Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Shubhranjanashreeji
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir V हैं. उपयोगी हो सकता है. इस प्रकार जैन आगम में धर्मकथाओंको महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ आगम ग्रंथों में कथाओं के प्रकार, भेद-प्रभेद आदि के विषय में सूक्ष्म एवं गहन चिंतन प्राप्त होता है. कथाओं के प्रकार के विषय में जैन धर्म में जितना चिंतन किया गया है शायद ही अन्य धर्म में प्राप्त होता है. आगम ग्रंथ में सर्व प्रथम कथा के दो प्रकार विकथा एवं कथा किया गया है. जो कथा जीवन में विकार उत्पन्न करती है वह विकथा है उससे साधक को दूर रहने का उपदेश दिया गया है. ऐसी कथाओं का चार मुख्य भेद है यथा स्त्री कथा, देश कथा, भक्त कथा और राज कथा. इन कथाओं के श्रवण से साधक के मनमें राग, द्वेप, क्रोधादि कपाय एवं कामादि विकार उत्पन्न होते है इससे जीवन उर्ध्वगामी न बनके अधोगामी बनता है. अतः जीवको इन कथाओं से दूर रहने का उपदेश दिया है. धर्मकथा वह है जिससे जीव का आत्मविकास हो इसके चार प्रकार बताए गए है. (१) आक्षपणी कथा. (२) विक्षपणी कथा. (३) संवंदनी कथा और (४) निवेंदनी कथा. (१) आक्षेपणी कथा :- जिस कथा से जीव का ज्ञान एवं चारित्र के प्रति आकर्पण पैदा हाता है उसे आक्षपणी कथा कहते है. (२) विक्षेपणी कथा :- जिस कथा से जीव सन्मार्ग में स्थापित हो उसे विक्षेपणी कथा कहते (३) संवेदनी कथा :- जिस कथा से जीव को जीवन की नश्वरता, दुःख बहुलता, अशुचिता आदि का बाप ही और उससे वैराग्य उत्पन्न हो उस संवेदनी कथा कही जाती है. (४) निवेदनी कथा : जो कृत कर्मों के शुभाशुभ फल को बतलाकर संसार के प्रति उदासिनता बताती हो उसे निवेदनी कथा कहते हैं. इस प्रकार उक्त चार भेद एवं प्रत्येक कथा के प्रभंदा की चर्चा प्राप्त होती है. एक अन्य विभाग में कथाओं के तीन भेद किए गए है यथा धमकथा. अथकथा. काम कथा. दशवेकालिक सूत्र में कथाके चार भेद पाए जाते है. धर्म कथा, अर्थ कथा, काम कथा एवं संकीर्ण कथा. जिस कथा में मानव की आर्थिक समस्याओं का समाधान किया गया है उसे अर्थ कथा कहते है. जिसमें मानवी के केवल रूप सौंदर्य का ही नहीं अपितु ! जातीय समस्याओं का विश्लेपण हो उस काम कथा कहते है. जिसमें जीवन को उन्नत बनाने वाले शील, संयम, तप, धर्म आदि का कथा द्वारा वर्णन किया गया हो उसे धर्म कथा कहते है. जिसमें धर्म-अर्थ एवं काम तीनों का वर्णन पाया जाता हो उस सकीण कथा या मिश्रकथा कही जाती है. आचार्य हरिभद्रसूरिन कथाओं के उक्त विभागों का are समरादित्य कथा में किया है. धर्मकथा का छोड़कर अन्य दो प्रकारको कथाए संसार की वृद्धि करने वाली होने के कारण त्याज्य मानी गई है. धर्म कथा कम निर्जरा का कारण हान स उपादेय मानी गई है. उद्योतनरि की कुवलयमाला कथा में कथाओं का एक अन्य विभाजन प्राप्त होता है उनके मतानुसार कथा के पांच प्रकार है. यथा ( 9 ) सकल कथा जिस कथा के अन्त में सभी प्रकार के अभीष्ट की प्राप्ति होती हो उसे सकल कथा कही जाती है. For Private And Personal Use Only

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