Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Shubhranjanashreeji
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 104
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यशोधर चरित्र - अधुरी आशा अर्थात् यशोधर राजा ९३ के तत्क्षण प्राण हर लिये होते । राजन्! मैंने इसे संयम ग्रहण करने का प्रवल कारण माना । मैं नयनावली के प्रति मोह रखता था वह कितना अधिक मिथ्या था वह मुझे स्वतः ही समझ में आ गया और संयम लेने में जिस रानी का मोह छोड़ना कठिन प्रतीत होता था वह स्वतः ही कम हो गया । राजन्! मैं तुरन्त वहाँ से लौटा और पलंग पर जाकर सो गया, मुझे गहरी नींद आ गई। (७) वैतालिकों के प्रभाती गाते ही मैं शय्या में से तुरन्त उठ बैठा । मैंने कारागार से कैदियों को मुक्त कर दिया, अपराधियों के दण्ड क्षमा कर दिये, याचकों को दान दिया ऐसे उत्तम कार्य करके मैंने गुणधरकुमार का राज्याभिषेक किया। इन समस्त कार्यों में नयनावली ने पूर्ण सहयोग दिया। उसका गत रात्रि का कुकर्म जानते हुए भी मैंने उसे कुछ भी नहीं कहा। कुछ भी नहीं हुआ हो उस प्रकार मैंने उसके साथ व्यवहार किया। राज्याभिषेक के पश्चात् स्नेही, परिवार-जन एवं गुरुजन सब भोजन-मण्डप में भोजन के लिए एकत्रित हुए। मैंने सबको प्रेम पूर्वक भोजन कराया और उन्हें उचित उपहार देकर उनका सत्कार किया । नयनावली उस समय अत्यन्त गहन विचार में थी। वह सोच रही थी कि यह राजा प्रातःकाल में दीक्षा अङ्गीकार करेगा । मैं यदि इनके साथ दीक्षा अंगीकार न करूँ तो लोग मेरा उपहास करेंगे कि कैसी स्वार्थी यह रानी है कि राजा ने संयम ग्रहण किया और यह घर में पड़ी रही? परन्तु उन्हें कहाँ पता था कि रानी का प्रियतम राजा नहीं परन्तु कुबड़ा है। राजा के साथ दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् वह पुनः थोड़े ही मिलने वाला है? मुझे दीक्षा ग्रहण न करनी पड़े, लोगों में मेरा बुरा न लगे और कुबड़े का सुख सदा आनन्द पूर्वक बिना किसी रुकावट के उपभोग कर सकूँ ऐसा कोई उपाय मिले तो कितना अच्छा हो? उसने गहराई से विचार करके निश्चय किया कि किसी भी प्रकार से राजा का वध करना है। यह राजा यद्यपि निर्दोष है, उसने मेरा कुछ भी विगाड़ा नहीं है। वह राज्य का परित्याग करके धर्म करने के लिए तत्पर हुआ है। उसका वध करना अत्यन्त बुरा है, परन्तु यदि मैं ऐसा न करूँ तो मेरे विषय-सेवन में अन्तराय होगा। ये विषयों के उपभोग मुझे बाद में थोड़े ही मिलने वाले हैं? (८) राजन्! तत्पश्चात् मैं भोजन करने के लिए बैठा तब एक सुन्दर मसालेदार पकौड़ा मेरी थाली में परोसा गया । मैंने सरल भाव से उक्त पकौड़ा खा लिया । मैं भर-पेट भोजन For Private And Personal Use Only

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