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( १७५) ही प्रयोग करने है। आक्षेपक ने ताबीज वॉधने की बात कह. कर अपने गुप्त जीवन का परिचय दिया है । तावीज़ वाँयने वाले बगलाभक्त ठगों से पाठक अपरिचित न होंगे । रही नपुसकता की बात सो यदि कोरबदल को पाप का फल चखाने वाला और उसी भव से मोक्ष जाने वाला अर्जुन नपुंसक है तो पेसी नपुंसकता गौरव की वस्तु है। उस पर अनन्तपांगापथियों का पुरुषत्व न्याछायर किया जा सकता है।
हमने एक जगह लिखा है कि "हमने विधवाविवाह का विरोध करके स्त्रियों के मनुपाचिन अधिकारों को हडपा इमलिये आज हमें दुनिया के सामने औरत बनके रहना पड़ता है। कमी २ एक आदमी के द्वारा 'हम' शब्द का प्रयोग समाज के लिये किया जाता है । यहाँ 'हम' शब्द का अर्थ 'जैनसमाज' म्पष्ट है । परन्तु जब कुछ न बना तो आक्षेपक ने इमी पर गालियाँ देना शुरू कर दी।
इस तरह के वाक्य ता हम भी श्रापक के वक्तव्य में में उद्धृत कर सकते है। १८ चे प्रश्न में श्राक्षपक ने एक जगह लिखा है कि "हम विधवाओं के लिये तड़प रहे हैं, उन्हें अपनी बनाने के लिये छटपटा रहे है।" अब इस श्राक्षेपक से कोई पूछे कि 'जनाय ! श्राप ऐसी बदमाशी क्यों कर रहे है।
आक्षेप (छ)-यदि जैनधर्म का सम्बन्ध रक्त मांस से नहीं है तो उसके भक्षण करने में क्या हानि ? (विद्यानन्द)
समाधान-हानि तो मलमूत्र मधुमद्य यादि के भक्षण करने में भी है तो क्या जैनधर्म के लिये इन सय चीज़ों के उपयोग की भी आवश्यकता होगी? जिसके भक्षण करने में भी हानि है उसको जैनधर्म का प्राधार स्तम्भ कहना ग़ज़ब का पाण्डित्य है । यहाँ नो श्राक्षपक के ऊपर ही एक प्रश्न