Book Title: Jain Katha Sagar Part 2 Author(s): Shubhranjanashreeji Publisher: Arunoday Foundation View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IV जिनाय नमः प्रस्तावना डॉ. जितेन्द्रकुमार बी. शाह धर्म का मुख्य उद्देश्य जीव को शिव बनाना है. मानव को महामानव और पामर का परमात्मा बनाने की कला ही धर्म है. अनादि काल से जीव गमार में परिभ्रमण करता हुआ अनकविध कर्ममन का अर्जन करता है. इस परिभ्रमण के काल में कभी किसी मामार्गदाता गुरु का सुयोग प्राप्त होते ही जीव के विकास का प्रारंभ हो जाता है अनेक जन्मा म अर्जित कमा को दूर करने की प्रक्रिया का प्रारंभ हो जाता है. अद्यावधि अनकानक महापुरूपा ने अपन पुरूपार्थ से जीवन को सफल करक आत्मा का संपूर्ण निर्मल किया है. ग महापापा को जीवनगाथा ता उच्च ही होती है. साथ साथ में अनेक जीवात्माओं का प्ररणा भी दती है. अत कथाएँ न कवल मनोरंजन के लिए होती है किन्तु अनक आत्माओं का अंगणादायी भी होती है महापुरुषों क जीवन चरित्र को सुनकर अनेक जीवात्मानं आत्मकल्याण किया है. इसीलिए श्रावक के वंदितु सूत्र में तो यह कामना की गई है कि महापुरुषों के चरित्रा के श्रवण करत करत ही दिन पसार हो! इसके अतिरिक्त भी कथाओं का बहुत मूल्य है. यहाँ कथा आ का संग्रह प्रकाशित हो रहा है. यह एक आनंद का विपय है. आर्यदेश की भूमि कथाओं के लिए प्राचीनकाल से हि सुप्रसिद्ध है. इस धरा के ऊपर जितनी कथाआ का निर्माण हुआ है शायद ही अन्य किसी धरा पर उतनी कथा आ का प्रणयन हुआ हा! रहस्यात्मक कथाएँ. राचक कथाएँ, धर्मोपदेशात्मक कथाएं. लोककथा आदि का दि संग्रह किया जाए तो न जान कितने ग्रंथा का निर्माण हो जाएगा? किन्तु एक दुःख की बात यह है कि काल के प्रवाह में अनेक ग्रंथों का नाश हुआ उसमें अनेकानेक कथा ग्रंथा का भी नाश हो चूका है. साथ ही साथ एक सौभाग्य की बात है कि जैन साहित्य में अनक कथाओं का संरक्षण हुआ है. इसलिए पाश्चात्य मनिपि विन्टरनिल्म ने कहा है कि जैन विद्वाना ने यत्र तत्र विखरी हुई लोककथाओं का अपने धार्मिक आख्यानों में स्थान देकर विपुल साहित्य का पुरक्षित रखन में सहायता प्रादन की है. अन्यथा हम उक्त साहित्य से वंचित रह जातं. इस प्रकार जैन धर्म के साहित्य में अनेक कथा साहित्य के ग्रंथ उपलब्ध होत है. ये ग्रंथ अर्धमागधी, मागधी. शौरमनी, महाराष्ट्रीय प्राकृत भापाओं में उपलब्ध होते है साथ में संस्कृत, अपभ्रंश एवं स्थानीय भाषाओं में भी अनक उत्तम कथा ग्रंथ प्राप्त होते है. आज तक इन कथा ग्रंथों की सूची तयार नहीं हुई है. और कथाओं की भी सूची तैयार नहीं हो पाई है अत: भविष्य में कोई विद्वान इस तरह की सूची तयार करंग ता साहित्य जगत की बहुत ही महती सेवा मानी जाएगी! अस्तु! जैन साहित्य का उद्गम स्थान आगम ग्रंथ है. तीर्थंकर परमात्मा क उपदा का गणधर भगवंता ने आगम ग्रंथों में ग्रथित किया है. तत्पश्चात् शास्त्रकार महामनिपिआ ने उनकी व्याख्यादि की रचना की है. इन आगम ग्रंथों का चार अनुयांग में विभाजित किया गया है. (१) द्रव्यानुयोग, (२) गणितानुयोग, (३) चरणकरणानुयोग एवं (४) कथानुयोग. इन चार अनुयोग में प्रधानता चरणकरणानुयोग की मानी गई है क्योंकि प्रस्तुत अनुयोग साध्य है अन्य तीन अनुयाग साधन स्वरूप है! तथापि जीव की विकास की प्राथमिक अवग्था में धर्मकथानुयोग ही उपयोगी हाता है, एवं सभी अनुयोगो म धर्मकथानुयोग ही सुलभ, सुगम एवं गरल है अतः सभी को For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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