Book Title: Jain Stotra Ratnamala
Author(s): Kothari Kasalchand Nimji
Publisher: Kothari Kasalchand Nimji

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Page 10
________________ (६) मि कम्मघणमुकं ॥ विसहर विसनिन्नासं, मंगल कल्याण आवासं ॥ १॥विसहरफुलिंगमंतं, कंठे धारे जो सया मगु॥ तस्स गह रोग मारी, ३० जरा जंति नवसासं ॥२ ॥चिन्न दूरे मंतो, तुऊ पणामोवि बहुफलो हो ॥ नर तिरिएसु वि जीवा, पावंति न उरक दोगचं ( दोहग्गं) ॥ ३ ॥ तुह सम्मने लहे, चिंतामणि कप्पपायवनहिए ॥पावंति अविरघेणं, जीवा अयरामरं गणं ॥ ४ ॥ अ संयुन म हायस, नत्तितर निप्ररेणं दिए । ता दे

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