Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Shubhranjanashreeji
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सचित्र जैन कथासागर भाग - २ (३) राजा चन्दन उस वणिक् के घर पूजा-विधि सम्पन्न करके रात को जब कुटिया में लौटा तो सायर एवं नीर दोनों सिसक-सिसक कर रो रहे थे। चन्दन ने उनके आँसू पोंछे और कहा, 'पुत्र क्यों रो रहे हो ? तुम्हारी माता कहाँ गई ?' बालकों ने कहा, 'कौन जाने अभी तक क्यों नहीं आई? हमने उनकी बहुत प्रतीक्षा की परन्तु वह दृष्टिगोचर ही नहीं हुई । ' चन्दन कुटिया से बाहर, इधर-उधर घूमा । जो भी कोई मिलता उसे पूछता, 'किसी ने देखा है लकडियाँ बेचने वाली मलयागिरि को ?' किसी ने इनकार किया तो किसी ने कोई उत्तर ही नहीं दिया । चन्दन ने मन को स्थिर किया और सोचा कि, 'यदि मैं मस्तिष्क का सन्तुलन खो दूँगा तो इन दोनों बालकों का क्या होगा ?" कुटिया पर आकर दोनों पुत्रों को लेकर चन्दन कुशस्थल छोड़कर चला गया। गाँव के बाहर वन निकुञ्ज के उद्यान में जो कोई मिलता उन सबको यही पूछता कि, 'किसी ने देखा है मेरी मलयागिरि को ?' पशुओं, पक्षियों वन के वृक्षों तथा सरसराती वायु को सबको चन्दन पूछता कि, 'बताओ, बताओ उस कटियारिन मलयागिरि को !' परन्तु कहीं से भी उसे कोई उत्तर नहीं मिला । कभी दौड़ता, कभी विश्राम लेता और निःश्वास छोड़ता हुआ स्थान-स्थान पर ठोकरें खाता हुआ चन्दन बननिकुञ्ज में और मार्ग में 'हे मलयागिरि ! हे मलयागिरि ! करता हुआ उसे पुकारता और मस्तिष्क का सन्तुलन खोने जैसा हो जाता तब सायर और नीर कहते, 'पिताजी! भूख लगी है', चन्दन उन्हें वन के फल और पत्ते खिलाता और स्वयं भी उसी प्रकार निर्वाह करता । मार्ग में कल-कल करती नदी बह रही थी । चन्दन ने इस किनारे पर सायर को खड़ा कर दिया और नीर को अपने सिर पर बिठा कर नदी पार की और उसे सामने के तट पर खड़ा कर दिया। लौटते समय नदी की गति तीव्र हो गई चन्दन की देह शोक, भूख और कष्टों के कारण शिथिलता का अनुभव कर रही थी। उसने पाँव जमाने का अत्यन्त प्रयास किया परन्तु नदी के वेग के कारण पाँव जम नहीं सके। उसने नदी में बहते - बहते 'बेटा सायर! बेटा नीर!' कह कर उन्हें पुकारा परन्तु उसकी पुकार नदी प्रवाह की ध्वनि में समा गई। वह डूबता - उतराता बहता रहा। उसने एक-दो गुलांछें भी खाई। इतने में एक लकड़ी चन्दन के हाथ में आ गई। ऊपर-नीचे होती लकड़ी आनन्दपुर नगर के बाहर छिछले पानी में रुकी और चन्दन भी वहीं रुक गया । नदी से बाहर निकलते समय वह बोला- 'कहाँ चन्दन ? कहाँ मलयागिरि ? कहाँ सायर ? कहाँ नीर ? ?' For Private And Personal Use Only

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