Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Shubhranjanashreeji
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 76
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोलने की अपेक्षा नहीं बोलना श्रेष्ठ है अर्थात् विजय सेठ की कथा (३२) बोलने की अपेक्षा नहीं बोलना श्रेष्ठ है अर्थात् विजय सेठ की कथा विजयवर्धन नगर के सेठ विशाल के एक विजय नामक पुत्र था, जो अत्यन्त विनयी, गम्भीर एवं गुणवान था । वयस्क होने पर वसन्तपुर के सेठ सागर की पुत्री 'श्रीमती' के साथ विजय का विवाह हुआ । श्रीमती के नाम के अनुरूप ही उसका सौन्दर्य था, परन्तु पति के अतिशय वियोग के कारण वह तनिक चरित्र-भ्रष्ट हो गई थी। . एक बार विजय अपनी पत्नी को लेने के लिए वसन्तपुर आया। पिता के आग्रह से श्रीमती अपने पति विजय के साथ चली परन्तु उसका मन अपने मैके में रहने वाले उसके प्रेमी एक दास में था। तनिक दूर चलने पर मार्ग में एक कुँआ आया । विजय जब उस कुँए में जल निकाल रहा था तव पीछे से उसकी पत्नी श्रीमती ने उसे कुँए में ढकेल दिया। कुँए में गिरते ही विजय ने उसमें उगे एक वृक्ष की शाखा पकड़ ली। असदाचारी पत्नि ने अपने पति को कुए में गिरा कर मारने की कोशिश की. मगर मारने वाले से भी तारने वाले के हाथ... For Private And Personal Use Only

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